गढ़ो में गढ़ चित्तौडग़ढ़ बाकि सब गढ़ैया …..

भारत का एक ऐसा किला जिसको विश्व विरासत स्थल समिति द्वारा 21जून, 2013 में युनेस्को विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया तथा जो विश्व संस्कृति की दृष्टि से भी मानवता के लिए महत्वपूर्ण हैं। कुछ खास परिस्थितियों में ऐसे ऐतहासिक स्थलों को इस समिति द्वारा आर्थिक सहायता भी दी जाती है| भारत का यह किला राजस्थान के चित्तौडग़ढ़ में है | चित्तौड़गढ़ का किला भारत का सबसे विशाल किला है। यह किला इतिहास की सबसे खूनी लड़ाईयों का गवाह भी रहा है| चित्तौड़गढ़ के किले को राजस्थान का गौरव एवं सभी किलो का सिरमौर भी कहा जाता हैं | साथ ही यह भी कहा जाता है कि गढ़ तो चित्तौड़गढ़ और सब गढ़ैया | वास्तव में इस दुर्ग का निर्माण इस तरह हुआ है कि पर्यटकों को यह अब भी विस्मय व रोमांच से भर देता है | यहाँ पर तीन बार जौहर भी किया गया था | किले में प्रवेश करने के लिए लगातार सात दरवाजे थोड़ी थोड़ी दूरी पर बनाए गये थे। किले में प्रवेश करना शत्रुओं के लिए बहुत ही मुश्किल था परन्तु यह किला विस्तृत मैदान के बीच एक लम्बी पहाड़ी पर बना है जो अन्य पर्वत श्रेणियों से अलग हो जाता है। इस कारण शत्रुओं द्वारा किले का घेरा डालकर किले में इस्तेमाल होने वाले राशन का पहुँचाना रोक दिया जाता था। इस किले का जब-जब घेरा डाला गया तब-तब यह भोजन-सामग्री होने तक ही सुरक्षित रहा है । भोजनादि सामग्री खत्म होते ही राजपूतों को विवश होकर युद्ध के लिए किले का द्वार खोलना पड़ता था। लेकिन शत्रुओं की बड़ी सेना होने के कारण अक्सर उन्हें हार का सामना करना पड़ता था। 

इस किले में तीन बड़े ऐतिहासिक युद्ध लड़े गए है| इसके लिए जिम्मेदार चाहे वास्तु को माना जाए या धार्मिक परम्पराओं को माना जाए | युद्ध में हार का कारण यही रहा है| पहला ऐतिहासिक हमला तब हुआ था जब सूर्य देवता की सोने की मूर्ति हटाकर माँ काली की मूर्ति स्थापित की गई थी हालाँकि राजपूत देवी के उपासक होते है परन्तु उत्तर से सूर्य देवता की मूर्ति हटाना वास्तु के और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गलत माना जाता रहा है | 

दूसरा ऐतिहासिक हमला तब हुआ था जब चित्तोड का मुख़्य द्वार जो की उत्तर पूर्व में था और काफी चढ़ाई पर होने के कारण द्वार वहा से हटाकर दक्षिण पश्चिम में कर दिया गया जो कि वास्तु के हिसाब से गलत है | इसके बाद जो युद्ध हुआ था उसमें भी हार का सामना करना पड़ा था | इसी तरह तीसरे युद्ध में भी हार होने के बाद यह किला फिर कभी आबाद नहीं हुआ जबकि यह इकलौता राजवंश है जो 1400 सालो तक कायम रहा है |

किले में प्रवेश के लिए सात द्वारा से होकर जाना पड़ता था | जिन्हे पोल कहा जाता था | हर पोल का एक अलग नाम है और एक इतिहास साथ जुड़ा है |
पाडन पोल
पाडन पोल किले का पहला प्रवेश द्वार है। यह भी कहा जाता है कि एक बार भीषण युद्ध में खून की नदी बहने पर एक पाड़ा (भैंसा) बहता-बहता यहाँ तक आ गया था। इसी कारण इस प्रवेश द्वार को पाडन पोल कहा जाता है। 

रावत बाघसिंह स्मारक
किले के प्रथम द्वार पाडन पोल के बाहर ही एक चबूतरे पर रावत बाघसिंह का स्मारक बना हुआ है। गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह ने जब चित्तौड़ पर आक्रमण किया तो रावत बाघसिंह ने मेवाड़ का राज्य चिन्ह धारण कर महाराणा विक्रमादित्य का प्रतिनिधित्व किया तथा लड़ता हुआ इसी दरवाजे के पास वीरगति को प्राप्त हुआ | शहीद बाघसिंह की स्मृति में यह स्मारक बनाया गया है।

भैरव पोल
पाडन पोल से कुछ ही दूरी पर उत्तर की तरफ चलने पर दूसरा दरवाजा आता है, जिसे भैरव पोल कहा जाता है। सन् 1534 में गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह के साथ युद्ध करते हुए भैरोंदास मारे गये थे।जिनके नाम इस दरवाजे का नाम रखा गया है|

जयमल व कल्ला की छतरियाँ
भैरव पोल के पास दाहिनी ओर दो छतरियाँ बनी हुई है। जब बादशाह अकबर ने चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण किया उस समय सेनापति सीसोदिया पता तथा मेड़तिया राठौर जैमल, दोनों किले के रक्षक थे | जैमल एक टूटी दीवार की मरम्मत करा रहे थे, उस समय अकबर की गोली से उनकी एक टांग बेकार हो गयी। लंगड़े जैमल को कल्ला अपने कंधों पर बिठाकर दूसरे दिन के युद्ध में उतारा तो उन दोनों ने मिलकर शत्रु सेना पर कहर ढा दिया। अन्त में दोनों अलग अलग स्थानों पर वीरगति को प्राप्त हुए । ये छतरियाँ उन्हीं की याद में बनायीं गई हैं।

हनुमान पोल
किले के तीसरे प्रवेश द्वार को हनुमान पोल के नाम से जाता है क्योंकि हनुमान जी का मंदिर पास में ही है और हनुमान जी की मूर्ति चमत्कारिक एवं दर्शनीय भी हैं। कहा जाता है कि हनुमान जी अक्सर मन्नत पूरी कर देते है | 

गणेश पोल
किले का चौथा द्वार गणेश पोल है जो हनुमान पोल से कुछ आगे दक्षिण की ओर मुड़ने पर आता है| इस द्वार के पास ही गणपति जी का मंदिर है।

जोड़ला पोल
यह किले का पाँचवां द्वार है और छठे द्वार के बिल्कुल पास होने के कारण इसे जोड़ला पोल कहा जाता है।

लक्ष्मण पोल
किले के इस छठे द्वार के पास एक छोटा सा लक्ष्मण जी का मंदिर है जिसके कारण इसका नाम लक्ष्मण पोल पड़ा |

राम पोल
लक्ष्मण पोल से आगे सातवें द्वार को राम पोल कहते है, जिससे होकर किले के अन्दर प्रवेश किया जाता हैं। यह दरवाजा किला का अन्तिम प्रवेश द्वार है। इस दरवाजे के बाद चढ़ाई समाप्त हो जाती है। इस दरवाजे के पास ही महाराणाओं के पूर्वज माने जाने वाले सूर्यवंशी भगवान श्री रामचन्द्र जी का मंदिर है। यह मंदिर भारतीय स्थापत्य कला एवं हिन्दू संस्कृति का उत्कृष्ट उदाहरण है। दरवाजे से प्रवेश करने के बाद उत्तरी मार्ग की ओर बस्ती है तथा दक्षिण की ओर जाने वाले मार्ग से किले के कई दर्शनीय स्थल दिखाई देते हैं। 

पत्ता का स्मारक
रामपोल में प्रवेश करते ही सामने की तरफ चबूतरे पर सीसोदिया पत्ता के स्मारक का पत्थर है। आमेर के रावतों के पूर्वज पत्ता अकबर की सेना से लड़ते हुए इसी स्थान पर वीरगति को प्राप्त हुए थे। 

कुकड़ेश्वर का कुण्ड तथा कुकड़ेश्वर का मंदिर
रामपोल से प्रवेश करने के बाद सड़क उत्तर की ओर जाती है। उससे थोड़ी ही दूरी पर दाहिनी ओर कुकड़ेश्वर का कुंड है, जिसके ऊपर के भाग में कुकड़ेश्वर का मंदिर है। कहा जाता है कि ये दोनों रचनाएं महाभारत कालीन है तथा पाण्डव पुत्र भीम से जुड़ी हैं। इस कुंड में पानी दो गऊ के मुख के सामान छोटे छोटे द्वारों से निरंतर आता रहता है | बारहों महीने पानी कभी भी बंद नहीं होता है| यहाँ नहाने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है | निरंतर पहाड़ो से स्वतः पानी आने की वजह से किले में आक्रमण के समय भी कभी पानी की कमी नहीं हुई |

लाखोटा की बारी
रत्नेश्वर कुंड से थोड़ी दूर पर पहाड़ी के पूर्वी किनारे के समीप लाखोटा की बारी है। यह एक छोटा सा दरवाजा है, जिससे दुर्ग के नीचे जा सकते हैं। कहा जाता है कि इसी द्वार के पास अकबर की गोली से जयमल लंगड़ा हो गया था।

जैन कीर्ति स्तम्भ
लाखोटा की बारी से राज टीले तक सड़क दक्षिण में मुड़ जाती है, वही पर बायीं ओर 75 फीट ऊँचा, सात मंजिलों वाला एक स्तम्भ बना है यह स्तम्भ नीचे से 30 फुट तथा ऊपरी हिस्से पर 15 फुट चौड़ा है तथा ऊपर की ओर जाने के लिए तंग सीढ़ी बनी हुई हैं। इस पर आदिनाथ की 5 फुट ऊँची दिगम्बर जैन मूर्ति खड़ी है तथा बाकी के भाग पर छोटी-छोटी जैन मूर्तियाँ खुदी हुई हैं। इस स्तम्भ के ऊपर की छत्री बिजली गिरने से टूट गई थी तथा इससे इमारत को बड़ी हानि पहुँची थी। महाराणा फतह सिंह जी ने इस स्तम्भ की मरम्मत करवाई। 

महावीर स्वामी का मंदिर
जैन कीर्ति स्तम्भ के पास ही महावीर स्वामी का मन्दिर है। इस मंदिर का जीर्णोद्धार पुरातत्व विभाग ने पुनः किया है। 

मीरा का मंदिर
यहाँ मीराबाई का भी मंदिर है जिसमे कृष्ण की प्रतिमा है | कहा जाता हैं कि मीराबाई कृष्ण की भक्ति में लीन होकर घंटो इस मंदिर में बैठी रहती थी| साधु संतो से तर्क वितर्क करती रहती थी |

नीलकंठ महादेव का मंदिर
महावीर स्वामी के मंदिर से थोड़ा आगे एक मंदिर और है | यह नीकण्ठ महादेव का मंदिर है। कहा जाता है कि महादेव की इस विशाल मूर्ति को भीम अपने बाजूओं में बांधे रखते थे। 

सूरजपोल
नीलकंठ महादेव के मंदिर के बाद किले में पूरब की तरफ एक दरवाजा आता है, जो सूरज पोल के नाम से जाना जाता है। यहाँ से किले के नीचे मैदान में जाने के लिए एक रास्ता बना हुआ है। 

इतिहास में इस विरासत का अपना अलग ही महत्व रहा है अब युनेस्को ने भी इसे विश्व विरासत स्थल घोषित कर दिया है|

-वंदना

LEAVE A REPLY