पंचतत्वों में असंतुलन, हो सकता है प्रलयकारी

-कौन से हैं पंचतत्व यानिकि पंचमहाभूत

प्रदीप शाही

हमारे इस समूचे ब्रह्मांड को एक आलौकिक शक्ति संचालित करती है। यह समूचा ब्रह्मांड पंचतत्वों आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी का संगम है। यदि इन पंचतत्वों में कहीं भी असंतुलन हो जाए, तो यह सभी के लिए प्रलयकारी हो सकता है। पंचतत्व के हर तत्व के स्वामी ग्रह भी हैं। पंचतत्व को पंचमहाभूत के नाम से भी पुकारा जा सकता है। सबसे खास बात यह है कि मानव का यह शरीर इन्हीं पंचतत्वों का ही समावेष है। इतना ही नहीं मानव शरीर में भी पांच इंद्रियां जीभ, नाक, कान, त्वचा और आंखों का अहम रोल है। पंचतत्वों में से किसी भी तत्व का अंसतुलित होना जीवन के लिए घातक सिद्ध हो सकता है। आईए विस्तार से जानते हैं कि आखिर पंचतत्व क्या है।

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आकाश
पंचतत्वों में सर्वप्रथम तत्व आकाश का स्वामी ग्रह गुरु है। आकाश एक ऐसा क्षेत्र है। जो अनंत है। जिसकी कोई सीमा नहीं है। पृथ्वी के अलावा समूचा ब्रह्मांड इस तत्व का कारकत्व शब्द है। वात और कफ इस तत्व की धातु हैं। आकाश का विशेष गुण शब्द है। और शब्द का सीधा संबंध हमारे कानों से है। क्योंकि कानों से हम सुनते हैं। शब्द जब हमारे कानों तक पहुंचते है। तभी हम कुछ सुन पाते हैं। सुनने के बाद ही इसका अर्थ समझ निकलता है। वेद औऱ पुराणों में शब्द, अक्षर और नाद को ब्रह्म स्वरुप माना गया है। आकाश में होने वाली सभी गतिविधियां गुरुत्वाकर्षण, प्रकाश, चुंबकीय़ क्षेत्र और तरंगों में परिवर्तित होती है। इस परिवर्तन का सीधा असर इंसान के जीवन पर पड़ता है। आकाश का देवता भगवान शिव जी को माना गया है।

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वायु
पंचतत्वों में दूसरे तत्व वायु का स्वामी ग्रह शनि हैं। इस तत्व का कारकत्व स्पर्श है।  इस तत्व के अधिकार क्षेत्र में श्वांस क्रिया आती है। वात इस तत्व की धातु है। गौर हो धरती चारों तरफ से वायु से घिरी हुई है। वायु में ही मानवों के अलावा जीव, जंतूओं को जीवित रखने वाली आक्सीजन गैस मौजूद होती है। आक्सीजन के बिना मानव जीवन के बारे सोचा भी नहीं जा सकता है। प्राचीन समय में हमारे ऋषियों मुनियों ने वायु में दो गुणों शब्द तथा स्पर्श का समावेष पाया। शब्द का संबंध कानों से औऱ स्पर्श का संबंध त्वचा से माना गया है। वायु तत्व के देवता भगवान विष्णु को माना गया है।

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अग्नि

पंचतत्व के तीसरे तत्व का स्वामी ग्रह अग्नि है। सूर्य और मंगल, अग्नि प्रधान ग्रह माने गए हैं। अग्नि का कारकत्व रुप है। अग्नि का अधिकार क्षेत्र जीवन शक्ति है। अग्नि तत्व की धातु पित्त है। यह पूर्णतया सत्य है कि सूर्य की रोशनी (अग्नि) से ही इस धरती पर जीवन संभव है। यदि सूर्य ता प्रकाश इस धरती पर न हो, तो चारों तरफ अंधकार ही अंधकार होगा। प्रकाश के बिना इस धरती पर किसी भी प्रकार के जीवन की कल्पना भी ही नहीं की जा सकती है। सूर्य की अग्नि (रोशनी) सभी ग्रहों को ऊर्जा तथा प्रकाश प्रदान करती है। शब्द, स्पर्श के अलावा रुप को भी अग्नि का गुण माना जाता है। रुप का संबंध आंखों से माना गया है। ऊर्जा का मुख्य स्त्रोत अग्नि है। सभी प्रकार की ऊर्जा चाहे वह सौर ऊर्जा ही क्यों न हो इन सभी का आधार अग्नि है। अग्नि स्वयं भी देवों की श्रेणी में आते हैं। इसके अलावा सूर्य देव को भी अग्नि का ही प्रतिरुप माना गया है।

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जल
पंचतत्व में चौथा तत्व जल है। चंद्र और शुक्र दोनों को ही जल तत्व ग्रह कहा जाता है। यानि कि जल तत्व के स्वामी चंद्र और शुक्र हैं। जल तत्व का कारकत्व रस को माना गया है। रस यानिकि तरल पदार्थ। इंसान, जीव, जंतूओं में बहने वाला रक्त भी इस तत्व का हिस्सा माना गया है। कफ धातु इस तत्व के अंतर्गत आती है। ऋषियों ने जल के चार गुण शब्द, स्पर्श, रुप और रस को माना है। यहां रस का अर्थ स्वाद भी माना गया है। स्वाद हो या रस। इसका सीधा संबंध हमारी जीभ से है। इस धरती पर मौजूद सभी प्रकार तरल पदार्थ जल तत्व के अधीन आते हैं। यह भी पूर्णतौर से सत्य है कि जल के बिना जीवन संभव नहीं है। सबसे खास बात यह है कि जल से ऊर्जा का उत्पादन किया जा सकता है। वरुण और इंद्र को जल का देवता माना गया है। जबकि भगवान श्री ब्रह्मा जी को भी जल का देवता कहा जाता है।

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पृथ्वी
पंचतत्व में पांचवा तत्व पृथ्वी है। इसका स्वामी ग्रह बुध है। इस तत्व का कारकत्व गंध है। इस तत्व के तहत धातु, वात, पित्त और कफ आती हैं। गंध का सीधा संबंध नाक से होता है। गंध के माध्यम से ही हम अपने आसपास में होने वाली कई तरह की गतिविधियों को सहज ही समझ पाते हैं। पृथ्वी के पांच गुण शब्द, स्पर्श, रुप, स्वाद तथा आकार माने गए हैं। आठ वसुओं अहश, ध्रुव, सोम, धरा, अनिल, अनल, प्रत्यूष और प्रभास को धरती के देवताओं के रुप में पूजा जाता है।

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