किस देवता ने किया था श्री कृष्ण की द्वारिका, रावण की सोने की लंका का निर्माण…

-वास्तु शास्त्र के जनक थे भगवान श्री विश्वकर्मा
क्या आप जानते हैं कि सदियों पहले परमावतार भगवान श्री कृष्ण की पानी में डूब गई स्वर्ण, हीरे जवाहरात मंडित द्वारिका, दशानन रावण की सोने की लंका का निर्माण किस ने किया। इतना ही नहीं देवों के देव महादेव भगवान शंकर के त्रिशूल, भगवान श्री विष्णु हरि के चक्र और रावण के पुष्पक विमान के निर्माता कौन थे। इन सभी सवालों के जवाब आज हम आपको देंगे। हिंदू धर्म अनुसार सृजन के देवता, वास्तु शास्त्र के जनक भगवान श्री विश्वकर्मा ने सदियों पहले उक्त भवन निर्माण व अमोघ शस्त्रों का निर्माण किया था।

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कौन है भगवान श्री विश्वकर्मा ?
पौराणिक कथा अनुसार इस सृष्टि के सृजन की शुरुआत में भगवान श्री हरि विष्णु जी क्षीर सागर से प्रकट हुए। भगवान श्री विष्णु जी के नाभि कमल से ब्रह्म जी की उत्पत्ति हुई। ब्रह्म जी के पुत्र का नाम धर्म रखा गया। धर्म का विवाह संस्कार वस्तु नामक स्त्री से संपन्न हुआ। धर्म और वस्तु के सात पुत्र हुए। इनके सातवें पुत्र का नाम वास्तु रखा गया। वास्तु शिल्पशास्त्र में निपुण था। वास्तु के पुत्र का नाम विश्वकर्मा था। वास्तु शास्त्र में महारत होने के कारण विश्वकर्मा को वास्तुशास्त्र का जनक कहा गया। इस तरह भगवान विश्वकर्मा जी का जन्म हुआ।

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भगवान श्री विश्वकर्मा के कौन हैं पांच अवतार ?
पुराणों में भगवान श्री विश्वकर्मा के पांच अवतार प्रमुख हैं। इनमें विराट विश्वकर्मा को सृष्टि के रचियता, धर्मवंशी विश्वकर्मा को महान शिल्प विज्ञान विधाता प्रभात पुत्र, अंगिरावंशी विश्वकर्मा को आदि विज्ञान विधाता वसु पुत्र, सुधन्वा विश्वकर्मा को महान शिल्पाचार्य विज्ञान जन्मदाता ऋशि अथवी के पौत्र, भृंगुवंशी विश्वकर्मा को उत्कृष्ट शिल्प विज्ञानाचार्य शुक्राचार्य के पौत्र प्रमुख हैं।

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भगवान श्री विश्रकर्मा के वंशज कौन हैं ?
ऋषि मनु विष्वकर्मा को सानग गोत्र का कहा जाता है। इस गौत्र से संबंधित लोग लोहे के काम से जुड़े हैं। सनातन ऋषि मय को सनातन गोत्र का माना जाता है। यह लोग बढई का काम करते हैं। अहभून ऋषि त्वष्ठा वंशज के लोग धातु का काम करते हैं। प्रयत्न ऋषि शिल्पी के वंशज संगतराश और मूर्तिकार होते हैं। देवज्ञ ऋषि के वंशज स्वर्णकार के रूप में जाने जाते हैं। ये चांदी, सोने की कारीगरी का काम करते हैं।

भगवान श्री विश्वकर्मा ने किया इन भवनों, शस्त्रों का निर्माण
सृजन के देवता भगवान श्री विश्वकर्मा ने ही इंद्रदेव की इंद्रपुरी, भगवान श्री कृष्ण की द्वारिका, पांडवों की हस्तिनापुर, स्वर्गलोक व रावण की सोने की लंका का निर्माण किया था। इसके अलावा अपने ज्ञान से यमपुरी, वरुणपुरी, पाण्डवपुरी, सुदामापुरी, शिवमण्डलपुरी का निर्माण किया। कुबेर के लिए पुष्पक विमान का निर्माण किया। बाद में इस विमान को दशानन रावण ने हथिया लिया था। इतना ही नहीं वास्तु शास्त्र के जनक कहे जाने वाले भगवान श्री विश्वकर्मा ने भगवान श्री हरि विष्णु के सुदर्शन चक्र, देवों के देव भगवान शंकर के त्रिशूल, यमराज के लिए कालदण्ड, कर्ण के कुण्डल का निर्माण किया। कहा जाता है कि विश्वकर्मा इतने बड़े शिल्पकार थे कि उन्होंने जल पर चलने योग्य खड़ाऊ तैयार की थी।

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पूजन के लिए विशेष मंत्र
भगवान श्री विश्वकर्मा की पूजा के लिए रुद्राक्ष की माला से जाप करना चाहिए।
ॐ आधार शक्तपे नम: और ॐ कूमयि नम:, ॐ अनन्तम नम:, पृथिव्यै नम: … के जाप से भगवान श्री विश्वकर्मा अपना आशीर्वाद देते हैं।

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श्री विश्वकर्मा भगवान के हैं 108 नाम
ॐ विश्वकर्मणे नमः, ॐ विश्वात्मने नमः, ॐ विश्वस्माय नमः, ॐ विश्वधाराय नमः, ॐ विश्वधर्माय नमः, ॐ विरजे नमः, ॐ विश्वेक्ष्वराय नमः, ॐ विष्णवे नमः, ॐ विश्वधराय, नमः, ॐ विश्वकराय नमः, ॐ वास्तोष्पतये नमः, ॐ विश्वभंराय नमः, ॐ वर्मिणे नमः, ॐ वरदाय नमः, ॐ विश्वेशाधिपतये नमः, ॐ वितलाय नमः, ॐ विशभुंजाय नमः, ॐ विश्वव्यापिने नमः, ॐ देवाय नमः, ॐ धार्मिणे नमः, ॐ धीराय नमः, ॐ धराय नमः, ॐ परात्मने नमः, ॐ पुरुषाय नमः, ॐ धर्मात्मने नमः, ॐ श्वेतांगाय नमः, ॐ श्वेतवस्त्राय नमः, ॐ हंसवाहनाय नमः, ॐ त्रिगुणात्मने नमः, ॐ सत्यात्मने नमः, ॐ गुणवल्लभाय नमः, ॐ भूकल्पाय नमः, ॐ भूलेंकाय नमः, ॐ भुवलेकाय नमः, ॐ चतुर्भुजय नमः, ॐ विश्वरुपाय नमः, ॐ विश्वव्यापक नमः, ॐ अनन्ताय नमः, ॐ अन्ताय नमः, ॐ आह्माने नमः, ॐ अतलाय नमः, ॐ आघ्रात्मने नमः, ॐ अनन्तमुखाय नमः, ॐ अनन्तभूजाय नमः, ॐ अनन्तयक्षुय नमः, ॐ अनन्तकल्पाय नमः, ॐ अनन्तशक्तिभूते नमः, ॐ अतिसूक्ष्माय नमः, ॐ त्रिनेत्राय नमः, ॐ कंबीघराय नमः, ॐ ज्ञानमुद्राय नमः, ॐ सूत्रात्मने नमः, ॐ सूत्रधराय नमः, ॐ महलोकाय नमः, ॐ जनलोकाय नमः, ॐ तषोलोकाय नमः, ॐ सत्यकोकाय नमः, ॐ सुतलाय नमः, ॐ सलातलाय नमः, ॐ महातलाय नमः, ॐ रसातलाय नमः, ॐ पातालाय नमः, ॐ मनुषपिणे नमः, ॐ त्वष्टे नमः, ॐ देवज्ञाय नमः, ॐ पूर्णप्रभाय नमः, ॐ ह्रदयवासिने नमः, ॐ दुष्टदमनाथ नमः, ॐ देवधराय नमः, ॐ स्थिर कराय नमः, ॐ वासपात्रे नमः, ॐ पूर्णानंदाय नमः, ॐ सानन्दाय नमः, ॐ सर्वेश्वरांय नमः, ॐ परमेश्वराय नमः, ॐ तेजात्मने नमः, ॐ परमात्मने नमः, ॐ कृतिपतये नमः, ॐ बृहद् स्मणय नमः, ॐ ब्रह्मांडाय नमः, ॐ भुवनपतये नमः, ॐ त्रिभुवनाथ नमः, ॐ सतातनाथ नमः, ॐ सर्वादये नमः, ॐ कर्षापाय नमः, ॐ हर्षाय नमः, ॐ सुखकत्रे नमः, ॐ दुखहर्त्रे नमः, ॐ निर्विकल्पाय नमः, ॐ निर्विधाय नमः, ॐ निस्माय नमः, ॐ निराधाराय नमः, ॐ निकाकाराय नमः, ॐ महदुर्लभाय नमः, ॐ निमोहाय नमः, ॐ शांतिमुर्तय नमः, ॐ शांतिदात्रे नमः, ॐ मोक्षदात्रे नमः, ॐ स्थवीराय नमः, ॐ सूक्ष्माय नमः, ॐ निर्मोहय नमः, ॐ धराधराय नमः, ॐ स्थूतिस्माय नमः, ॐ विश्वरक्षकाय नमः, ॐ दुर्लभाय नमः, ॐ स्वर्गलोकाय नमः, ॐ पंचवकत्राय नमः औऱ ॐ विश्वलल्लभाय नमः।

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प्रदीप शाही

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