क्या हैं नागा साधूओं के वस्त्र और श्रृंगार ?

-विभूति, भभूत, भस्म शमशान की राख को किया जाता है धारण
हम सभी ने देवों के देव महादेव भगवान शंकर की छवि को भस्म युक्त देखा होगा। इतना ही नहीं सिर से लेकर पांव तक भभूत लगाने वाले नागा साधु या सन्यासियों के बारे हम सभी ने सुना या उन्हें देखा होगा। आखिर क्या कारण हैं कि यह शिव व अग्नि के भक्त अपने समूचे शरीर पर हर पल भभूत को धारण किए रहते हैं। क्या आप इन नागा साधूओं या सन्यासियों के भभूत धारण किए जाने के पीछे गहन रहस्य को जानते हैं। यदि नहीं तो आईए आपको इस बारे जानकारी प्रदान करते हैं। विभूति, भस्म को शरीर, मस्तक पर लगाने के क्या-क्या लाभ होते हैं। हिंदू धर्म का यदि गहन अध्ययन किया जाए। तो दिन के आठों पहर में होने वाली सभी प्रक्रियाएं इंसान के समुचित विकास में अहम रोल अदा करती हैं। हर प्रक्रिया का अपना-अपना महत्व होता है। केवल हमारे समझने भर की जरुरत है।

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भभूत, भस्म, शमशान की राख का कहां होता है उपयोग ?

हिंदू धर्म में नागा साधूओं या सन्यासियों की ओर से अपने पूरे शरीर पर भभूत धारण करने की परंपरा है। शिव और अग्नि के भक्त माने जाने वाले यह नागा साधु केवल अर्ध कुंभ या कुंभ में ही प्रकट होते हैं। नागा साधुओं में से केवल दिगंबर नागा साधु ही अपने समूचे शरीर पर भस्म या भभूत लगाते हैं। यह भस्म या भभूत ही इनका वस्त्र और श्रृंगार होता है। माना जाता है कि यह भस्म या भभूत ही इन्हें सभी आपदाओं से बचाती है। माना जाता है कि कुछ नागा बाबा और योगी तो चिता की राख को शुद्ध करके उसे अपने शरीर पर मलते हैं। कई बार शमशान से मिली राख का इस्तेमाल नहीं हो पाता है। तो विकल्प के तौर पर गाय के गोबर से भस्म तैयार की जाती है। अगर किसी कारणवश यह भस्म भी इस्तेमाल नहीं हो पाती है। तो चावल की भूसी से भस्म तैयार की जाती है। जबकि कुछ नागा साधु अपने धूने की राख को ही अपने शरीर पर धारण करते हैं। मस्तक पर आड़ा भभूत लगा तीनधारी तिलक लगाने वाले नागा साधु इस तिलक को त्रिपुंड कहते हैं। यह नागा साधु अक्सर धुनी रमाकर ही रहते हैं।

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कैसे बनती है भभूत ?

भभू‍त बनाने की की प्रक्रिया बेहद लंबी होती है। हवन कुंड में पीपल, पाखड़, रसाला, बेलपत्र, केला व गाय के गोबर को भस्म किया जाता है। कुंड में बची इस भस्म की सामग्री की राख को कपड़े से छानकर कच्चे दूध में मिला कर इसको लड्डू का आकार दे दिया जाता है। इसके बाद इसे सात बार अग्नि में तपा कर फिर कच्चे दूध से बुझाया जाता है। इस तरह से तैयार भस्म को समय-समय पर लगाया जाता है। यही भस्म नागा साधुओं का वस्त्र होता है। जिसे पर सिर से लेकर पैर तक धारण किए रहते हैं।

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पवित्र भस्म लगाने से मिलती है सकारात्मक उर्जा

विभूति या पवित्र भस्म के इस्तेमाल के कई पहलू हैं। सुबह घर से निकलने से बड़ी संख्या में लोग पावन भस्म या विभूति को अपने मस्तक, गले के मघ्य गड्ढे, छाती औऱ जीभ पर लगाते हैं। ताकि वह अपने आस-पास ईश्वरीय तत्व को महसूस कर सकें। माना जाता है कि विभूति से निकलने वाली उर्जा किसी को देने या किसी तक पहुंचाने का एक बढ़िया माध्यम है। विभूति को शरीर पर लगाने का एक सांकेतिक महत्व भी है। ताकि इंसान को जीवन की नश्वरता की याद दिलाती रहे। जिस भी अंग पर इस ग्रहण किया जाता है। वह अंग संवेदनशील हो जाते हैं।

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भगवान शिव का होता भभूत से अभिषेक

कई शिवालयों में तो शिव लिंग का पूजन भी भभूत से करने की प्रथा प्रचलित है। क्योंकि भभूत देवों के देव महादेव भगवान शंकर को अत्यंत प्रिय है। सांई बाबा के मंदिर में भी भक्तों को उनकी धूनी से निकलने वाली विभूति प्रदान की जाती है। जिसे भक्त अपने प्रभु के प्रसाद के रुप में ग्रहण करते हैंय़ यहां पर इसे उदी कहा जाता है।

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विभूति का इस्तेमाल कैसे किया जाए?

आमतौर पर विभूति को अंगूठे और अनामिका के बीच लेकर उठाया जाता है। परंतु यह प्रक्रिया ठीक नहीं है। विभूति को अनामिका से लगा कर मस्तक पर भौंहों के बीच स्थित आज्ञा चक्र पर लगाना चाहिए। गले के गड्ढे में जहां विशुद्धि चक्र, छाती के मध्य में जहां अनाहत चक्र होता है। वहां पर विभूति को धारण करना चाहिए। विभूति को छाती के मध्य अनाहत चक्र पर लगाने से जीवन में प्रेम की वृद्धि होती है। विशुद्धि चक्र पर लगाने से जीवन में शक्ति की संचार होता है। विभूति को आज्ञा चक्र पर इसलिए लगाया जाता है। ताकि जीवन में ज्ञान के रूप में ग्रहण किया जा सके।

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विभूति धारण करने के पीछे छिपा है गहरा विज्ञान

विभूति धारण करने के पीछे गहरा विज्ञान छिपा है। जबकि कुछ लोग केवल इसे लकीर का फकीर बन माथे पर धारण कर लेते हैं। जबकि विभूति शारीरिक और मानसिक रुप से हमें शांति प्रदान करती है। इसके सेवन से कई रोगों से राहत मिलती है। भगवान शंकर अपने पूरे शरीर पर भस्म लगाते हैं। पौराणिक कथाओं अनुसार इससे वह इस बात का संदेश देते हैं कि यह समूची सृष्टि नश्वर है। जो इस संसार में आया है। उसे एक न एक दिन राख बन धरती में ही समाना है। माथे पर विभूति लगाने से इंसान के भीतर समाई नकारात्मक उर्जा का नाश होता है। यह भी माना गया है कि विभूति धारण करने वाले शख्स मानसिक रूप से बहुत ही शांत और मजबूत होता है। वहीं वास्तु और ज्योतिष अनुसार विभूति लगाने से आसपास के वातावरण में सकारात्मक उर्जा प्रवाहित होती है।

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प्रदीप शाही

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