भगवान ब्रह्मा जी के कहने पर ही महर्षि वाल्मीकि ने की श्री रामायण की रचना

-रत्नाकर से बने थे मह्रर्षि वाल्मीकि

महर्षि वाल्मीकि को पुरातन वैदिक काल के महान ऋषियों में प्रमुख स्थान प्राप्त है। परमपिता ब्रह्मा जी के कथनानुसार  महर्षि वाल्मीकि ने भगवान श्री राम के जीवन पर आधारित श्री रामायण महाकाव्य की रचना की थी। पुराणों के अनुसार वाल्मीकि जी को कठोर तपस्या करने पर ही महर्षि का पद प्राप्त हुआ था। महर्षि वाल्मीकि को कई ग्रंथों में आदिकवि के नाम से भी संबोधित किया गया है। आईए, आज आपको पर रत्नाकर से महर्षि वाल्मीकि बनने की समूची घटना से अवगत करवाते हैं।

इसे भी पढें…श्रीलंका में मौजूद यह स्थान जीवंत करते हैं भगवान श्री राम की याद

रत्नाकर से कैसे बने महर्षि वाल्मीकि

धर्म ग्रंथों के अनुसार महर्षि वाल्मीकि का पूर्व नाम रत्नाकर था। वह अपने परिवार के पालन-पोषण के लिए लूट-पाट करते थे। एक बार उन्हें निर्जन वन में नारद मुनि मिले। जब रत्नाकर ने उन्हें लूटना चाहा, तो उन्होंने रत्नाकर से पूछा कि तुम यह काम  किस के लिए करते हो। तब रत्नाकर ने जवाब दिया कि अपने परिवार के पालन पोषण के लिए। तब महार्षि नारद ने कहा कि इस काम के चलते जो तुम पाप कमा रहे हो, क्या तुम्हारा परिवार इसमें तुम्हारा साथ देगा। नारद मुनि के सवाल का जवाब जानने के लिए वह अपने परिवार के पास गए। परिवार के सभी सदस्यों  उन्हें इंकार कर दिया। रत्नाकर ने वापिस आकर यह बात नारद मुनि को बताई। तब नारद मुनि ने कहा कि तुम जिन लोगों के लिए यह बुरा काम कर रहे हो, जब वह तुम्मारा साथ नहीं दे रहे। तो तुम यह पापकर्म त्याग दो।  नारद मुनि की बात सुनकर रत्नाकर के मन में वैराग्य का भाव आ गया। नारद मुनि ने उन्हे राम नाम का जाप करने को प्रेरित किया। रत्नाकर वन में जा कर राम नाम जपने लगे,  लेकिन अज्ञानतावश राम, राम की जगह मरा-मरा जपने लगे। कई वर्षों तक कठोर तप के बाद उनके पूरे शरीर पर चींटियों ने बांबी बना ली। जिस कारण उनका नाम वाल्मीकि पड़ गया। कालांतर में महर्षि वाल्मीकि ने रामायण महाकाव्य की रचना की।

इसे भी पढें…..घट-घट में, कण-कण में है प्रभु श्री राम का वास

भगवान ब्रह्मा की प्रेरणा से की महर्षि वाल्मीकि ने रामायण जी की रचना

रामायण अनुसार जब एक बार महर्षि वाल्मीकि तमसा नदी के तट पर गए। वहां उन्होंने प्रेम करते सारस पक्षी के जोड़े को देखा। वे दोनों पक्षी मधुर बोली बोलते थे। तभी उन्होंने देखा कि एक शिकारी ने सारस के जोड़े में से नर पक्षी का वध कर दिया। तब मादा सारस विलाप करने लगी। उसके इस विलाप को सुन कर महर्षि की करुणा जाग उठी और उनके मुख से ये शब्द निकले।

मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगम: शाश्वती: समा:।

यत् क्रौंचमिथुनादेकमवधी: काममोहितम्॥

अर्थात- हे शिकारी ,  तुझे कभी भी शांति न मिले, क्योंकि तूने इस सारस  के जोड़े में से एक की जान ली। जो काम से मोहित हो रहा था। उसकी बिना किसी अपराध के ही हत्या कर डाली।

जब महर्षि वाल्मीकि अपने आश्रम पहुंचे तब से उनका सारा ध्यान ही उस श्लोक की ओर ही था। इसी दौरान महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में भगवान ब्रह्मा दी आए और उनसे कहा कि आपके मुख से निकला यह छंद श्लोक रूप ही होगा। मेरी प्रेरणा से ही आपके मुख से ऐसी वाणी निकली है। अब आप श्लोक रूप में ही श्रीराम के संपूर्ण चरित्र का वर्णन करें। इस प्रकार ब्रह्माजी के कहने पर महर्षि वाल्मीकि ने रामायण महाकाव्य की रचना की।

इसे भी पढ़ें….आखिर क्यों भगवान श्री राम को धरती पर लेना पड़ा अवतार…

महर्षि वाल्मीकि थे ज्योतिष, खगोल विद्या के प्रकांड पंडित

महर्षि वाल्मीकि ने रामायण महाकाव्य में अनेक स्थानों पर सूर्य, चंद्र व अन्य नक्षत्रों की स्थितियों का वर्णन भी किया है। उन्होंने रावण की मृत्यु के पूर्व राक्षसी त्रिजटा के स्वप्न, श्रीराम के यात्रा मुहूर्त, विभीषण द्वारा लंका के अपशकुनों के बारे में विस्तार में बताया है। इससे पता चलता होता है कि महर्षि वाल्मीकि ज्योतिष विद्या और खगोल विद्या के भी प्रकांड पंडित थे। अपने वनवास काल के दौरान भगवान श्रीराम, लक्ष्मण व माता सीता सहित महर्षि वाल्मीकि के आश्रम गए थे। जब श्रीराम ने माता सीता का परित्याग कर दिया था। तब महर्षि वाल्मीकि ने ही माता सीता को अपने आश्रम में आश्रय दिया था। इससे सिद्ध होता है कि महर्षि वाल्मीकि श्रीराम के समकालीन थे।

इसे भी पढें….प्रभु श्री राम के वंशज आज भी हैं जिंदा….

प्रदीप शाही

LEAVE A REPLY