कैप्टन अमरिन्दर सिंह द्वारा पटियाला में धान की पराली पर आधारित भारत के पहले ब्रिकटिंग प्लांट का उद्घाटन

चंडीगढ़, 18 दिसम्बर:
पराली जलाने के रुझान और इससे पैदा होने वाले वातावरण प्रदूषण को रोकने के लिए पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने शुक्रवार को धान की पराली पर आधारित भारत के पहले ब्रिकटिंग प्लांट का पटियाला में उद्घाटन किया जिसका सामथ्र्य 100 टन प्रति दिन है।

 

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इस पहलकदमी को काफी देर की माँग बताते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि इस नयी तकनीक के अंतर्गत राज्य में धान की पराली के ठोस प्रबंधन के द्वारा न सिफऱ् वातावरण प्रदूषण घटाने में मदद मिलेगी बल्कि इससे किसान भाईचारा ख़ास कर छोटे किसान पराली के अवशेष की बिक्री से अतिरिक्त आमदन हासिल कर सकेंगे। यह विश्वास प्रकट करते हुए कि ऐसे प्लांट भविष्य में भी बनाए जाएंगे जिससे पंजाब की पराली जलाने की समस्या से निपटा जा सके, उन्होंने कहा कि ब्रिकिट्स के लिए 3500 वाली लो कैलोरिफिक वैल्यू कोयले के लिए 7000 की तुलना में आर्थिक तौर पर काफ़ी किफ़ायती पड़ती है क्योंकि कोयले की कीमत 10,000 रुपए प्रति टन और ब्रिकिट की कीमत 4500 रुपए प्रति टन है। उन्होंने आगे कहा कि तेल के महंगे होने से यह ऊर्जा का एक ज़्यादा किफ़ायती स्रोत बन गया है। 

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यह प्लांट पटियाला जि़ले के कुलबुर्छां गाँव में 5.50 करोड़ रुपए की लागत के साथ पंजाब स्टेट काउंसल फॉर सांईंस एंड टैक्नॉलॉजी द्वारा मैसर्ज पंजाब रिन्यूएबल एनर्जी सिस्टम्स प्राईवेट लिमिटेड के साथ हिस्सेदारी में और केंद्रीय वातावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की सहायता के साथ क्लाईमेट चेंज एक्शन प्रोग्राम के अंतर्गत स्थापित किया गया है।
वैज्ञानिकोंं, किसानों और कृषि यंत्र उत्पादकों की तरफ से भारत को खाद्य उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर बनाने के गंभीर यत्नों की प्रशंसा करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि इस नयी तकनीक के साथ इस प्लांट के पास के 40 गाँवों की पराली को ग्रीन फियूल में बदला जा सकेगा।
इससे न सिफऱ् वातावरण को प्रदूषित होने से बचाने में मदद मिलेगी, जो कि कोविड महामारी के मद्देनजऱ और भी गंभीर रूप लेता जा रहा है, बल्कि इससे स्वास्थ्य को होने वाले गंभीर समस्याओं से निजात पाने में भी मदद मिलेगी। यह प्लांट 45000 टन पराली के अवशेष का इस्तेमाल करके उद्योगों में जैविक ईंधन का विकल्प बनेगा जिससे 78000 टन की हद तक कार्बन डाइऑक्साइड को घटाने में मदद मिलेगी।
इस मौके पर अपने संबोधन में मुख्य सचिव विनी महाजन ने इस प्लांट की स्थापना का स्वागत करते हुए इसको राज्य सरकार की तरफ से पराली जलाने की समस्या से निपटने के लिए उठाए जा रहे कई अहम कदमों में से एक बताया। उन्होंने विश्वास ज़ाहिर किया कि ऐसी नई तकनीकी पहलकदमियों की कामयाबी सिफऱ् पंजाब में ही नहीं बल्कि देशभर में ऐसी पहलकदमियों सम्बन्धी कदम उठाए जाने को उत्साहित करेगी।
मुख्य सचिव ने आगे कहा कि एक कृषि प्रधान राज्य होने के नाते पंजाब में खेती सम्बन्धी अवशेष की बड़ी मात्रा पैदा होती है और जबकि गेहूँ के भूसे को पशूओं के चारे के तौर पर इस्तेमाल कर लिया जाता है, धान की पराली का उपयुक्त प्रबंधन राज्य के लिए एक बड़ी चुनौती है। धान की पराली के ठोस प्रबंधन को यकीनी बनाने के लिए राज्य स्तर पर एक विस्तृत योजना शुरू किये जाने के अलावा पंजाब ने तकरीबन 3 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल को पराली से अन्य वैकल्पिक फसलों जैसे कि कपास और मक्का में तबदील किया है और राज्य की तरफ से किसानों को फसलों के अवशेष का सभ्य प्रबंधन करने सम्बन्धी मशीन वितरण के द्वारा धान की पराली को खेतों में ही निपटाने को उत्साहित किया जा रहा है। उन्होंने यह भी खुलासा किया कि अब तक 75,000 मशीनें बाँटी जा चुकी हैं और 18878 कस्टम हायरिंग केंद्र भी स्थापित किये गए हैं जिससे इस मशीनरी का वितरण यकीनी बनाया जा सके।
श्रीमती महाजन ने खुलासा किया कि राज्य में बायोमास पर अधारित 11 पावर प्लांट पहले ही स्थापित किये जा चुके हैं और धान की परानी को खेतों से बाहर निपटाने के लिए कई यूनिट स्थापना अधीन हैं। उन्होंने बताया कि पहला बायो सी.एन.जी. प्लांट जिसका प्रति दिन 33 टन का सामथ्र्य है, मार्च, 2021 तक चालू हो जायेगा।
इसी दौरान पी.एस.सी.एस.टी. के कार्यकारी डायरैक्टर डॉ. जतिन्दर कौर अरोड़ा ने संक्षिप्त पेशकारी देते हुए इस प्रोजैक्ट की मुख्य विशेषताएं बताईं। उन्होंने धान से मशीनरी को बड़े स्तर पर अनुसंधान और विकास के द्वारा स्थिर करने, धान की पराली से ब्रिकिट के उत्पादन की प्रक्रिया और उद्योग जगत में बतौर ईंधन इस्तेमाल किये जाने के लिए ब्रिकिट की ज्वलनशील विशेषताओं सम्बन्धी भी बड़े स्तर पर अनुसंधान और विकास कार्य किये गए हैं। उन्होंने कहा कि पंजाब प्रदूषण रोकथाम बोर्ड और नाबार्ड की तरफ से प्रोजैकट के मूलभूत पड़ावों में ऐसी गतिविधियों सम्बन्धी मदद मुहैया की गई थी। इसके बाद मोगा जिले के जलालबाद गाँव में 24 टी.पी.डी. उत्पादन सामथ्र्य वाला पहला ब्रिकटिंग प्लांट 85 लाख रुपए की लागत के साथ स्थापित किया गया था। इसके बाद एक वर्ष के अंदर दूसरा परानी अवशेष ब्रिकटिंग प्लांट पटियाला जिले के गाँव कुलबुर्छां गाँव में स्थापित किया गया है जिसका उत्पादन सामथ्र्य पहले की अपेक्षा चार गुणा ज़्यादा है।
उन्होंने आगे कहा कि भारत सरकार और विज्ञान व प्रौद्यौगिकी विभाग की मदद के साथ काउंसल की तरफ से ब्रिकटिंग प्लांट के अंदर ही एक पायलट यूनिट भी स्थापित किया जा रहा है जिसका इस्तेमाल अनुसंधान और विकास कार्य में लगी संस्थाओं की तरफ से अनुसंधान कार्यों के लिए किया जा सकता है जिससे पराली का अवशेष प्रासेस करने वाली मशीनरी के उपकरणों की कार्य करने की अवधि और बढ़ाई जा सके।
इस मौके पर अपने संबोधन में पंजाब रिन्यूएबल एनर्जी सिस्टम प्राईवेट लिमिटेड (पी.आर.ई.एस.पी.एल.) के एम.डी. लैफ्टिनैंट कर्नल (सेवामुक्त) मनीष आहूजा जो कि इस प्रोजैक्ट के लिए निजी हिस्सेदार हैं, ने कहा कि पी.आर.ई.एस.पी.एल. के प्रबंधन सम्बन्धी माहिर अहम व्यक्ति सेना में सेवा निभा चुके हैं। पी.आर.ई.एस.पी.एल. की तरफ से राज्य में आने वाले 4-5 सालों के दौरान क्लीनर टैक्नॉलॉजी के क्षेत्र में 5000 मिलियन रुपए निवेश किये जाने की योजना है।
इस मौके पर विज्ञान, प्रौद्यौगिकी और पर्यावरण विभाग, पंजाब के सचिव राहुल तिवारी के अलावा उद्योग जगत की नामी हस्तियाँ और केंद्र और राज्य सरकार के सीनियर अधिकारी उपस्थित थे।
-Nav Gill

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