जानिए !! भारत की पहली तांत्रिक यूनिवर्सिटी के बारे में…..

-तांत्रिक यूनिवर्सिटी के नाम से विख्यात था… यह प्राचीन मंदिर

-संसद जैसा दिखता है यह मंदिर

भारत के हर कोने में विभिन्न देवी-देवताओं से संबंधित मंदिर मौजूद हैं। इन मंदिरों में भगवान के कई रूपों के दर्शन होते हैं। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो किसी समय में तंत्र-मंत्र के लिए काफी प्रसिद्ध था। इस मंदिर में देश-विदेश से तंत्र-मंत्र के माहिर  और  तंत्र-मंत्र सीखने व जानने के चाहवान अकसर आते थे। यहां तक कि इस मंदिर को तांत्रिक यूनिवर्सिटी के तौर पर जाना जाता था।

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मध्य प्रदेश के मुरैना शहर पर दशकों तक डाकुओं का राज था क्योंकि यह इलाका चंबल में आता है। इस इलाके में आम इंसान तो क्या पुलिस भी जाने से डरती थी। इस इलाके से डाकुओं की हुकूमत खत्म होने के बाद कई रहस्यों से पर्दा उठा। वास्तुकला का एक ऐसा उदाहरण सामने आया जिसे देख सभी हैरान हो गए। वह था ‘चौंसठ योगिनी मंदिर’। इससे भी बड़ी हैरान करने वाली बात यह है कि देश के संसद भवन का ढांचा भी पूरी तरह से इस मंदिर के ढांचे से मेल खाता है।

भारत में चार चौसठ योगिनी मंदिर मौजूद हैं। इन में से दो मध्य प्रदेश और दो ओडिशा में हैं।  इन चौसठ योगिनी मंदिरों में सबसे प्राचीन और प्रमुख मंदिर मध्य प्रदेश के मुरैना में स्थित है।

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मंदिर में हैं चौंसठ कमरे

इस मंदिर के निर्माण के बारे में कोई सटीक जानकारी नहीं मिलती लेकिन इतिहासकारों का मानना है कि इस मंदिर को सजाने संवारने का कार्य महाराजा देवपाल द्वारा करवाया गया था। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इस मंदिर का निर्माण क्षत्रिय राजाओं ने 1323 ई. में करवाया था। यह मंदिर गोलाकार रूप में बना हुआ है। 200 सीढ़ियां चढ़ने के बाद इस मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। इस मंदिर में 64 कमरे बने हुए हैं और हर कमरे में एक-एक शिवलिंग स्थापित है। मंदिर के बिल्कुल बीचोबीच यानि मध्य में एक खुला मंडप बना हुआ है। इस मंडप में एक विशाल शिवलिंग स्थापित है। यह प्राचीन मंदिर 101 खंभों पर खड़ा है। इस मंदिर को इकंतेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है।

इस लिए कहा जाता है चौंसठ योगिनी मंदिर

मंदिर में मौजूद 64 कमरों में स्थापित शिवलिंगों के साथ देवी योगिनी की मूर्तियां भी स्थापित थी। बाद में कुछ मूर्तियां इस मंदिर से चोरी हो गई थी कुछ मूर्तियों को दिल्ली स्थित संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है। चौंसठ योगिनियों की मूर्तियों के कारण ही इस मंदिर को चौंसठ योगिनी मंदिर कहा जाता है। माना जाता है कि नौवीं शताब्दी में यह मंदिर तंत्र साधना का एक प्रमुख केन्द्र था और इस मंदिर में शिव की योगिनियों को जागृत करने की कला सिखाई जाती थी जिसे भूतकाल, भविष्य और वर्तमान को काबू करने की साधना कहा जाता है। यह चौंसठ योगिनियां काली देवी का अवतार मानी जाती हैं। घोर नामक दैत्य से युद्ध के दौरान मां काली ने यह अवतार लिए थे। यह योगिनियां तंत्र और योग विद्या से संबंधित हैं।

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पक्षियों को भी नहीं है रात को रुकने की इजाज़त

कहा जाता है कि आज भी यह प्राचीन मंदिर भगवान शिव की तंत्र साधना के कवच से ढका हुआ है। इस मंदिर में किसी को भी रात को रुकने की इजाज़त नहीं है, इंसान पर तो यह आदेश लागू होते ही हैं साथ ही किसी पक्षी को भी इस मंदिर में रात को ठहरने की आज्ञा नहीं है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने इस मंदिर को ऐतिहासिक स्मारक घोषित किया है।

भारतीय संसद से मिलती है इस मंदिर की वास्तुकला

आज दिल्ली में मौजूद भारतीय संसद भवन की वास्तुकला इस मंदिर से काफी हद तक मिलती जुलती है। कहा जाता है कि ब्रिटिश आर्किटेक्ट एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर ने भारतीय संसद का निर्माण किया था। यह प्राचीन मंदिर ना केवल बाहर से ही संसद भवन जैसा है बल्कि इसके खंभे भी बिल्कुल वैसे ही हैं। क्योंकि चौंसठ योगिनी मंदिर 101 खंभों पर टिका है और संसद भवन इसी प्रकार के 144 खंभों पर खड़ा है। लेकिन संसद भवन के निर्माण को लेकर एक तथ्य यह भी है कि चाहे संसद भवन की इमारत का ढांचा इस प्राचीन मंदिर से मेल खाता है लेकिन फिर भी माना जाता है कि इन दोनों ब्रिटिश वास्तुकारों में से कोई भी उस इलाके में नहीं गया था जहां पर चौंसठ योगिनी मंदिर स्थित है और ना ही इनमें से किसी ने यह मंदिर देखा। लेकिन आज तक यह रहस्य बना हुआ है कि इन दोनों इमारतों के निर्माण कार्य में इतनी समानता कैसे है।

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तांत्रिकों का लगता था जमावड़ा

एक समय में चौंसठ योगिनी मंदिर में देश-विदेश के तांत्रिकों का जमावड़ा लगता था। इस मंदिर को तांत्रिक यूनिवर्सिटी कहा जाता था। विदेश से भी लोग इस स्थान पर तांत्रिक सिद्धियां और विद्या हासिल करने के लिए आते थे।  आज भी चौंसठ योगिनी मंदिर में कुछ तांत्रिक यज्ञ करते हैं।

धर्मेन्द्र संधू

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