यहां छूने से मिलती है जादुई ऊर्जा, और ये लगाया तो हो जाएगा बेड़ा पार

-सिद्धिविनायक भगवान श्री गणेश के पूजन और तिलक धारण के बिना पूजा अधूरी

-धार्मिक अनुष्ठान के शुभारंभ से पहले इसे धारण करना है अनिवार्य

हिंदू संस्कृति में सदियों से सिद्विविनायक भगवान श्री गणेश जी के पूजन और तिलक धारण किए बिना कोई भी पूजा, पाठ, यज्ञ और धार्मिक अनुष्ठान का शुभारंभ शुभ नहीं माना गया है। तिलक धारण किए बिना पूजा अधूरी मानी गई है। धार्मिक मान्यतानुसार पूजा पाठ दौरान सूने मस्तक को अशुभ माना गया है। किसी भी परिवार में महिलाओं को सौभाग्य का प्रतीक माना गया है। यही कारण है कि विवाहिताओं के मस्तक पर बिंदी और मांग में सिंदूर लगाने की परंपरा कायम है। माथे पर चंदन, रोली, कुमकुम, सिंदूर, भस्म के तिलक लगाए जाते हैं। हिंदू आध्यात्म में असली पहचान तिलक से ही होती है। आईए आज आपको बताएं कि कितने तरह के तिलक और क्यों लगाए जाते हैं। भारत की इस प्राचीन परंपरा में तिलक लगाने से महिला हो या पुरुष को किस-किस तरह से लाभ मिल सकते हैं।

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तिलक लगाना एक संस्कार

हिंदू प्राचीन संस्कृति में सदियों से धर्म में सभी धार्मिक कार्य, शुभ काम, यात्रा करने के समय तिलक संस्कार की परंपरा है। तिलक लगाना देवी के आशीर्वाद का प्रतीक माना जाता है। मनुष्य के मस्तक पर तिलक लगाने वाले स्थान पर भगवान श्री विष्णू का निवास माना गया है। मस्तक के मध्य ललाट जहां पर तिलक लगाया जाता है, इस भाग को आज्ञाचक्र कहा जाता है। तिलक लगाए जाने वाले स्थान पर पीनियल ग्रंथि होती है। जिसे छूने मात्र से ही एक विशेष ऊर्जा की अनुभूति होती है। तिलक लगाने से इंसान का व्यक्तित्व प्रभावशाली बनाता है। साथ ही चहेरे पर तेज आता है, पापों का नाश होता है, ग्रहों की शांति के लिए तिलक लगाया जाता है। तिलक या त्रिपुंड चंदन का होता है। चंदन की प्रकृति शीतल मानी गई है। शीतल चंदन जब मस्तक पर लगाया जाता है, तो वह हमें सकारात्मक उर्जा व तनाव से दूर रखने में मदद करता है।

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वैज्ञानिक भी मानते हैं तिलक का विशेष महत्व

वैज्ञानिकों अनुसार मस्तक पर तिलक लगाने से हमारे भीतर सकारात्मक प्रवाह शुरु हो जाता है। हमारे मन की उदासीनता समाप्त हो कर शरीर में उत्साह पैदा होता है। तिलक लगाने से सिरदर्द, तनाव की समस्या में भी कमी आती है। तिलक लगाने से मन स्थिर, शांत होता है।

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भारत में अलग-अलग तिलक लगाने की प्रथा

भारत के विभिन्न राज्यों में में अलग-अलग तरीकों से तिलक लगाए जाने की परंपरा है। सनातन धर्म में शैव, शाक्त, वैष्णव और अन्य मतों के अलग-अलग तिलक होते हैं। आमतौर पर चंदन, कुमकुम, मिट्टी, हल्दी, भस्म, रौली के तिलक या टीका लगाया जाता है। शैव परंपरा में ललाट पर चंदन का त्रिपुंड लगाया जाता है। शाक्त मत के समर्थक सिंदूर का तिलक लगाते हैं। क्योंकि सिंदूर को उग्रता का प्रतीक माना गया है। इस धारण करने से शक्ति में वृद्धि होती है। वैष्णव परंपरा में चौंसठ प्रकार के तिलक लगाए जाते हैं। परंतु इसमें लालश्री तिलक प्रमुख है। इस तिलक के तहत चंदन के मध्य में कुमकुम या हल्दी की खड़ी रेखा बनाई जाती है। विष्णुस्वामी तिलक में माथे पर दो चौड़ी खड़ी रेखाओं से बनाई जाती है। इस तिलक को आंखों की भौहों के मध्य तक लगाया जाता है। साधु व संन्यासी आमतौर से से भस्म का तिलक लगाते हैं।

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तिलक लगाने की विधि

तिलक लगाने के बिना सत्कर्म को सफल नहीं माना जाता है। तिलक को हमेशा बैठकर लगाना और लगवाना चाहिए। सबसे पहले तिलक भगवान को लगाया जाना चाहिए। इसके बाद बचे हुए चंदन, कुमकुम को अपने माथे पर लगाना चाहिए।

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ज्योतिषशास्त्र में है तिलक लगाने का खास महत्व 

ज्योतिषशास्त्र में कालपुरूष की गणना प्रथम राशि मेष से की गई है। वहीं महर्षि पराशर के ज्योतिष सिद्धांत अनुसार मस्तक के मध्य वाले स्थान पर मेष राशि स्थित है। जिसका स्वामी मंगल ग्रह है। सिंदूरी लाल रंग मेष राशि का रंग माना गया है। इसीलिए लाल रोली या सिंदूर का तिलक मेष राशि वालों के माथे पर लगाया जाता है।

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हमारे ऋषि, वैज्ञानिक भी

हमारे सभी ऋषि, वैज्ञानिक भी थे। आपने कई बार कुछ लोगों को  अपनी आंखों पर पट्टी बांध कर भी कई कार्य आसानी से करते देखा होगा। इसका मुख्य कारण पीनियल ग्रंथि को जागृत करना होता है। यदि हम आंखे बंद करके बैठ जाएं। अन्य कोई आदमी हमारे मस्तक के मध्य भाग के बिल्कुल पास अपनी तर्जनी अंगुली ले आए। तो वहां हमें कुछ विचित्र अनुभव होगा। इसे ही तीसरा नेत्र भी कहा जाता है। इसीलिए इस केंद्र पर जब तिलक अथवा टीका लगाया जाता है, तो उससे आज्ञाचक्र को नियमित रुप से उत्तेजना मिलती है।

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तिलक पर चावल क्यों लगाए जाते हैं

तिलक लगाने के बाद माथे पर चावल के दाने लगाए जाते हैं। माथे पर आंखों की भौहों के मध्य जहां तिलक लगाया जाता है, वो स्थान अग्नि चक्र कहलाता हैं। यहीं से पूरे शरीर में शक्ति का संचार माना गया है। चावलों को शुद्धता का प्रतीक माना गया है। शास्त्रों अनुसार चावल को देवताओं को चढाए जाने वाला शुद्ध अन्न माना जाता है। वहीं हल्दी के तिलक का भी विशेष लाभ है। हल्दी में एंटी बैक्टीरियल तत्व अधिक होते हैं। इस कारण हल्दी का तिलक कई तरह के रोगों को दूर करता है।  चंदन का तिलक लगाने से माता लक्ष्मी की विशेष अनुकंपा प्राप्त होती है। साधु-सन्यासी राख से भी तिलक लगाते हैं। कुछ खास मंदिरों में भी भस्म से तिलक लगाने की परंपरा है। भस्म के तिलक को अध्यात्मिक दृष्टि से अहम माना गया है। क्यों कि जिस तरह से अग्नि में जलने से सभी अशुद्धियां समाप्त हो जाती हैं। उसी तरह माथे पर भस्म का तिलक इंसान को पापों से मुक्त कर लाभ प्रदान करता है।

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प्रदीप शाही

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