भगवान शिव की कब पूजा हुई शुरु, मिल गया दस्तावेजी प्रमाण…वेद ज्ञाता भी हैरान

-आदि, अनंत, देवों के देव महादेव के पौराणिक, पुरातात्विक प्रमाण

-सृष्टि के आधार, महाकाल भगवान शिव

प्रदीप शाही

भगवान ब्रह्मा जी, भगवान श्री विष्णु हरि और भगवान शिव इन त्रिदेवों में भगवान शंकर की महिमा अपंरपार है। जिस तरह इस ब्रह्मांड का न कोई आगाज और न कोई अंत है। इसी तरह इसका न ओर और न कोई छोर। उसी प्रकार से भगवान शिव भी अनादि हैं। संपूर्ण ब्रह्मांड भगवान शंकर में समाया हुआ है। या यूं कहें कि जब कुछ भी नहीं था, तब भी भगवान शिव थे। और जब कुछ भी नहीं होगा, तब भी भगवान शिव ही होंगे। इसी कारण तो भगवान शिव को महाकाल कहा जाता है। महाकाल यानिकि समय। परमात्मा का यह पावन स्वरूप बेहद कल्याणकारी है। क्योंकि इस पूर्ण सृष्टि का आधार इसी स्वरूप यानिकि भगवान शिव पर ही टिका हुआ है। आज हम आपको देवों के देव महादेव भगवान शंकर के पौराणिक और पुरातात्विक प्रमाण के बारे विस्तार से जानकारी देंगे। सबसे पहले भगवान शंकर के पौराणिक और बाद में पुरातात्विक प्रमाण की जानकारी प्रदान करें।

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पौराणिक प्रमाण

भगवान शिव का पूजन कब से हो रहा…

जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म 599 ईस्वी पूर्व हुआ था। भगवान महावीर  के 250 वर्ष पहले भगवान पार्श्वनाथ का जन्म हुआ था। भगवान पार्श्वनाथ के समय में भगवान शंकर की पूजा होती थी।

भगवान श्री विष्णु जी के अवतार भगवान श्रीकृष्ण का द्वापर युग में जन्म 3100 ईस्वी पूर्व हुआ माना जाता है। यानिकि आज से पांच हजार साल पहले भगवान श्री कृष्ण इस धरती पर अवतरित हुए। श्री कृष्ण के काल में भी भगवान शंकर का पूजन करने के परंपरा थी।

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सतयुग में भगवान श्री विष्णु जी के अवतार भगवान श्री राम का जन्म 5100 ईस्वी पूर्व माना जाता है। यानिकि आज से सात हजार वर्ष पहले भगवान श्री राम इस धरती पर अवतरित हुए थे। श्री राम के काल में भी भगवान शिव की पूजा होती थी। भगवान श्री राम ने श्रीलंका पर फतेह हासिल करने के लिए रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना की थी। इसी काल के दौरान लंकापति रावण को भी भगवान शिव का अनन्य भक्त माना गया है। जिसने भगवान शिव को अपने साथ लंका में ले जाने के लिए कठोर तपस्या की थी।

भगवान श्री राम के पूर्वज वैवस्वत मनु का काल 6600 ईसा पूर्व माना जाता है। जिनके काल में जल प्रलय हुई थी। यानिकि 8600 वर्ष पहले उनका अस्तित्व था। उनके काल में भी भगवान शिव और भगवान श्री विष्णु की पूजा करने की परंपरा थी।

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वेद, पुराण में सम्राट ययाति प्रजापति का उल्लेख मिलता है। आंकड़ों के अनुसार सम्राट ययाति प्रजापति का अस्तित्व 7200 ईस्वी पूर्व माना गया है। यानि कि उनका जन्म आज से 9200 वर्ष पूर्व हुआ था।   उनके काल में भी भगवान श्री ब्रह्मा, भगवान श्री विष्णु हरि जी और भगवान शिव शंकर की पूजा करने का प्रचलन था। सम्राट ययाति प्रजापति ब्रह्मा की 10वीं पीढ़ी में थे।

माथुर ब्राह्मणों के इतिहास अनुसार स्वायंभुव मनु लगभग 9000 ईस्वी पूर्व या इससे अधिक पहले हुए थे। यानिकि इनका जन्म 11 से 12 हजार वर्ष पहले हुआ था। उनके काल में भी भगवान शिव की पूजा करने का विधान था।

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लगभग 12 से 13 हजार ईस्वी पूर्व प्रजापति ब्रह्मा जी के होने की बात स्वीकारी जाती है। यानिकि 15 हजार से अधिक वर्ष पहले। माना जाता है कि इससे पूर्व भी कई अन्य ब्रह्मा विद्यमान थे। उनके काल में भी भगवान शिव की पूजा का प्रचलन था।

पौराणिक इतिहास में भगवान नील वराह के अवतार का काल लगभग 16 हजार ईस्वी पूर्व यानि कि 18 हजार साल पहले माना गया है। वराह कल्प के प्रारंभ में भी भगवान शिव की पूजा की जानकारी मिलती है।

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हिन्दू धर्म की शुरुआत वराह कल्प से ही मानी जाती है। इसके पूर्व महत कल्प, हिरण्य गर्भ कल्प, ब्रह्म कल्प और पद्म कल्प बीच आ चुके हैं। इसकी जानकारी वेदों और पुराणों में समाहित है।

भगवान शिव को आदिदेव, आदिनाथ और आदियोगी के नाम से भी पुकारा जाता है। आदि का अर्थ सबसे प्राचीन प्रारंभिक, प्रथम और आदिम। भगवान शिव को आदिवासियों का देवता भी कहा जाता हैं।

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पुरातात्विक प्रमाण…

भगवान शंकर के पूजन किए जाने के बड़ी संख्या में पुरातात्विक प्रमाण मिलते हैं। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खुदाई के दौरान कई ऐसे अवशेष प्राप्त हुए हैं। जो भगवान शिव की पूजा करने को प्रमाणित करते हैं। वहीं सिंधु घाटी सभ्यता में शिवलिंग व नंदी की प्रतिमा पाया जाना भी  इसका प्रमाण है। भारतीय पुरातत्व विभाग के वैज्ञानिकों के शोधानुसार अनुसार यह सभ्यता 8000 साल पुरानी थी।

प्राचीन शहर मेसोपोटेमिया, असीरिया, मिस्र (इजिप्ट), सुमेरिया और रोमन सभ्यता में भी शिवलिंग की पूजा किए जाने के पुख्ता प्रमाण मिले हैं।

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आयरलैंड के तारा हिल में स्थित एक लंबा अंडाकार रहस्यमय पत्थर रखा हुआ है, जो शिवलिंग की तरह ही है। वहां पर इसे भाग्यशाली पत्थर के तौर पूजा जाता है। यह भी माना जाता है कि  मक्का के संग-ए-असवद भी एक शिवलिंग ही है। जो बेहद प्राचीन है।

तुर्की में एक रूमी के मकबरे के बाहर गार्डन में एक अजीब तरह का गोल पत्थर रखा हुआ था। खोज में पता चला कि वह 4700 वर्ष प्राचीन शिवलिंग है।

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भारत में हजारों वर्ष पुराने सैंकड़ों शिवलिंग हैं। जिनकी प्राचीन मंदिरों में पूजा अर्चना हो रही है। भारत व अन्य पडोसी देशों में स्थापित 12 ज्योतिर्लिंग में प्राण-प्रतिष्ठित शिवलिंग इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हैं।

अरब के मुशरिक, यजीदी, साबिईन, सुबी और इब्राहीमी धर्मों में शिव के होने की छाप स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। इस्लाम से पहले मध्य एशिया का मुख्य धर्म पीगन था। मान्यता अनुसार यह धर्म हिंदू धर्म की एक शाखा ही थी। जिसमें शिव पूजा प्रमुख थी।

ईरान को प्राचीन काल में पारस्य देश कहा जाता था। इसके निवासी अत्रि कुल के माने जाते हैं। अत्रि ऋषि भगवान शिव के परम भक्त थे। जिनके पुत्र का नाम दत्तात्रेय है। अत्रि लोग ही सिन्धु पार करके पारस चले गए थे। जहां उन्होंने यज्ञ का प्रचार किया।

वेदों के रचनाकाल की शुरुआत 4500 ईस्वी पूर्व मानी गई है। वेदों में भी भगवान शिव का उल्लेख मिलता है।

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