भारत का ऐसा प्राचीन मंदिर….जहां मां दुर्गा ने किया था राक्षस का वध

पूरे भारत में मां दुर्गा की पूजा की जाती है। मां दुर्गा को समर्पित मंदिर देश के कोने-कोने मौजूद हैं। आज हम आपको एक ऐसे ही दुर्गा मंदिर के बारे में बताएंगे जिसे ‘कनक दुर्गा मंदिर’ के नाम से जाना जाता है। पौराणिक ग्रन्थों व पुराणों में भी इस प्राचीन मंदिर का उल्लेख देखने को मिलता है।

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कनक दुर्गा मंदिर

प्राचीन कनक दुर्गा मंदिर आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में इंद्रकीलाद्री पहाड़ की चोटी पर स्थित है। इस मंदिर के पास से होकर ही पावन कृष्णा नदी गुज़रती है। कालिका पुराण, दुर्गा सप्तशती और अन्य ग्रंथो में कनक दुर्गा का वर्णन है। कनक दुर्गा का उल्लेख तृतीयकल्प में स्वयंभू के नाम से मिलता है।

मंदिर में स्थापित है अद्भुत मूर्ति

कनक दुर्गा मंदिर में मां दुर्गा की 4 फूट ऊँची मूर्ति के दर्शन होते हैं। इस अद्भुत मूर्ति की कुल आठ भुजाएं हैं और मां कनक देवी असुर राजा महिषासुर का वध करने की मुद्रा में महिषासुर को त्रिशूल से भेदते हुए दिखाई देती हैं। मां दुर्गा की मूर्ति का सोने के आभुषणों और फूलो से श्रंगार किया जाता है। इसके अलावा सीढ़ियों से होते हुए मंदिर तक जाने के रास्ते में विभिन्न देवी-देवताओ की मूर्तियों के दर्शन होते हैं। जिनमें कनका देवी मल्लेश्वर और कृष्णा नदी की मूर्तियां प्रमुख हैं। 

मंदिर से जुड़ी कथाएं

मंदिर के निर्माण को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत काल में अर्जुन को इसी स्थान पर शक्तिशाली अस्त्र पाशुपथ की प्रप्ति हुई थी, कहा जाता है कि इसके बाद अर्जुन ने देवी के नाम पर इस मंदिर का निर्माण करवाया था। एक अन्य कथा के अनुसार मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में राजा पूसापति महादेव वर्मा ने करवाया था। राजा पूसापति महादेव वर्मा ने ही आधुनिक विजयवाड़ा साम्राज्य की स्थापना भी की थी। इसके अलावा वेदों के अनुसार इस मंदिर को स्वयंभू माना जाता है। यह भी मान्यता है कि मां दुर्गा ने साधू इन्द्रकीला की तपस्या के बाद महिषासुर का वध किया था और बाद में मां दुर्गा ने इन्द्रकीला को ही अपना निवास स्थान बना लिया।

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शहर के नामकरण को लेकर कहा जाता है कि इन्द्रकीला पहाड़ी पर अर्जुन ने भगवान शिव की आराधना की थी। बाद में अर्जुन की जीत होने पर इस शहर का नाम “विजयवाड़ा” पड़ा।

मंदिर के प्रमुख उत्सव

श्री कनक दुर्गा देवी, मंदिर में हर साल दशहरा उत्सव मनाया जाता है। दस दिन तक चलने वाले इस महोत्सव में लाखों की तादाद में श्रद्धालु पहुंचते हैं। यह उत्सव प्रतीकात्मक रूप में बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है। इन दस दिनों में हर दिन का चुनाव ज्योतिषीय सितारे के अनुरूप किया जाता है। इसके अलावा सरस्वती पूजा और थेपोत्सवम भी इस मंदिर में श्रद्धा व उत्साह के साथ मनाए जाते हैं। साथ ही नवरात्रि के पावन पर्व पर भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु मां दुर्गा का आशीर्वाद लेने के लिए पहुंचते हैं।

मंदिर तक कैसे पहुंचें

श्री कनक दुर्गा देवी, मंदिर विजयवाड़ा शहर में पड़ते मण्डीर रेलवे स्टेशन और बस स्टेंड कार या टैक्सी के द्वारा केवल 10 मिनट की दूरी पर स्थित है। इन दोनों स्थानों से बस सुविधा भी उपलब्ध है। हैदराबाद से विजयवाड़ा की दूरी 275 किलोमीटर के करीब है। सीढ़ियों और सड़क मार्ग से होते हुए मंदिर तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। मंदिर तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग जैसा आसान रास्ता होते हुए भी ज्यादातर श्रद्धालु सीढ़ियों के रास्ते से ही मंदिर तक पहुंचकर मां दुर्गा के दर्शन करते हैं। कुछ श्रद्धालु हल्दी के साथ सीढ़ियों को पूजते हुए व सजाते हुए आगे बढ़ते हैं। सीढ़ियों के पूजन को स्थानीय भाषा में ‘मेतला पूजा’ यानि सीढ़ियों का पूजन कहा जाता है।

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धर्मेन्द्र संधू

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