देखो!! इंसानी मांस खाने वाले और शव से संबंध बनाने वाले अघोरी साधू

12 साल बाद आने वाले कुंभ व अर्ध कुंभ पर्व पर बड़ी संख्या में साधू व महात्मा पहुंते हैं। कुंभ के इस पावन पर्व पर नागा साधू मुख्य रूप से आकर्षण को केंद्र होते हैं। इस दौरान सबसे पहले शाही स्नान भी इन साधूओं द्वारा ही किया जाता है। नागा साधूओं के स्नान के बाद ही बाकी श्रद्धालु पावन गंगा में स्नान करते हैं। नागा साधूओं के अलावा एक और साधू भी होते हैं। जो इनसे काफी भिन्न होते हैं। इन साधूओं को अघोरी साधू कहते हैं। लेकिन लोग इन नागा साधूओं को ही अघोरी साधू समझ लेते हैं। लेकिन अघोरी साधूओं और नागा साधूओं में कई अंतर होते हैं। कहा जाता है कि अघोरी कभी भी कुंभ में नहीं जाते।

अघोर शब्द का अर्थ

संस्कृत भाषा में अघोर शब्द का अर्थ है ‘उजाले की ओर’। अघोर शब्द मुख्य रूप से दो शब्दों के मेल से बना है-‘अ’ और ‘घोर’। इसका अर्थ हुआ जो घोर ना हो बल्कि  सहज और सरल हो। इस धरती पर जन्म लेने वाला हर मनुष्य अघोर होता है मतलब सहज और सरल होता है। लेकिन जैसे-जैसे वह बड़ा होता है और दुनियावी चक्र में पड़ता है। उसमें असहजता आनी शुरू हो जाती है कहने का मतलब वह इंसान अघोर नहीं रहता।

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क्या है अघोर साधना

कहा जाता है कि अघोरी मुख्य रूप से तीन प्रकार की साधना करते हैं-श्मशान साधना, शव साधना और शिव साधना। माना जाता है कि अघोर साधना के द्वारा ही मानव फिर से अपने सहज रूप में आ सकता है। अघोरी साधू अर्थात् अघोर सम्प्रदाय के साधक मुख्य रूप से श्मशान में ही साधाना करते हैं। नर मुंडों अर्थात मानव की खोपड़ी की माला पहनते हैं और नर मुंडों से बने पात्रों में ही खान-पान करते हैं। इस साधना के दौरान अघोरी साधू मुर्दे की चिता की राख को अपने शरीर पर मलते हैं और चिता की आग में ही भोजन आदि पकाते हैं। अघोरियों की दृष्टि में महल या श्मशान में कोई भेद नहीं होता। वह इस साधना के दौरान खुद को सहज महसूस करते हैं।

शिव और शव के उपासक हैं अघोरी साधू

अघोरी साधू भगवान शिव की उपासना करते हैं। क्योंकि भगवान शिव के पांच रूपों में एक रूप ‘अघोर’ भी है। अघोरी मानते हैं कि भगवान शिव सम्पूर्ण हैं और जड़ और चेतन दोनों रूपों ही विद्यमान हैं। भगवान दत्तात्रेय को भी  अघोरशास्त्र का गुरु माना जाता है। अघोरी साधू भगवान दत्तात्रेय को भगवान शिव का ही अवतार मानते हैं। अघोर पंथ में बाबा किनाराम की पूजा एक संत के रूप में की जाती है। मत है कि भगवान शिव ने खुद अघोर सम्प्रदाय या पंथ को प्रतिपादित किया था।  अघोरी शव से शिव की प्राप्ति वाली धारणा को अपनाते हैं और मानव शव पर बैठकर साधना करते हैं। शव साधना अघोर पंथ की मुख्य निशानी है।

अघोरी साधूओं और नागा साधूओं में अंतर

नागा साधू मुख्य रूप से किसी ना किसी अखाड़े के साथ जुड़े होते हैं। नागा साधूओं की परीक्षा व अभ्यास अखाड़ों में होता है जबकि अघोरी साधूओं को अघोरी बनने के लिए श्मशान में कठोर तप करना पड़ता है। खास बात यह है कि अघोरी साधू व नागा साधू बनने के लिए 12 साल तप करना पड़ता है।

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अघोर साधूओं के प्रमुख स्थान

काशी या वाराणसी को प्रमुख अघोर स्थान के रूप में जाना जाता है। यहां पर अघोर साधूओं के संत बाबा किनाराम से संबंधित तीर्थ स्थल भी मौजूद है। साथ ही गुजरात का  जूनागढ़ भी अघोरियों का महत्वपूर्ण स्थान है। अघोरी साधू जूनागढ़ को भगवान दत्तात्रेय का तप स्थान मानते हैं।

अघोरी साधूओं से जुड़े कुछ तथ्य व धारणाएं

शव का मांस खाना

कहा जाता है कि अघोरी साधू श्मशान में ही साधना करते हैं और चिता से अधजले शव का मांस खाते हैं। इस बात को अघोरी खुद भी स्वीकार करते हैं कि यह क्रिया उनकी साधना का हिस्सा है। उनका मानना है कि इस क्रिया से तंत्र शक्ति प्रबल होती है।

शव के साथ संबंध बनाना

कहा जाता है कि अघोरी अन्य साधूओं की तरह ब्रह्मचार्य का पालन नहीं करते बल्कि शवों के साथ शारीरिक संबंध भी बनाते हैं। अघोरी इस क्रिया को शिव और शक्ति की उपासना का एक ढ्रंग कहते हैं। उनका मानना है कि अगर इस क्रिया के समय भी मन ईश्वर के ध्यान में लीन है तो इससे ऊपर साधना या उपासना नहीं हो सकती। इसके अलावा अघोरी जीवित इंसानों के साथ भी शारीरिक संबंध बनाते हैं। इनका मानना है कि मासिक धर्म के दौरान स्त्री से संबंध बनाने से शक्ति बढ़ती है।

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जानवरों में केवल कुत्ता पालते हैं

कहा जाता है कि अघोरी इंसान से लेकर गाय, बकरी तक सबसे दूरी बनाकर रखते हैं और केवल कुत्ता पालते हैं।

किसी से कुछ नहीं मांगते अघोरी

एक यह धारणा भी है कि अघोरी साधू दूसरे अन्य साधूओं की तरह किसी से कुछ नहीं मांगते और यह हर जगह पर किसी को दिखाई भी नहीं देते। इनका प्रमुख साधना स्थल श्मशान भूमि ही होती है।

अघोरियों का है साधना का अलग तरीका

अघोरियों का भगवान की पूजा-अर्चना का तरीका आम लोगों से बिल्कुल भिन्न है। आम लोग या इंसान पूजा के समय पूरी तरह से सफाई व पवित्रता का ध्यान रखते हैं। वहीं यह अघोरी साधू मानते हैं कि गंदगी में पवित्रता को ढूंढना ही सही अर्थों में ईश्वर को पाना है। उनका कहना है कि हर इंसान एक अघोरी के रूप में जन्म लेता है। अघोरी गंदगी और अच्छाई को एक दृष्टि से देखते हैं बिल्कुल वैसे ही जैसे एक छोटा बच्चा गंदगी और भोजन में कोई अंतर नहीं कर पाता।

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अघोरियों के पास है कई बीमारियों की दवा

अघोरी साधूओं का मानना है कि उनके पास लाइलाज बीमारियों का इलाज है। कई बीमारियों के लिए वह दवाईयां बनाते हैं। लेकिन हैरान करने वाली बात यह है कि वह इन दवाईयों का निर्माण मानव शरीर की हड्डियों से निकाले गए तेल से करते हैं। उनका कहना है कि यह तेल वह जलती हुई चिता से शव से निकालते हैं।

भांग का सेवन

अघोरी भांग का सेवन करते हैं। अघोरियों का मानना है कि भांग व गांजे का सेवन करने से ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलती है।

धर्मेन्द्र संधू

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