मंदिर के गर्भ में छिपा है पाताल तक जाने का रास्ता

-भक्तों से पहले पक्षी लगाते हैं प्रसाद का भोग

भारत के प्राचीन मंदिर अपने आप में आलौकिक इतिहास को समेटे हुए हैं। हर मंदिर का अपना-अपना इतिहास है। वहां पर प्राण प्रतिष्ठित देवी देवता युगों युगों से अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूरा कर रहे हैं। कई मंदिर एेसे भी हैं जहां पर आसपास के क्षेत्र के ही नहीं बल्कि विदेशी भक्त भी आकर नमन करते हैं। आईए आज आपको एक एेसे देवीपाटन मंदिर के बारे बताते हैं, जिस मंदिर के गर्भ में पाताल जाने का रास्ता छिपा हुआ है। इस मंदिर में पक्षियों का जमघट भक्तों के लिए कौतूहल का विष्य रहता है। क्यों कि इस मंदिर में भक्तों को प्रसाद वितरित करने से पहले पक्षियों को बतौर भोग प्रदान किया जाता है।

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कहां पर स्थित है यह देवीपाटन मंदिर
माता सती के 51 शक्तिपीठों में से एक देवीपाटन मंदिर यूपी के बलरामपुर जिले के पाटन गांव में स्थित है। इस मंदिर में जगदमाता पाटेश्वरी विराजमान है। पाटन गांव सिरिया नदी के तट पर स्थित है। इस मंदिर में यूपी ही नहीं बल्कि नेपाल के लोग भी माथा निवा कर माता का आशीर्वाद हासिल करते हैं।

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मंदिर के प्रसाद का भोग पहले पशु-पक्षी लगाते हैं
देवीपाटन मंदिर के आसपास का क्षेत्र बेहद मनोरम है। यहां पर सदियों से मंदिर के प्रसाद को भक्तों में वितरित किए जाने से पहले पक्षियों के भोग के लिए रखने की परंपरा है। यहां यह मान्यता है कि प्रभु का वास केवल इंसान में ही नहीं होता है। बल्कि प्रभु का वास तो पक्षियों के अलावा इस कण-कण में है। यही कारण है कि प्रसाद को पहले पक्षी ग्रहण करते हैं। माता को भोग लगाने के बाद सभी तरह के पशु पक्षियों को बड़े श्रद्धा भाव से भोजन करवाया जाता है। जैसे ही मंदिर के घंटे बजने लगते हैं। आसपास उडने वाले पक्षी व अन्य जानवरों का मंदिर के परिसर में भारी इक्ट्ठ हो जाता है। माता को चढ़ाए गए प्रसाद को पक्षियों का ग्रहण करना भक्तों को रोमांचित कर देता हैं।

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माता के गर्भ गृह से जाता है पाताल तक रास्ता
पौराणिक मान्यता अनुसार देवीपाटन मंदिर के गर्भ गृह से पाताल तक अति प्राचीन सुरंग बना हुई है। यहां पर त्रेतायुग से जल रही अखंड ज्योति में माता दुर्गा की शक्तियों का वास है। सबसे खास बात यह है कि इस मंदिर के गर्भ गृह में कोई भी प्रतिमा नहीं है। इस जोत के शीर्ष पर रत्नजड़ति छत्र और ताम्रपत्र पर दुर्गा सप्तशति अंकित है।

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गुरु गोरखनाथ को यहां प्राप्त हुई थी सिद्धियां
इस मंदिर में त्रेता युग से जल रही अखंड जोत, परिसर में विद्यमान सूर्यकुंड प्रमुख है। सबसे खास बात यह भी है कि इस मंदिर में गुरु गोरखनाथ व सिद्ध रत्ननाथ नेपाल को सिद्धि प्राप्त हुई थी। मंदिर के परिसर के कण-कण में देवी देवताओं का वास माना जाता है। माता की प्रतिमा के साथ नौ देवियों की प्रतिमाएं भी विद्यमान है।

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क्यों कहा जाता है इस मंदिर को देवीपाटन का मंदिर
देवीपाटन का उल्लेख स्कंदतालिका, देवी भागवत, शिव चरित व महापुराण में वर्णित है। इस शक्ति पीठ पर माता सती का बायां कंधा (स्कंद) पाटंबर गिरा था। इसी कारण इस मंदिर को मां पाटेश्वरी देवीपाटन मंदिर के नाम से पुकार जाता है। मंदिर के परिसर में बने सूर्यकुंड में पूजन कर नहाने से कुष्ट रोग तक समाप्त हो जाते हैं।

प्रदीप शाही

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