जब विघ्नहर्ता श्री गणेश जी की, नारद मुनि ने की मदद

-भगवान श्री विष्णु हरि व माता लक्ष्मी का विवाह

प्रदीप शाही

भगवान श्री गणेश जी का सभी देवी-देवताओं से पहले पूजन करने की परंपरा है। भगवान शिव शंकर और माता पार्वती के सुपुत्र भगवान श्री गणेश जी विघ्नहर्ता, विनायक, रिद्धि-सिद्धि के मालिक जैसे कई अलंकारों से सुशोभित हैं। भगवान गणेश जी अपने भक्तों की हर समस्या, हर दुविधा का हमेशा निवारण करते हैं। क्या आप जानते हैं कि एक बार विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश के समक्ष आई दुविधा का समाधान भगवान श्री ब्रह्मा जी के पुत्र नारद मुनि ने किया था। आखिर क्या थी वह समस्या। जिसका भगवान श्री गणेश जी स्वयं ही समाधान नहीं कर सके। आपको यह बता दें कि भगवान श्री गणेश जी के समक्ष यह समस्या भगवान श्री विष्णु हरि जी व माता लक्ष्मी जी के विवाह के पावन पर्व के दौरान उत्पन्न हुई थी।

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भगवान श्री गणेश जी को देवताओं ने क्यों नहीं दिया न्यौता

कहा जाता है स्वर्गलोक में भगवान श्री विष्णु हरि जी और माता लक्ष्मी जी के पावन विवाह का उत्सव था। सभी देवी-देवता विवाह पर्व की तैयारियों में व्यस्त थे। भगवान विष्णु जी स्वयं सभी को न्यौता भेजने में मशगूल थे। वहीं दूसरी तरफ सभी देवता, माता लक्ष्मी जी को प्रभावित करने के उद्देश्य से बारात को बड़ी धूमधाम से कुंदनपुर ले जाने की योजनाएं बना रहे थे। सभी देवता, भगवान श्री विष्णु जी के घर एकत्रित होना शुरू हो गए थे। तभी सभी देवताओं ने देखा भगवान श्री गणेश जी भी भगवान श्री विष्णु जी के घर आ रहे हैं। सभी देवता इस बात से चिंतित होने लग गए। वह नहीं चाहते थे कि भगवान श्री गणेश जी इस विवाह में शिरकत करें। इसका प्रमुख कारण यह था कि हाथी के सिर वाले, मोटी तौंद वाले, अधिक खाना खाने वाले भगवान श्री गणेश देखने में काफी अजीब लगते हैं। इसी वजह से देवता भगवान श्री गणेश जी के साथ चलने में बेहद संकोच कर रहे थे। तभी देवताओं ने भगवान श्री विष्णु जी से प्रार्थना की कि वह भगवान श्री गणेश जी को शादी में सम्मलित न होने दें। उन्हें स्वर्गलोक की ही देखभाल करने को कहें। जबकि भगवान श्री विष्णु जी को देवताओं का यह तर्क अनुचित लगा। परंतु सभी देवताओं के जोर देने पर भगवान श्री विष्णु जी ने भगवान श्री गणेश जी से निवेदन किया कि वह स्वर्गलोक में रहें। श्री गणेश जी को अपने आप को बारात में न ले जाने के तर्क पर गुस्सा भी आया। परंतु उन्होंने भगवान श्री विष्णु जी के अनुरोध को स्वीकार कर लिया।

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नारद मुनि ने भगवान श्री गणेश जी की दुविधा का किया समाधान

भगवान श्री गणेश जी को भगवान श्री विष्णु हरि और माता लक्ष्मी जी के विवाह में शामिल न होने के स्थान पर स्वर्गलोक में ही रुकने की बात पर काफी गुस्सा आय़ा। आखिर इस समस्या का समाधान नारद मुनि ने आकर किया। नारद मुनि ने श्री गणेश जी के समक्ष एक योजना सुझाई। उन्होंने कहा कि गणेश जी की सवारी मूषक है। और मूषक समूची चूहा प्रजाति का प्रमुख है। यदि मूषक सभी चूहों को आदेश दें तो सभी चूहे कुंदनपुर पहुंचने वाली बारात के रास्ते को खोद डालें। ताकि बारात कुंदनपुर न पहुंच सके। भगवान श्री गणेश जी को नारद मुनि का सुझाव बेहद पंसद आया। उन्होंने अपने प्रिय वाहन मूषक को आदेश दिया। मूषक का आदेश मिलते ही सभी चूहों ने कुंदनपुर पहुंचने वाले सारे रास्ते को खोद डाला। रास्ता खोदे जाने के कारण बारात को राह पर चलने में समस्या आ गई। भगवान श्री विष्णु जी के रथ का पहिया चूहों के कारण खोदे गए गड्ढे में फंस गया। बारात को वहीं रुकना पड़ा। रथ का पहिया काफी कोशिश करने के बाद भी नहीं निकाला जा सका।

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पास में ही एक किसान अपने खेत में काम कर रहा था। उसने उनकी मदद करने की पेशकश की। देवताओं ने किसान को पहिया निकालने के लिए कहा। किसान ने पहिए को पकड़ते ही भगवान श्री गणेश जी का उद्घोष लगाते हुए जोर लगा कर राह में फंसे पहिए को बाहर निकाल दिया। सभी देवता इस घटना को देख कर हैरान हो गए। बारात में सम्मलित देवताओं ने किसान से पूछा कि तुमने भगवान श्री गणेश का उद्घोष ही क्यों किया। तब किसान ने कहा कि भगवान श्री गणेश ही एकमात्र ऐसे देव हैं, जो किसी भी विघ्न को हर लेते हैं। आज भी उन्होंने ऐसा ही किया। इस घटना के घटित होने पर बारात में सम्मलित सभी देवता बेहद शर्मिंदा हुए। उन्हें यह महसूस हुआ कि किसी की शारीरिक सुंदरता का कोई भी महत्व नहीं होता है। तभी सभी देवताओं ने स्वर्गलोक पहुंच कर भगवान श्री गणेश जी से माफी मांगते हुए विवाह में सम्मलित होने की प्रार्थना की। इस तरह से नारद मुनि ने श्री गणेश जी के समक्ष आई समस्या का समाधान किया और इस तरह से भगवान श्री गणेश जी, माता लक्ष्णी के विवाह में सभी देवी देवताओं संग सम्मलित हुए।

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