बरनावा में है आज भी मौजूद महाभारत के लाक्षागृह अवशेष

-लाक्षागृह के पास बनी सुरंग से मिली प्राचीन मूर्तियां

महाभारत काल में कौरवों की ओर से पांचों पांडवों को लाक्षागृह में मारने  की योजना के बारे सभी जानते हैं। परंतु समय रहते जानकारी मिलने के कारण पांचों पांडव कौरवों की कुटिल चाल के जाल में फंसने से बच जाते हैं। महाभारत काल के उस लाक्षागृह के अवशेष और सुरंग आज भी उत्तर प्रदेश का बागपत जिले के बरनावा में मौजूद है। लाक्षागृह और सुरंग के यह साक्ष्य महाभारत काल के होने को प्रमाणित करते हैं।

क्या होता है लाक्ष (लाख)

लक्ष (लाख) एक प्रकार का कीट होता है। लाख कीट कुसुम, खैर, बेर, पलाश, अरहर, शीशम, पंजमन, पीपल, बबूल पेड़ों पर ही पनपता है। यह कीट भारत, बर्मा, इंडोनेशिया तथा थाईलैंड में अधिक उपजते हैं। संस्कृत में इसे लाक्षा कहते है। यह कॉक्सिडी (Coccidae) कुल का कीट है। यह कीट खटमल की प्रजाति है। लाख के शोधन से चपड़ा तैयार होता है। इससे हजारों तरह के सामान बनाए जाते हैं। जिनमें लाख की चूड़ियां प्रमुख हैं। लाख तेजी से जलने वाला पदार्थ है। महाभारत काल में पांडवों को मारने के लिए कौरवों ने इसी लाख से महल का निर्माण करवाया था।

कहां मौजूद हैं महाभारत काल के लाक्षागृह के अवशेष

बरनावा या वारणावत मेरठ से करीब 35 किलोमीटर दूर बागपत जिला में स्थित एक तहसील है। इसकी स्थापना राजा अहिरबारन तोमर ने की थी। यहां पर महाभारत कालीन लाक्षागृह है।  लाक्षागृह के अवशेष मौजूदा समय में यहां  एक टीले के रूप में दिखाई देते हैं। जब पांडवों को पांच गांव दिए तो दुर्योधन ने वारणावत में पांडवों के निवास के लिए पुरोचन नामक शिल्पी से लाक्षागृह  का निर्माण करवाया था। यह भवन लाख, चर्बी, सूखी घास, मूंज जैसे अत्यंत ज्वलनशील पदार्थों से बना था। दुर्योधन ने पांडवों को उस भवन में जला डालने का षड्यंत्र रचा था। धृतराष्ट्र के कहने पर युधिष्ठिर अपनी माता तथा सभी भाइयों के साथ वारणावत जाने के लिए निकल पड़े। दुर्योधन की इस कुटिल चाल के बारे में जब महामुनि विदुर को पता चला।  तो उन्होंने पांडवों से मुलाकात कर कौरवों की चाल बता दी। उन्होंने कहा कि तुम लोग भवन के अंदर से वन तक पहुंचने के लिए एक सुरंग अवश्य बनवा लो। ताकि आग लगने पर तुम लोग अपनी रक्षा कर सको। मैं सुरंग बनाने वाला कारीगर तुम लोगों के पास भेज रहा हूं। जिस दिन पुरोचन ने आग प्रज्वलित करने की योजना बनाई थी। उसी दिन पांडवों ने गांव के ब्राह्मणों और गरीबों को भोजन के लिए आमंत्रित किया। रात में पुरोचन के सोने पर भीम ने उसके कमरे में आग लगाई। धीरे-धीरे आग चारों ओर लग गई। लाक्षागृह में पुरोचन तथा अपने बेटों के साथ भीलनी जलकर मर गई। लाक्षागृह के भस्म होने का समाचार मिलने पर कौरवों ने आग में जल कर मरे पुरोचन, भीलनी और उसके बेटों को पांडवों का शव समझकर अंत्येष्टि करवा दी। लाक्षागृह की सुरंग से निकलकर पांडव  हिंडनी नदी किनारे पहुंच गए थे, जहां पर विदुर द्वारा भेजी गई एक नौका में सवार होकर वे नदी के उस पार पहुंच गए। यह सुरंग आज भी  हिंडन नदी के किनारे पर खुलती है। बागपत व बरनावा तक पहुंचने वाली कृष्णा नदी का यहां हिंडन नदी में मिलन होता है।

 

दुर्योधन ने पांडवों प्रदान किए थे यह पांच गांव

महाभारत में दुर्योधन ने  पांडवों को यह  पांच गांव  पानीपत, सोनीपत, बागपत, तिलपत, वरुपत (बरनावा) यानि पत प्रदान किए थे। महाभारत काल जब श्री कृष्ण संधि का प्रस्ताव लेकर दुर्योधन के पास गए थे, तो दुर्योधन ने कहा था कि वह युद्ध के बिना सुई की नोक बराबर भी जमीन नहीं  देंगे। यह बात सुन कर श्री  कृष्ण ने दुर्योधन के यहां खाना भी नहीं खाया था। वहां से श्री कृष्ण महामुनि विदुर के आश्रम में गए। विदुर का आश्रम आज भी गंगा के उस पार बिजनौर जिले में पड़ता है। वहां पर महामुनि विदुर ने श्री कृष्ण को बथुवे का साग खिलाया था। आज भी इस क्षेत्र में बथुवा अधिक मात्रा में उगता है।

बरनावा में स्थित है एक पांडव किला

बरनावा गांव में महाभारत काल के लाक्षागृह टीला के अलावा  एक सुरंग भी है। इतना ही नहीं यहां पर एक पांडव किला भी है।  जिसमें अनेक प्राचीन मूर्तियां देखी जा सकती हैं। कुछ समय पहले टीले के पिलर तो कुछ असामाजिक तत्वों ने तोड़ दिया था।  पांडव किला  गांव के दक्षिण में लगभग 100 फीट उंचाई पर स्थित है। यह किला 30 एकड़ भूमि पर फैला हुआ है। लाक्षागृह के टीले के नीचे दो सुरंगें भी बनी हुई है। मौजूदा समय में टीले के पास की भूमि पर एक गौशाला, श्रीगांधीधाम समिति, वैदिक अनुसंधान समिति तथा महानंद संस्कृत विद्यालय स्थापित है।

देहरादून में भी हैं एक लाक्षागृह के अवशेष

देहरादून के लाखामंडल में भी एक लाक्षागृह मिला है। यह लाक्षागृह देहरादून से 125 किमी दूर यमुना किनारे ‌मौजूद लाखामंडल चकराता से 60 किमी दूर है। जमीन में दो फीट की खुदाई करने से ही यहां हजारों साल पुरानी कीमती मूर्तियां निकली थी। यहां एक सुरंग भी है। जिसके चलते इसके लाक्षागृह होने की अटकलें लगाई गईं। लाक्षागृह गुफा के अंदर स्थित शेषनाग के फन के नीचे प्राकृतिक शिवलिंग के ऊपर टपकता पानी इस गुफा की खासियत है। इस लाक्षागृह के मिलने के बाद महाभारत काल में और भी लाक्षागृह बनाने की जानकारी मिली है। इस स्‍थान को मौजूदा समय में आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की निगरानी में रखा गया है।

प्रदीप शाही

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