कुंभ नगरी इलाहाबाद 444 साल बाद फिर बनी प्रयागराज

-रामायण, मतस्य पुराण में भी है प्रयाग राज का उल्लेख

-अकबर ने प्रयागराज को दिया था इलाहाबाद का नाम

क्या आप जानते है कि मतस्य पुराण, रामायण में वर्णित कुंभ नगरी, गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम के नाम से विख्यात इलाहाबाद को प्रयाग राज का नाम ही क्यों प्रदान किया गया। इलाहाबाद को 444 साल बाद फिर से प्रयाग राज की पुरानी पहचान प्रदान की गई। प्रयाग राज, तीर्थ राज के नाम से पहचाने जाने वाले इस पावन शहर में अगले साल जनवरी में अर्ध कुंभ का शुभारंभ होने जा रहा है। आईए आपको प्रयाग राज के प्राचीन इतिहास से अवगत करवाएं।

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सृष्टि सृजन के बाद भगवान ब्रह्मा ने यहां किया था पहला यज्ञ

हिंदू मान्यता अनुसार सृष्टिकर्ता भगवान श्री ब्रह्मा ने सृष्टि सृजन का काम पूर्ण करने के बाद प्रथम यज्ञ किया था। इसी प्रथम यज्ञ के प्र और यज्ञ के मेल से प्रयाग बना। तभी से इसे प्रयाग राज कहा जाने लगा। इसे तीर्थ राज के नाम से संबोधित किया जाता है। इतना ही नहीं भगवान श्री हरि विष्णू के बारह स्वरुप विद्यमान होने के कारण इसे द्वादश माधव भी कहा जाता है। गंगा, यमुना और सरस्वती त्रिवेणी के संगम के चलते ही यहां पर 12 साल के पश्चात कुंभ पर्व का आयोजन किया जाता है।

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प्रयाग राज का इतिहास है बेहद प्राचीन

प्रयाग राज का इतिहास काफी प्राचीन है। प्राचीन समय में यह एक राज्य था। इसे कौशांबी में राजधानी के साथ वत्स कहा जाता था। जिसके अवशेष आज भी प्रयागराज के पश्चिम में विद्यमान है। भगवान गौतम बुद्ध ने भी इस शहर में अपनी तीन यात्रायें की। मौर्य साम्राज्य के अधीन आने के बाद  कौशांबी को अशोक के प्रांतों में से एक का मुख्यालय बनाया गया। मौर्य साम्राज्य की पुरातन वस्तुएं वअवशेषों की खुदायी भीटा में की गयी। मौर्य के पश्चात् शुंगों ने वत्स या प्रयाग राज पर शासन किया। प्रयागराज में पायी गयी शुंगकालीन कलात्मक वस्तुएं शुंग शासन को प्रमाणित करती हैं। शुंग के पश्चात कुषाण, कनिष्क की एक मोहर और एक अद्वितीय मूर्ति लेखन कौशांबी में मिली। कौशांबी, भीटा व झूंसी में गुप्त काल की वस्तुयें मिली।  अशोक स्तंभ पर समुद्र गुप्त की प्रशंसा में पंक्तियां खुदी हुई हैं। यात्री ह्यूनसांग ने 7वीं शताब्दी में प्रयागराज की यात्रा के दौरान प्रयाग राज को मूर्ति पूजन करने वालों का एक प्रमुख शहर कहा।

सम्राट अकबर ने प्रयाग राज को दिया था इलाहा बास का नाम

1557 में झूंसी व प्रयाग राज के अधीन ग्राम मरकनवल में जौनपुर के विद्रोही गवर्नर और अकबर के मध्य एक युद्ध लड़ा गया। अकबर इस युद्ध में जीत के बाद एक दिन के लिए प्रयाग रुका। इसके बाद अकबर वर्ष 1575 में दोबारा प्रयाग आया। प्रयाग राज में शाही शहर की आधारशिला भी रखी।  जिसे अकबर ने इलाहा बास कहा। जो बाद में इलाहा बाद के नाम से चलन में आया। इस शहर के बारे अकबरनामा, आईने-अकबरी के अलावा अन्य कई मुगलकालीन ग्रंथों में इस बारे उल्लेख है। इलाहाबाद नाम 1583 में किया था।

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दो शब्दों के मेल से बना था इलाहा बाद

सम्राट अकबर ने प्रयाग राज के नाम के अनुसार ही शहर को इलाहा बाद का नाम दिया। इलाहा बाद फारसी व अरबी दो शब्दों का सुमेल है। अरबी शब्द इलाह (अकबर की ओर से शुरु किए गए दीन ए इलाही के संदर्भ अल्लाह के लिए) और फारसी शब्द आबाद यानि कि बसाया हुआ लिया गया। इलाहाबाद का पूर्ण अर्थ ईश्वर का शहर है।

प्रदीप शाही

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