क्या वास्तव में तेजोमहालय शिव मंदिर ही है ताजमहल ?

-1155 में राजा परमर्दिदेव के शासनकाल में हुआ था ताजमहल का निर्माण

ताजमहल का निर्माणकाल, ताजमहल में शिव मंदिर होने के बारे लंबे समय से विवाद जारी हैं। ताजमहल की भव्य इमारत पर हुए शोधकार्यों में सैंकड़ों चिह्न इस बात को प्रमाणित करते हैं कि इन चिह्नों का दोबारा निर्माण किया गया था। जबकि ताजमहल का निर्माण शाहजहां के शासनकाल के स्थान पर शिव भक्त राजा परमर्दिदेव के शासनकाल में 1155 में हुआ माना गया है। इतना ही नहीं ताजमहल के वास्तविक स्थान पर तेजोमहालय शिव मंदिर होने पर भी विवाद है।

आगरा शहर का प्राचीन इतिहास

इतिहासकारों अनुसार मौजूदा शहर आगरा को प्राचीनकाल में अंगिरा कहा जाता था। क्योंकि यह स्थान ऋषि अंगिरा की तपोभूमि थी। अं‍गिरा ऋषि भगवान शिव के उपासक थे। प्राचीन काल से आगरा में पांच शिव मंदिर नागनाथेश्वर, बालकेश्वर, पृथ्वीनाथ, मनकामेश्वर और राजराजेश्वर थे। शहरवासी सदियों से इन शिव मंदिरों में पूजन करते थे। मौजूदा समय में बालकेश्वर, पृथ्वीनाथ, मनकामेश्वर और राजराजेश्वर नामक चार शिव मंदिर शेष हैं। पांचवें नागनाथेश्वर शिव मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठित अग्रेश्वर महादेव तेजोमहालय  सदियों पूर्व ताजमहल का नाम दे दिया गया था। प्राचीन तेजोमहालय मौजूदा ताजमहल से कई गुणा विशाल था। मुहम्मद गौरी सहित कई मुस्लिम आक्रांताओं ने तेजोमहालय को तोड़ा और उसको लूटा। वास्तुकला के विश्वकर्मा वास्तुशास्त्र नामक प्रसिद्ध ग्रंथ में भी तेज-लिंग का उल्लेख मिलता है। मौजूदा ताजमहल में तेज-लिंग प्रतिष्ठित था। असल में इसका नाम तेजोमहालय था।

ताजमहल के हिंदू मंदिर होने के मिले हैं कई प्रमाण

शोधकर्ताओं के पास ताजमहल के हिंदू मंदिर होने के कई सबूत मौजूद हैं। मुख्य गुंबद  के किरीट पर स्थापित कलश हिंदू मंदिरों की तरह है। यह शिखर कलश 1800 ई. तक स्वर्ण का था। मौजदा समय में यह कांस्य का बना हुआ है। हिंदू मंदिरों पर स्वर्ण कलश स्थापित करने की परंपरा सदियों से है। इस अष्टधातु कलश पर चंद्रमा भी बना हुआ है।  उसके मध्य दंड के शिखर पर नारियल की आकृति बनी है। नारियल के तले दो झुके हुए आम के पत्ते और उसके नीचे कलश दर्शाया गया है। उस चंद्राकार के दो नोक और उनके बीचोबीच नारियल का शिखर मिलाकर त्रिशूल का आकार बना है। जो भगवान शिव का प्रमुख चिह्न है। इसका शिखर एक उलटे रखे कमल से अलंकृत है। हिंदू और बौद्ध मंदिरों पर ऐसे ही कलश बने होते हैं। कब्र के ऊपर गुंबद के मध्य से अष्टधातु की एक जंजीर लटक रही है। शिवलिंग का जलाभिषेक करने वाला कलश इसी जंजीर पर टंगा रहता था। इस कलश को निकाल कर  शाहजहां के खजाने में जमा करा दिया गया। परंतु यह  जंजीर लटकी रह गई। उस पर लॉर्ड कर्जन ने एक दीप लटकवा दिया, जो मौजूदा समय में भी लगा है।  इतिहासकार पुरुषोतम ओक ने ताजमहल पर किए शोधकार्य में बताया गया कि ताजमहल को पहले ‘तेजो महल’ कहते थे। मौजूदा ताजमहल में 700 चिह्न हैं, जो इस बात को प्रमाणित करते हैं कि इनका दोबारा निर्माण किया गया है। इनकी मीनारें असल ताजमहल की इमारत के बहुत बाद के काल में निर्मित की गई थी। इतिहासकार ओक की लिखत पुस्तक में ताजमहल के हिंदू निर्माण का साक्ष्य देने वाले काले पत्थर पर अंकित एक संस्कृत शिलालेख लखनऊ के वास्तु संग्रहालय के ऊपर तीसरी मंजिल में रखा हुआ है। यह सन् 1155 का है। उसमें राजा परमर्दिदेव के मंत्री सलक्षण द्वारा कहा गया है कि ‘स्फटिक जैसा शुभ्र इन्दुमौलीश्‍वर (शंकर) का मंदिर बनाया गया। (वह इ‍तना सुंदर था कि) उसमें निवास करने पर शिवजी को कैलाश लौटने की इच्छा ही नहीं रही। ताजमहल के बाग में काले पत्थरों का एक मंडप था। लखनऊ में पड़ा संस्कृत शिलालेख इसी मंडप का हिस्सा था। तहखाने के अंदर कब्र वाले कमरे में केवल सफेद संगमरमर के पत्थर लगे हैं। जबकि अटारी व कब्रों वाले कमरे में पुष्प लता की पच्चीकारी की गई है। इससे साफ जाहिर होता है कि मुमताज के मकबरे वाला कमरा ही शिव मंदिर का गर्भगृह है। इतना ही नहीं संगमरमर की जाली में 108 कलश चित्रित है। हिंदू परंपरा अनुसार 108 की संख्या को पवित्र माना जाता है।

मुमताज के देहांत के बाद शुरु हुआ था ताजमहल का निर्माण

भारतीय इतिहास में यह पढ़ाया जाता है कि ताजमहल का निर्माण कार्य 1632 में शुरू होकर 1653 में पूर्ण हुआ। गौर करने वाली बात यह है कि जब मुमताज का इंतकाल 1631 में बुरहानपुर के बुलारा महल में हुआ था। वहीं उन्हें दफना दिया गया था। अब सवाल यह है कि उनकी कब्र ताजमहल में कैसे बनाई गई। वहीं ताजमहल का तो निर्माण 1632 में शुरु हुआ था। इस तरह से अंग्रेज और मुस्लिम इतिहासकारों ने 18वीं सदी में लिखा इतिहास सही नहीं माना जा सकता है। असल बात यह है कि 1632 में हिंदू शिव मंदिर को इस्लामिक लुक देने का कार्य शुरू हुआ। 1649 में इसका मुख्य द्वार बना कर इस पर कुरान की आयतें लिखी  गईं। इतिहासकार ओक अनुसार जेए मॉण्डेलस्लो ने मुमताज की मृत्यु के सात साल बाद voyoges and travels into the east indies नाम से निजी पर्यटन के संस्मरण में आगरे का उल्लेख किया। किंतु ताजमहल के निर्माण का कोई उल्लेख नहीं किया। जबकि टॉम्हरनिए अनुसार ताजमहल के निर्माण में 20 हजार मजदूर 22 वर्ष तक काम करते रहे थे। यदि इतना बड़ा निर्माण था तो मॉण्डेलस्लो भी अपने आगरा के संस्मरण उस विशाल निर्माण कार्य का उल्लेख अवश्य करता। उस समय 3.2 करोड़ रुपये की राशि खर्च की गई बताई जाती है। मौजूदा समय में यह राशि 6.8 हजार करोड़ रुपये बनती है। गौर हो ताज के पास बहने वाली नदी के तरफ के लगे दरवाजे की लकड़ी के एक टुकड़े की एक अमेरिकन प्रयोगशाला में कार्बन जांच करवाई गई।  उस जांच में पता चला है कि लकड़ी का वह टुकड़ा शाहजहां काल से भी 300 वर्ष पुराना था। क्योंकि ताज के दरवाजों को 11वीं सदी से ही मुस्लिम आक्रामकों द्वारा कई बार तोड़कर खोला गया है। असल में ताज को 1115 में शाहजहां के समय से लगभग 500 वर्ष पूर्व बनवाया गया था।

पढ़ाए जा रहे इतिहास में है विरोधाभास

इतिहास मुताबिक ताजमहल का निर्माण शहनशाह शाहजहां ने मुमताज की याद में बनवाया था। दुनिया भर में ताजमहल को प्रेम का प्रतीक माना जाता है, लेकिन कुछ इतिहासकार इससे स्वीकार नहीं करते हैं। मुमताज से विवाह होने से पूर्व शाहजहां के कई अन्य विवाह हुए थे। इस तरह मुमताज की मौत के बाद  उसकी कब्र के लिए अनोखा खर्चीला ताजमहल बनवाने का कोई कारण नजर नहीं आता। वहीं मुमताज किसी सुल्तान या बादशाह की बेटी भी नहीं थी। मुमताज का नाम चर्चा में इसलिए आया, क्योंकि युद्ध के रास्ते में बेटी को जन्म देते समय उसकी मौत हो गई थी। सबसे खास बात यह भी है कि शाहजहां के बादशाह बनने के बाद ढाई-तीन वर्ष में ही मुमताज की मृत्यु हो गई थी। शाहजहां का अधिक समय युद्ध कार्य में ही व्यस्त रहा था। साथ ही इतिहास में कहीं भी मुमताज और शाहजहां के प्रेम का उल्लेख नहीं है। जिस शाहजहां ने जीवित मुमताज के लिए एक महल तक नहीं बनवाया। वह उसके मरने के बाद भव्य महल क्यों बनवाएगा। यह तो अंग्रेज शासनकाल के इतिहासकारों की मनगढ़ंत कल्पना है जिसे भारतीय इतिहासकारों ने विस्तार दिया। इतिहासकारों अनुसार ताजमहल को शाहजहां ने नहीं बनवाया था। वह तो पहले से बना हुआ था। उसने इसमें हेर-फेर करके इसे केवल इस्लामिक लुक प्रदान करवाई। जिसे बाद में शाहजहां और मुमताज का मकबरा बना दिया गया। उल्लेखनीय है कि शाहजहां को उसके पुत्र औरंगजेब ने आगरा के किले में कैद कर दिया था। शाहजहां की मौत के बाद उसे उसकी पत्नी के बराबर में ही दफना दिया गया था। वहीं दूसरी तरफ आगरा से 600 किलोमीटर दूर बुरहानपुर में मुमताज की कब्र है, जो आज भी ज्यों‍ की त्यों है। फिर एक महिला की दो कब्र क्यों बनाई गई। इतना ही नहीं ताजमहल में एक कब्र तहखाने में और एक कब्र उसके ऊपर की मंजिल के कक्ष में है। दोनों ही कब्रों को मुमताज का बताया जाता है। जिन संगमरमर के पत्थरों पर कुरान की आयतें लिखी हुई हैं उनके रंग में पीलापन है। जबकि शेष पत्थर ऊंची गुणवत्ता वाले शुभ्र रंग के हैं। यह इस बात का प्रमाणित करते हैं कि कुरान की आयतों वाले पत्थर बाद में लगाए गए हैं।

शाहजहां ने ताजमहल में छिपा कर रखी थी लूट की दौलत

इतिहासकार ओक की लिखित पुस्तक अनुसार शाहजहां ने यहां पर अपनी लूट की दौलत को छिपा कर रखा हुआ था। इसीलिए इसे कब्र के रूप में प्रचारित किया गया। यदि शाहजहां ने चकाचौंध कर देने वाले ताजमहल का असल में निर्माण किया होता तो इतिहास में ताजमहल में मुमताज को किस दिन बादशाही ठाठ के साथ दफनाया गया, इस बारे उल्लेख अवश्य किया होता। इस बात को स्वीकार करना ही होगा कि ताज के भीतर मुमताज की लाश दफनाई गई थी। न कि लाश दफनाने के बाद उसके ऊपर ताज का निर्माण किया गया था। माना जाता है कि मुमताज को दफनाने के बहाने शहजहां ने राजा जयसिंह पर दबाव डालकर उनके महल (ताजमहल) पर कब्जा किया।उनके द्वारा लूटा गया खजाना छुपाकर सबसे नीचे वाले भाग में रखा। जो आज भी मौजूद माना जा रहा है। ब्रिटिश ज्ञानकोष अनुसार ताजमहल परिसर में ‍अतिथिगृह, पहरेदारों के लिए कक्ष, अश्वशाला का होना हैरान करता है। आखिर मृतक के लिए इन सबकी क्या आवश्यकता थी। ताज के दक्षिण में एक प्राचीन पशुशाला है। वहां पर पालतू गायों को बांधा जाता था। मुस्लिम कब्र में गाय कोठा होना एक असंगत बात को दर्शाता है। नदी के पिछले भाग में हिंदू बस्तियां, बहुत से हिन्दू प्राचीन घाट और प्राचीन शमशानघाट हैं। यदि शाहजहां ने ही ताज को बनवाया होता तो इन सबको नष्ट कर दिया होता। यह बात को प्रमाणित करता है कि मौजूदा ताज वाले स्थान पर तेजोमहालय शिव मंदिर था।

‘महल’ शब्द मुस्लिम शब्द नहीं है

महल शब्द मुस्लिम नहीं है। फिर कब्रगाह व मकबरे को महल क्यों कहा गया। अरब, ईरान, अफगानिस्तान में एक भी ऐसी मस्जिद या कब्र नहीं है जिसके बाद महल लगाया गया हो। उस काल के किसी भी सरकारी या शाही दस्तावेज में ताजमहल शब्द का वर्णन नहीं है। मुमताज के कारण इसका नाम मुमताज महल पड़ा। यह कथन ही तर्कहीन है। क्योंकि उनकी बेगम का नाम था मुमता-उल-जमानी था। बाबर की पुत्री गुलबदन ‘हुमायूंनामा’ नामक अपने ऐतिहासिक वृत्तांत में ताज का संदर्भ रहस्य महल (Mystic House) के नाम से देती है। विंसेंट स्मिथ अपनी पुस्तक ‘Akbar the Great Moghul’ में लिखते हैं कि ‘बाबर ने 1630 में आगरा के वाटिका वाले महल में अपने जीवन से मुक्ति पाई। वाटिका वाला वो महल यही ताजमहल था। यह इतना विशाल और भव्य था। जितता दूसरा कोई भारत में महल नहीं था। ताज के नदी तट के भाग में संगमरमर की नींव के ठीक नीचे लाल पत्थरों वाले 22 कमरे हैं। इन कमरों के झरोखों को शाहजहां ने बंद करवा दिया था। इन 22 कमरों की दीवारों तथा भीतरी छतों पर अभी भी प्राचीन हिन्दू चित्रकारी अंकित हैं। इन कमरों से लगा हुआ लगभग 33 फुट लंबा गलियारा है। गलियारे के दोनों सिरों में एक-एक दरवाजा है। मौजूदा समय में इन दोनों दरवाजों को आकर्षक रूप से ईंटों और गारे से चुनवा दिया गया है। अब यह दीवार जैसे ही प्रतीत होते हैं।

ओरंगजेब का लिखा पत्र कुछ यूं ब्यां करता है

इतिहासकार ओक लिखते हैं कि औरंगजेब ने 1662 में खुद लिखा है कि मुमताज के सात मंजिला लोकप्रिय दफन स्थान के प्रांगण की कई इमारतें पुरानी हो चुकी हैं। इनमें से पानी रिस रहा है। गुंबद के उत्तरी सिरे में दरार भी पैदा हो गई है। इन इमारतों की तुरंत मरम्मत के लिए फरमान जारी किया। यह इस बात को प्रमाणित करता है कि शाहजहां के समय में ही ताज प्रांगण पुराना हो चुका था।

प्रदीप शाही

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