भाई दूज पर जो इंसान अपनी बहन के हाथ का बना भोजन करता है, उसे…

-भाई दूज की यम द्वितीय के रुप में भी है मान्यता

दीपावली के दो दिन बार देश भर में भाई के बहन के प्रति अथाह प्यार व स्नेह को दर्शाता भाई दूज का पर्व धूमधाम से मनाए जाने की परंपरा है। भाई दूज के पर्व को यम द्वितीय के रुप में भी मनाया जाता है। इस पर्व में बहनें अपने भाई की खुशहाली व तरक्की की कामना करती हैं।

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भाई दूज की पौराणिक मान्यताएं
पुरातन समय में कार्तिक शुक्ल द्वितीय को यमुना ने यमराज को अपने घर पर सत्कारपूर्वक भोजन कराया था। उस समय से ही जो इंसान अपनी बहन के हाथ का बना भोजन करता है। उसे उत्तम भोजन सहित धन की प्राप्ति होती है। इसी कारण इस तिथि को यम द्वितीय के रुप में भी मनाया जाने लगा। पद्म पुराण में कहा गया है कि कार्तिक शुक्लपक्ष की द्वितीया को यम की पूजा कर यमुना में स्नान करने वाला मनुष्य यमलोक में नहीं जाता है। वह इस संसार के अवागमन बंधन से मुक्त हो जाता है।

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पर्व मनाने की विधि
कार्तिक शुक्ल द्वितीय पर लोगों को अपने घर में भोजन नहीं करना चाहिए। उन्हें अपनी बहन के घर जाकर उसी के हाथ से बने भोजन का सेवन करना चाहिए। भाईयों को अपनी बहनों की पूजा कर वस्त्र, आभूषण प्रदान करना चाहिए।। सगी बहन के हाथ के बने भोजन का सेवन सबसे उत्तम माना गया है। यदि सगी बहन न तो किसी भी बहन मामा, चाचा, ताया मासी की बेटी के हाथ का बना भोजन करना चाहिए। बहन को अपने भाई का सत्कार करते हुए उसके हाथ-पैर धुलाने चाहिए।

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लोक प्रचलित विधि
एक उच्चासन ( पीढ़ी) पर चावल के घोल से पांच कोण वाली आकृति बनाई जाती है। उसके बीच में सिंदूर लगा दिया जाता है। स्वच्छ जल, 6 कुम्हरे या गेंदा का फूल, सिंदूर, 6 पान के पत्ते, 6 सुपारी, बड़ी इलायची, छोटी इलाइची, जायफल इत्यादि रहते हैं। पीढी पर बिठा कर भाई के दोनों हाथों में चावल का घोल एवं सिंदूर लगा देती है। हाथ में मधु, गाय का घी, चंदन लगा देती है। इसके बाद भाई की अंजलि में पान का पत्ता, सुपारी, कुम्हरे का फूल, जायफल देकर यमुना जी से भाई की लंबी आयु की कामना करती है। इस पर्व का मनाने का मुख्य उद्देश्य साल में भाई बहन के सुख दुख को साझा करना है।

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