भगवान शंकर ने किया भस्म, भगवान श्री कृष्ण के पुत्र रुप में जन्मे…

-माता पार्वती ने दिय़ा आशीर्वाद
क्या आप जानते हैं कि काम, वासना के देव कामदेव को भगवान शंकर ने किस वजह से भस्म कर दिया था। यदि नहीं तो आज हम आपको यह बताते हैं कि कामदेव किस वजह से भस्म हुए। एक देव के भस्म होने पर उत्पन्न हुई स्थिति को ठीक करने के लिए कामदेव ने माता पार्वती के आशीर्वाद से भगवान श्री कृष्ण के पुत्र रुप में जन्म लिया। आखिर इस समूची घटना के पीछे छिपा रहस्य क्या था।

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भगवान शंकर ने क्यों किया था कामदेव को भस्म
कहते हैं कि इस ब्रह्मांड का संचालन त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु औऱ महेश करते हैं। त्रिदेव में से किसी एक के भी विमुख होने से संसार में असंतुलन पैदा हो सकता है। एक बार कुछ यही स्थिति माता सती की मृत्यु के बाद भगवान शंकर पर वैराग्य भावना अपना अधिक प्रभाव छोड़ देती है। वहीं दूसरी तरफ पार्वती के रूप में माता सती का पुनर्जन्म होता है। इस बार भी पार्वती भगवान शिव से विवाह करने की इच्छा जताती हैं, लेकिन शिव के मन में प्रेम और काम भाव नहीं था। वह पूर्ण रुप से वैरागी हो चुके थे। इस वजह से भगवान विष्णु और अन्य सभी देवताओं संसार के कल्याण के लिए कामदेव से सहायता मांगी। कामदेव अपनी पत्नी रति संग मिल कर भगवान शिव के भीतर छिपी काम भाव को जगाने में जुट जाते हैं। कामदेव अपने अनेक प्रयत्नों के द्वारा महादेव को ध्यान से जगाने का प्रयास करते हैं। परंतु महादेव के आगे उनके सभी प्रयास विफल हो जाते हैं। अंत में कामदेव स्वयं भोलेनाथ को जगाने के लिए खुद को आम के पेड़ के पीछे छिपा कर शिव जी पर उस पुष्प-वान चलाते हैं। जो सीधे महादेव के हृदय में लगता है। इससे भोलेनाथ की ममाधि टूट जाती है। समाधि टूटने पर भगवान शिव गुस्से में आकर आम के पेड़ के पीछे छिपे कामदेव को अपने त्रिनेत्र की अग्नि से भस्म कर देते हैं। अपने पति की राख को रति अपने शरीर पर मलकर विलाप करने लगती है। और भगवान शिव से न्याय की मांग भी करती है। पति वियोग में रति अपने पति की पुनः हासिल करने के लिए देवी पार्वती और भगवान शंकर को तपस्या से प्रसन्न करने में जुट जाती है। तब पार्वती माता ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि तुम्हारे पति यदुकुल में भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र के रूप में जन्म लेंगे।

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कामदेव ने श्री कृष्ण के पुत्र रुप में लिया जन्म
भगवान श्री कृष्ण के धरती पर अवतरित होने पर कामदेव रुक्मणी के गर्भ में स्थित हो गये। समय आने पर रुक्मणी ने एक सुन्दर बालक को जन्म दिया। उस बालक का सौन्दर्य, सद्गुण सभी श्री कृष्ण के समान थे। जब राक्षस शंबरासुर को पता चला कि मेरा शत्रु यदुकुल में जन्म ले चुका है, तो वह भेस बदल कर उनके घर पहुंच कर दस दिन के शिशु को उठा कर ले जाता है। बच्चे को मारने के लिए एक समुद्र में फेंक देता है। समुद्र में गिरते ही उस बच्चे को एक मछली निगल जाती है। वहीं उस मछली को एक मगरमच्छ निगल जाता है। इसी दौरान मगरमच्छ एक मछुआरे के जाल में आ फंसता है। जिसे मछुआरे ने शंबरासुर की रसोई में भेज दिया। जब उस मगरमच्छ का पेट फाड़ा गया तो उसमें से अति सुन्दर बालक निकलता है। उसको देख कर शंबरासुर की दासी रति के रुप में धरती पर आई मायावती के आश्चर्य का ठिकाना न रहा। वह उस बालक को पालने लगती है। उसी समय देवर्षि नारद मायावती के पास पहुंच कर बताते हैं कि हे मायावती! यह तेरा ही पति कामदेव है। जिसने यदुकुल में जन्म लिया है। अब तुम इसका से लालन-पालन करो। इतना कह कर नारद जी अंतर्ध्यान हो जाते हैं। उस बालक का नाम प्रद्युम्न रखा गया। कुछ समय बाद प्रद्युम्न युवा हो जाते हैं।

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प्रद्युम्न का रूप इतना अद्भुत था कि वह साक्षात् श्री कृष्ण समान ही प्रतीत होते थे। तब रति ने समूची घटना बता कर उन्हें महा विद्या प्रदान की। प्रद्युम्न को धनुष बाण, अस्त्र-शस्त्र आदि प्रदान कर सभी विद्याओं में निपुण कर दिया। युद्ध विद्या में प्रवीण हो कर प्रद्युम्न शंबरासुर की सभा में जाकर कहते हैं कि अरे दुष्ट! मैं तेरा वही शत्रु हूं, जिसे तुमने समुद्र में डाल दिया था। अब तेरा अंत आ गया है। तब प्रद्युम्न ने महाविद्या के प्रयोग से उसकी माया को नष्ट कर तलवार से शंबरासुर का सिर काट कर पृथ्वी पर डाल दिया। तब मायावती रति प्रद्युम्न को आकाश मार्ग से द्वारिकापुरी ले जाती है। इस तरह प्रद्युमन इस धरती पर जन्म लेने का अपना उद्देश्य पूरा कर वापिस देवलोक को प्रस्थान करते हैं।

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प्रदीप शाही

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