मन की गति से चलता था देवशिल्पी का निर्मित यह विमान

–लंकापति रावण के पास पुष्पक ही नहीं कई विमानों का था जखीरा

-इच्छानुसार छोटा, बड़ा होने वाला विमान भूमि पर चलने में था सक्षम

­-ऋगवेद में 200 से अधिक बार विमानों का उल्लेख

क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि कोई एेसा विमान हो सकता है जिसका आकार आवश्यकतानुसार छोटा या बड़ा किया जा सकता हो। विमान के स्वामी के मन की गति से संचालित किया जा सके। केवल आसमान ही नहीं उसे जमीन पर भी चलाया जा सके। वायु के घनत्व अनुसार उसे छोटा बड़ा करने का सामर्थ्य हो। शायद नहीं। मौजूदा समय में यह सब कपोल काल्पनिक प्रतीत होता है। पंरतु यह पूर्ण तौर से सत्य है। भारत के प्राचीन हिंदू ग्रंथों में करीब दस हजार वर्ष पूर्व एेसे विमानों का युद्ध के दौरान प्रयोग किए जाने का विस्तृत उल्लेख वर्णित है। हिन्दू पौराणिक महाकाव्य श्री रामायण में सीता माता के लंकापति राजा रावण द्वारा अपने पुष्पक विमान में हरण करने का उल्लेख है। ऋग्वेद में तो 200 से अधिक बार विमानों के बारे में विस्तृत उल्लेख है। सबसे खास बात यह है कि लंकापति रावण के पास केवल पुष्पक ही नहीं सैनिकों के लिए भी कई विमान थे।


श्री रामायण में है रावण के पुष्पक विमान का उल्लेख
भारतीय प्राचीन काल में साइंस बेहद विकसित थी। इसके सामने मौजूदा साइंस व इंजीनियरिंग को पूरी तरह विकसित नहीं माना जा सकता है। ऋग्वेद में तो 200 से अधिक बार विमानों के बारे में विस्तृत उल्लेख है। हिन्दू पौराणिक महाकाव्य श्री रामायण में लंका के राजा रावण की ओर से सीता माता को हरण करने के लिए पुष्पक विमान के प्रयोग की जानकारी वर्णित है। लंकापति रावण के वध के बाद भगवान श्रीराम, सीता माता, लक्ष्मण तथा अपने अन्य सहयोगियों के साथ दक्षिण में स्थित लंका से अयोध्या उसी पुष्पक विमान से आए थे। शास्त्रों के अनुसार पुष्पक विमान का समूचा डिजाइन व निर्माण विधि ब्रह्मर्षि अंगिरा ने बनायी थी। जबकि निर्माण व साज-सज्जा देवशिल्पी भगवान विश्वकर्मा ने की थी। भगवान ब्रह्मा जी ने यह विमान कुबेर को प्रदान कर दिया था। कुबेर इसे देवों की यात्रा की सुगमता के लिए प्रदान कर देते थे। परंतु लंकापति रावण ने इस पुष्पक विमान को अपने भाई कुबेर से बलपूर्वक हासिल कर लिया था। भगवान राम ने अयोध्या लौट कर इस विमान को कुबेर को वापिस कर दिया था।

पुष्पक विमान का उल्लेख
प्राचीन हिंदू साहित्य अनुसार पुष्पक विमान का निर्माण देवशिल्पी विश्वकर्मा ने किया था। देवशिल्पी भगवान विश्वकर्मा की माता सती योगसिद्धा थीं। जो वसु प्रभास की पत्नी थीं। प्रभास-योगसिद्धा के आशार्वीद से ही विश्वकर्मा ने देवताओं के लिए विमान, अस्त्र-शस्त्र का तथा महलों का निर्माण किया था।
बादल समान उंचे, स्वर्ण समान स्वर्णिम पुष्पक विमान भूमि पर एकत्रित स्वर्ण के ढेर समान प्रतीत होता था। पुष्पक ढेरों रत्नों से अलंकृत था। आकाश में उड़ते समय यह विमान हंसों द्वारा खींचा जाता प्रतीत होता था। इसके निर्माण में अनेक धातुओं का प्रयोग इस प्रकार से किया गया था कि यह पर्वत शिखर ग्रहों और चन्द्रमा समान शोभित दिखता थ। इस विमान के भीतर श्वेत वर्ण के भवन थे। जिनमें विचित्र वन और अद्भुत सरोवरों के चित्र बने हुए थे। श्री रामायण में वर्णित इस वायु वाहन पुष्पक का वर्णन है। जिसे रावण नभ विचरण करता था। लंकापति रावण के पुष्पक विमान में सैनिक क्षमता, अदृश्य होना और पीछा करने की कई विशेष उपलब्धियां शामिल थी। रामायण के अनुसार रावण के पास कई लड़ाकू विमान थे। प्राचीन काल में विमानों की मुख्यतः दो श्रेणियाँ बताई गई हैं। पहला मानव निर्मित विमान, जो आधुनिक विमानों की भांति ही पंखों के सहायता से उडान भरते थे। दूसरा आश्चर्य जनक विमान जो मानव निर्मित नहीं थे। उन का आकार प्रकार आधुनिक उडन तशतरियों के समान माना गया। यह विमान गगन में अपने स्वामी की मन की इच्छा के अनुसार भ्रमण करने में सक्षम थे। रावण द्वारा अपने भाई कुबेर से बल पूर्वक विमान छीनने के बाद कुबेर ने वर्तमान तिब्बत के निकट नयी नगरी अलकापुरी का निर्माण करवाया।


लंकापति रावण के पास थे चार हवाई अड्डे
मौजूदा श्रीलंका की श्री रामायण रिसर्च समित्ति के अनुसार लंकापति रावण के पास अपने पुष्पक विमान को रखने के लिए चार हवाई अड्डे थे। इन चार हवाई अड्डों में से एक का नाम उसानगोड़ा था। इस हवाई अड्डे को हनुमान जी ने लंका दहन के समय नष्ट कर दिया था। जबकि तीन हवाई अड्डे गुरूलोपोथा, तोतूपोलाकंदा और वारियापोला सुरक्षित बच गए थे। लंका में लड़ाकू विमानों की व्‍यवस्‍था प्रहस्‍त के सुपुर्द थी। यानों में ईंधन की व्‍यवस्‍था प्रहस्‍त ही देखता था। लंका में सूरजमुखी पौधे के फूलों से तेल निकाला जाता था। गौर हो मौजूदा समय में जेट्रोफा पौधे से पेट्रोल बनाने का काम जारी है। अब भारत में भी रतनजोत के पौधे से तेल बनाए जाने की प्रक्रिया में तेजी आई है। सबसे खास बात यह है कि लंकावासी तेल शोध में निरंतर लगे रहते थे।

विमान निर्माण का ऋग्वेद में भी है उल्लेख
ऋगवेद में लगभग 200 से अधिक बार विमानों के बारे में उल्लेख दिया है। इसमें कई प्रकार के विमानों का उल्लेख है। जिनमें तीन मंजिला, त्रिभुज आकार के व तीन पहिये वाले विमानों का उल्लेख है। वैज्ञानिक का दर्जा हासिल करने वाले जुडवां देव अश्विनी कुमारों ने कई विमानों का निर्माण किया। इन में साधारणतया तीन यात्री ही सफर कर सकते थे। इस विमान के दोनों तरफ पंख होते थे। इन उपकरणों के निर्माण में मुख्य तौर पर तीन धातुओं स्वर्ण, रजत तथा लोहे का प्रयोग किया जाता था। वेदों में वर्णित विमानों में अग्निहोत्र विमान में दो इंजन) तथा हस्ति विमान में दो से अधिक अधिक लगे होते थे। किसी विमान का रूप व आकार मौजूदा समय के किंगफिशर पक्षी के अनुरूप था। जलयान भी जो वायु में उड़ सकता था और पानी में चल सकता था। कारा नामक विमान भी वायु तथा जल दोनो जगहों में चल सकता था। तीन मंजिला त्रिताला नामक विमान, त्रिचक्र रथ नामक तीन पहियों वाला यह विमान आकाश में उड़ने में सक्षम था। यह विमान भाप व वायु की शक्ति से चलता था। विद्युत रथ नामक विमान बिजली की शक्ति से चलता था।

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पुरातन समय में वर्णित जानकारियां
समरांगण सूत्रधार नामक ग्रन्थ में विमानों के बारे में तथा उन से सम्बन्धित सभी विषयों के बारे में अद्भुत ज्ञान मिलता है। इस ग्रंथ में 225 से अधिक पदों में विमान के निर्माण, उड़ान, गति, पक्षियों से दुर्घटनाओं में बचने के बारे भी उल्लेख मिलता हैं। इसके अलावा विमान निर्माण उसके आकार, प्रकार व संचालन की संपूर्ण जानकारी महर्षि भारद्वाज के वैमानिक शास्त्र में मिलती है। यह ग्रंथ उनके मूल प्रमुख ग्रंथ यंत्र सर्वेश्वम का ही एक खंड है। इस वैमानिक शास्त्र में आठ अध्याय, एक सौ अधिकरण, पांच सौ सिद्धांत और तीन हजार श्लोक हैं। यह ग्रंथ संस्कृत भाषा में रचित है। इस विमान में जो तकनीक प्रयोग हुई है, उसके पीछे आध्यात्मिक विज्ञान भी शामिल रहा। पुष्पक विमान में यह भी विशेषता थी कि वह उसी व्यक्ति से संचालित होता था, जिसने विमान संचालन मंत्र सिद्ध किया हो।

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पुष्पक विमान की खासियत
वाल्मीकि रामायण के अनुसार पुष्‍पक विमान मोर जैसी आकृति का विमान था। जो अग्‍नि-वायु की उर्जा से चलता था। इसकी गति तीव्र थी और चालक की इच्‍छानुसार इसे किसी भी दिशा में गतिशील रखा जा सकता था। इसका आकार छोटा-बड़ा भी किया जा सकता था। यह सभी ऋतुओं में आरामदायक इसमें स्‍वर्ण , मणिनिर्मित दरवाजे व सीढि़यां, आसन, गुप्‍त गृह, केबिन तथा नीलम से निर्मित सिंहासन थे। यह विमान दिन और रात दोनों समय गतिमान रहने में समर्थ था। तकनीकी दृष्‍टि से पुष्‍पक में इतनी अधिक खूबियां थीं, जो मौजूदा विशिष्ट विमानों में भी नहीं है। पुष्‍पक में कई खासियत थी। यह विमान केवल एक स्‍थान से दूसरे स्‍थान तक ही उड़ान नहीं भरता था। बल्‍कि एक ग्रह से दूसरे ग्रह तक भी पहुंचने में सक्षम था।

अफ‍गानिस्तान की एक गुफा में मौजूद है प्राचीन विमान

वायर्ड डॉट कॉम की एक रिपोर्ट में दावा किया जा रहा है कि प्राचीन भारत के पांच हजार वर्ष पुराने एक विमान को हाल ही में अफ‍गानिस्तान की एक गुफा में पाया गया है। कहा जाता है कि यह विमान एक ‘टाइम वेल’ में फंसा हुआ है अथवा इसके कारण सुरक्षित बना हुआ है। टाइम वेल इलेक्ट्रोमैग्नेटिक शॉकवेव्‍स से सुरक्षित क्षेत्र होता है और इस कारण से इस विमान के पास जाने की चेष्टा करने वाला कोई भी व्यक्ति इसके प्रभाव के कारण गायब या अदृश्य हो जाता है।

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