भगवान श्री विष्णु के आशीर्वाद से बालक ने धरा तारे का रुप

-आकाश में आज भी विद्यमान है घ्रुव तारा
आकाश में सदियों से घ्रुव तारे के चारों तरफ सप्त ऋषि परिक्रमा करते आ रहे हैं। आखिर आकाश में घ्रुव तारे के चारों तरफ ही क्यों परिक्रमा होती है। घ्रुव ने इस धरती पर एक बालक के रुप में जन्म लिया था। भगवान श्री विष्णु से मिले आशीर्वाद के चलते उसे तारे के रुप में अमर होने का वरदान मिला। आईए, आज आपको बालक ध्रुव के जीवन के बारे विस्तार से जानकारी प्रदान करते हैं।

इसे भी देखें….यहां पर बजरंग बली अपने पुत्र संग हैं विराजमान….

कौन था बालक ध्रुव ?
राजा उत्तानपाद भगवान श्री ब्रह्माजी के मानस पुत्र और स्वयंभू मनु के पुत्र थे। राजा उत्तानपाद की दो पत्नियां सनीति और सुरुचि थीं। सुनीति से बालक ध्रुव और सुरुचि से उत्तम नामक पुत्र ने जन्म लिया। राजा उत्तानपाद अपने दोनों राजकुमारों से एकसमान प्रेम करते थे। रानी सुनीति अपने बेटे ध्रुव के साथ-साथ उत्तम को भी अपना पुत्र मानती थी। जबकि रानी सुरुचि दूसरी रानी सुनीति व उसके बेटे ध्रुव के ईर्ष्या करती थी। एक बार उत्तानपाद उत्तम को गोद में लिए प्यार कर रहे थे। तभी ध्रुव भी वहां आ गया। वह भी अपनी पिता की गोद में बैठ गया। रानी सुरुचि को यह बात अच्छी नहीं लगी। उसने ध्रुव को जबरन गोद से उतार कर बुरा व्यवहार किया। बालक ध्रुव ने सारी घटना की जानकारी अपनी माता से की। तब माता ने कहा कि बेटा भले ही कोई तुम्हारा कितना भी अपमान करें। तुम उसका बुरा नहीं करोगे। जो इंसान दूसरों को दुःख देता है, उसे स्वयं ही उसका फल भोगना पड़ता है। पुत्र! यदि तुम अपने पिता की गोद में बैठना चाहते हो तो भगवान विष्णु जी को प्रसन्न करो। क्योंकि वह तीनों लोकों के स्वामी है। वह परमपिता है। वह तुम्हारे सारे दुखों को दूर कर देंगे।

इसे भी देखें…..जानिए कहां पर स्थापित है…एक लाख छिद्रों (छेदों) वाला अद्धभुत शिवलिंग

बालक ध्रुव ने शुरु की भगवान श्री विष्णु की आराधना
माता सुनीति की बात सुनकर बालक ध्रुव के मन में भगवान श्रीविष्णु के प्रति श्रद्धा के भाव पैदा हो गए। वह घर त्यागकर वन चल दया। वहां पर उसे देवर्षि नारद मिले। उन्होंने बालक ध्रुव को भगवान श्रीविष्णु की पूजा की विधि बताई। बालक ध्रुव ने यमुना में स्नान कर निराहार रहकर भगवान श्री विष्णु की पूजा करनी शुरु कर दी। पांच माह बीतने के बाद वह पैर के एक अंगूठे पर खड़े होकर तपस्या करने लगा। बालक का तपस्या से तेज बढ़ने लगा। उनके तेज का ताप तीनों लोक में पहुंचने लगा। बालक के अंगूठे के भार से पृथ्वी भी दबने लगी। तब भगवान विष्णु भक्त ध्रुव के समक्ष प्रकट हुए।

इसे भी देखें….विश्व का एकमात्र पंचमुखी मंदिर है पशुपति नाथ पर…

भगवान श्री विष्णु के आशीर्वाद से बालक बना तारा
भगवान श्री विष्णु को अपने समक्ष पाकर ध्रुव ने कहा कि भगवन! जब मेरी माता सुरुचि ने अपमानजनक शब्द कहकर मुझे पिता की गोद से उतार दिया था। तब माता के कहने पर मैंने यह निश्चय किया था कि अब मैं केवल आपकी गोद में ही बैठूंगा। यदि आप प्रसन्न होकर मुझे वर देना चाहते हैं तो मुझे अपनी गोद में स्थान प्रदान करें। और मुझे आपकी गोद से कोई भी उतार न सके। तब श्रीविष्णु ने कहा कि वत्स! तुमने केवल मेरा स्नेह पाने के लिए इतना कठोर तप किया है। यह ब्रह्मांड मेरा अंश और आकाश मेरी गोद है। मैं तुम्हें अपनी गोद में स्थान प्रदान करता हूं। आज से तुम ध्रुव नामक तारे के रूप में स्थापित होकर ब्रह्मांड को प्रकाशमान करोगे। तुम्हारा पद सप्तर्षियों से भी बड़ा होगा। वह भी हमेशा तुम्हारी परिक्रमा करेंगे। जब तक यह ब्रह्मांड रहेगा, कोई भी तुम्हें इस स्थान से नहीं हटा सकेगा। अब तुम घर लौट जाओ। कुछ समय के बाद तुम्हारे पिता तुम्हें राज्य सौंपकर वन में चले जाएंगे। पृथ्वी पर धर्मपूर्वक राज्य भोगकर अंत में तुम मेरे पास आओगे। इतना कह कर भगवान श्री विष्णु अंतर्धान हो गए। इस तरह अपनी भक्ति से भगवान विष्णु को प्रसन्न कर बालक ध्रुव संसार में हमेशा के लिए अमर हो गया।

इसे भी देखें…..अद्भुत !! इस मंदिर में पानी से जलता है दीपक

प्रदीप शाही

LEAVE A REPLY