कोई नहीं सोच सकता, आने वाले समय में ऐसा भी होगा

कल रात पेरिस में अपने एक मुसलमान ने अपने एक शिक्षक की गला रेत कर हत्या कर दी। बाद में पुलिस ने थोड़ी देर पीछा करने के बाद उसे गोली मार दी। मर गया। शिक्षक का गला क्यों रेता? क्योंकि शिक्षक ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ वाली क्लास में, एक कार्टून दिखा रहा था बच्चों को समझाने के लिए।

जोड़ों का दर्द है तो चुटकियों में होगा दूर..नहीं है तो कभी नहीं होगा,जानें कैसे || Dr.Arun Sharma ||

कार्टून किसका रहा होगा समझना मुश्किल नहीं है। इस घटना का दूसरा पहलू देखिए कि हर ऐसी घटना के बाद, हर ‘लोन वूल्फ’ अटैक के बाद, श्वेतों की बस्ती में आतंकी हमेशा मरा हुआ ही मिलता है। लेकिन भारत में आप, इन्हीं शूकरों पर पैलेट गन चला देंगे, तो यही गोरे लोग मानवाधिकारों का ज्ञान देते हैं।

इसलिए, चाहे ऑरलैंडो का समलैंगिक बार हो या ब्रूसेल्स का एयरपोर्ट, मैनचेस्टर के बम धमाके हों, या नीस का आतंकी हमला, मैं बहुत ज्यादा संवेदनशील नहीं हो पाता। वो इसलिए क्योंकि इन लोगों ने इस्लामी आतंक को सबसे ज्यादा पाला-पोसा है। ये लोग भारत में हो रहे आतंकवाद को ‘बायलेटरल कॉन्फ्लिक्ट’ कहा करते थे।

जब ट्विन टावर उड़ाया गया, उसके बाद तालिबान और आइसिस ने पूरे यूरोप-अमेरिका के हर शहर में तबाही मचानी शुरू की, तब इन्हें लगा कि आतंकवाद होता है। जब तक इनके घर के लोगों पर ट्रक नहीं चढ़ाया गया, मेट्रो ट्रेन में शृंखलाबद्ध धमाके नहीं हुए, तब तक इनको लगता था कि पाकिस्तान ने भारत को ‘बैलेंस’ कर रखा है।

अभी तो यूरोप में शुरुआत है। जिस कैंसर को इन्होंने बॉर्डर खोल कर अपने यहाँ दावत दी है, वो इन्हें इतना मारेंगे, इतना मारेंगे कि इन्हें क्रूसेड का दौर याद आएगा। क्रूसेड के समय कम से कम यूरोप वाले वामपंथी तो नहीं बने थे, अब ये किस मुँह से इन्हें नकारेंगे, भगाएँगे, भर्त्सना करेंगे?

पाँच सालों में यूरोप इस्लामी आतंक की उस आग में झुलस रहा होगा कि वहाँ के ईसाई सड़कों पर आ कर, समूहों में उन्हीं के यहाँ नागरिक बन कर रह रहे इस्लामी आतंकियों से हथियारों के साथ संघर्ष करेंगे। सरकारें मुँह ताकती रहेंगी क्योंकि पाँच साल में ‘पोलिटिकली करेक्ट’ होने वाली सत्ताएँ, देश और नेता, अचानक से बदल तो नहीं जाएँगे!

मैमोरी लॉस हो सकता है पूरी तरह ठीक ||Dr Amar Singh Azad || Alzheimer ||

अभी इनकी बेटियों का रेप होगा, इनके चर्च उड़ाए जाएँगे, इनकी गलियों में इस्लामी कट्टरपंथ का अलग स्वरूप दिखेगा। यही विचारधारा जब अपने घरों से निकल कर इनके घरों में दखल करेगी कि तुम्हारे पहनावे से हमारा मजहब खतरे में आता है, तब क्या होगा, वो देखने लायक होगा। ये सब पाँच साल में होगा, और मैं ‘फेसबुक मेमरीज़’ से निकाल कर लिखूँगा कि ‘मैंने तो पहले ही कहा था’।

डिप्रेशन को दूर कर मन को शांत करने का अचूक उपाय || P K Khurana ||
कोई सरकार इसे रोक नहीं सकती।

LEAVE A REPLY