ऑल इण्डिया स्टेट ज्यूडीशियल एकेडमीज़ डायरेक्टर्स रिट्रीट के उद्घाटन कार्यक्रम में संबोधन

07 MARCH 2021

मध्‍य प्रदेश सहित पश्चिमी भारत की जीवन रेखा और जबलपुर को विशेष पहचान देने वाली पुण्य-सलिला नर्मदा की पावन धरती पर, आप सबके बीच आकर मुझे प्रसन्‍नता हो रही है। जाबालि ऋषि की तपस्थली और रानी दुर्गावती की वीरता के साक्षी जबलपुर क्षेत्र को भेड़ाघाट और धुआंधार की प्राकृतिक संपदा तथा ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक धरोहर प्राप्त है। शिक्षा, संगीत एवं कला को संरक्षण और सम्मान देने वाले जबलपुर को, आचार्य विनोबा भावे ने ‘संस्‍कारधानी’ कहकर सम्मान दिया और वर्ष 1956 में स्थापित, मध्‍य प्रदेश उच्‍च न्‍यायालय की मुख्य न्यायपीठ ने जबलपुर को विशेष पहचान दी।

यह कार्यक्रम, देश की सभी राज्‍य न्‍यायिक अकादमियों के बीच, सतत न्‍यायिक प्रशिक्षण के लिए अपनायी जाने वाली प्रक्रिया को साझा करने का यह प्रथम और सराहनीय प्रयास है। इसलिए, राज्य न्‍यायिक अकादमियों के निदेशकों के इस अखिल भारतीय सम्‍मेलन का उद्घाटन करते हुए मुझे हर्ष का अनुभव हो रहा है। इस प्रयास के लिए मैं, विशेष रूप से, मध्‍य प्रदेश उच्‍च न्‍यायालय के मुख्‍य न्‍यायमूर्ति, श्री मोहम्मद रफ़ीक और इस सम्मेलन के आयोजन से जुड़े अन्‍य सभी पक्षों को बधाई देता हूं।

पेट की सारी बीमारियां होंगी कुदरती तरीके से ऐसे ठीक || Dr. Joginder Tyger ||

देवियो और सज्जनो,

मुझे बताया गया है कि कोविड-19 महामारी के दौरान भी, मध्यप्रदेश राज्य न्यायिक अकादमी ने ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए। इसके अलावा, अकादमी ने अपनी वेबसाईट पर उपयोगी शिक्षण सामग्री, व्याख्यानों का लाइव टेलीकास्ट और न्यायाधीशों के लिए रिकार्डेड लेक्चर उपलब्ध कराकर संसाधनों के सदुपयोग का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्‍तुत किया है। इसके लिए अकादमी के अध्यक्ष और उनके सहयोगी प्रशंसा के पात्र हैं।

मुझे यह देखकर प्रसन्‍नता होती है कि न्‍याय व्‍यवस्‍था में टैक्नोलॉजी का प्रयोग बहुत तेजी से बढ़ा है। देश में 18,000 से ज्‍यादा न्‍यायालयों का कंप्‍यूटरीकरण हो चुका है। लॉकडाउन की अवधि में, जनवरी, 2021 तक पूरे देश में लगभग 76 लाख मामलों की सुनवाई वर्चुअल कोर्ट्स में की गई। साथ ही, ने‍शनल ज्‍यूडीशियल डेटा ग्रिड, यूनिक आइडेंटिफिकेशन कोड तथा क्‍यूआर कोड जैसे initiatives की सराहना विश्‍व स्‍तर पर की जा रही है। अब ई-अदालत, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, ई-प्रोसीडिंग्‍स, ई-फाइलिंग और ई-सेवा केन्‍द्रों की सहायता से जहां न्याय-प्रशासन की सुगमता बढ़ी है, वहीं कागज के प्रयोग में कमी आने से प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण संभव हुआ है।

यह सलाद आपको बना देगा Healthy, दिनों में झडे़गा मोटापा || Dr. Arun Sharma ||

देवियो और सज्जनो,

हमारी lower judiciary, देश की न्यायिक व्यवस्था का आधारभूत अंग है। उसमें प्रवेश से पहले, सैद्धांतिक ज्ञान रखने वाले law students को कुशल एवं उत्कृष्ट न्यायाधीश के रूप में प्रशिक्षित करने का महत्वपूर्ण कार्य हमारी न्यायिक अकादमियां कर रही हैं।

अब जरूरत है कि देश की अदालतों, विशेष रूप से जिला अदालतों में लंबित मुकदमों को शीघ्रता से निपटाने के लिए न्यायाधीशों के साथ ही अन्य judicial एवं quasi-judicial अधिकारियों के प्रशिक्षण का दायरा बढ़ाया जाए। उनके बीच, ज्ञान एवं सूचना के आदान-प्रदान के लिए ऐसे सम्मेलनों के अलावा, कोई अन्य स्थायी मंच स्थापित किया जा सकता है। निर्णय की प्रक्रिया में तेजी लाने की दृष्टि से ऐसे मंचों पर, अदालतों की processes और procedures के सरलीकरण पर चर्चा की जा सकती है। इससे, एक ओर जहां मुकदमों के निस्तारण में तेजी आ सकती है, वहीं न्यायिक प्रशासन से जुड़ी प्रक्रियाओं में अखिल भारतीय Perspective का विकास हो सकता है।

पेट की सारी बीमारियां होंगी कुदरती तरीके से ऐसे ठीक || Dr. Joginder Tyger ||

देवियो और सज्जनो,

‘speedy delivery of justice’ अर्थात् ‘शीघ्र न्याय’ प्रदान करने के लिए, व्यापक न्यायिक प्रशिक्षण की जरूरत के साथ-साथ टैक्नोलॉजी के अधिकाधिक प्रयोग की संभावनाएं दिनों-दिन बढ़ती जा रही हैं। अब मुकदमों की बढ़ती संख्या के कारण, कम समय में ही मुद्दों की बारीकियों को समझना और सटीक निर्णय लेना जरूरी हो जाता है। नए-नए कानूनों के लागू होने, litigation की प्रकृति में व्यापक बदलाव आने और समय-सीमा में मामलों को निपटाने की आवश्यकता ने भी न्यायाधीशों के लिए यह जरूरी बना दिया है कि वे विधि और प्रक्रियाओं का up-to-date ज्ञान रखें।

लेकिन, न्याय-प्रशासन में पुस्तकीय ज्ञान के साथ-साथ व्यवहार-बुद्धि का प्रयोग भी अपेक्षित होता है। बृहस्पति-स्मृति में कहा गया है- ‘केवलम् शास्‍त्रम् आश्रित्‍य न कर्तव्‍यो विनिर्णय:। युक्ति-हीने विचारे तु धर्म-हानि: प्रजाय‍ते’। अर्थात् केवल कानून की किताबों व पोथियों मात्र के अध्ययन के आधार पर निर्णय देना उचित नहीं होता। इसके लिए ‘युक्ति’ का – ‘विवेक’ का सहारा लिया जाना चाहिए, अन्यथा न्याय की हानि या अन्याय की संभावना होती है।

देवियो और सज्जनो,

न्यायिक अकादमियों में भविष्य के न्यायाधीश तैयार होते हैं। पहले दिन से ही उन पर नागरिकों के जीवन, स्वतंत्रता, संपत्ति और गरिमा की रक्षा के प्रश्नों पर निर्णय लेने की जिम्मेदारी आ जाती है। उन्हें विधि के शासन को बनाए रखने के प्रश्नों पर भी निर्णय लेने होते हैं। नई-नई स्थितियों से, समझ-बूझ के साथ निपटना होता है। इसलिए, न्याय के आसन पर बैठने वाले व्यक्ति में समय के अनुसार परिवर्तन को स्‍वीकार करने, परस्‍पर विरोधी विचारों या सिद्धांतों में संतुलन स्‍थापित करने और मानवीय मूल्‍यों की रक्षा करने की समावेशी भावना होनी चाहिए। न्यायाधीश को किसी भी व्यक्ति, संस्था और विचार-धारा के प्रति, किसी भी प्रकार के पूर्वाग्रह तथा पूर्व-संचित धारणाओं से सर्वथा मुक्त होना चाहिए। न्याय करने वाले व्यक्ति का निजी आचरण भी मर्यादित, संयमित, सन्देह से परे और न्याय की प्रतिष्ठा बढ़ाने वाला होना चाहिए।

‘हम, भारत के लोगों’ की, न्यायपालिका से बहुत अपेक्षाएं हैं। समाज, न्यायाधीशों से ज्ञानवान, विवेकवान, शीलवान, मतिमान और निष्पक्ष होने की अपेक्षा करता है। ‘न्याय-प्रशासन’ में संख्या से अधिक महत्व गुणवत्ता को दिया जाता है। और, इन अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए न्यायिक कौशल की training, ज्ञान और टैक्नोलॉजी को update करते रहने तथा लगातार बदल रही दुनिया की समुचित समझ बहुत जरूरी होती है। इस प्रकार, induction level और in-service training के माध्यम से इन अपेक्षाओं को पूरा करने में, राज्य न्यायिक अकादमियों की भूमिका अति महत्वपूर्ण हो जाती है।

मैं इसे अपना सौभाग्य मानता हूं कि मुझे राज्य के तीनों अंगों अर्थात् विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका – से जुड़कर देश की सेवा करने का अवसर मिला। एक अधिवक्ता के रूप में, गरीबों के लिए न्याय सुलभ कराने के कतिपय प्रयास करने का संतोष भी मुझे है। उस दौरान मैंने यह भी अनुभव किया था कि भाषायी सीमाओं के कारण, वादियों-प्रतिवादियों को अपने ही मामले में चल रही कार्रवाई तथा सुनाए गए निर्णय को समझने के लिए संघर्ष करना होता है।

मुझे बहुत प्रसन्नता हुई जब मेरे विनम्र सुझाव पर सुप्रीम कोर्ट ने इस दिशा में कार्य करते हुए अपने निर्णयों का अनुवाद, नौ भारतीय भाषाओं में उपलब्ध कराया। कुछ उच्च न्यायालय भी स्थानीय भाषा में निर्णयों का अनुवाद कराने लगे हैं। मैं इस प्रयास से जुड़े सभी लोगों को हार्दिक बधाई देता हूं। लेकिन अब मेरी अपेक्षाएं कुछ और बढ़ गई हैं। मैं चाहता हूं कि सभी उच्च न्यायालय, अपने-अपने प्रदेश की अधिकृत भाषा में, जन-जीवन के महत्वपूर्ण पक्षों से जुड़े निर्णयों का प्रमाणित अनुवाद, सुप्रीम कोर्ट की भांति simultaneously उपलब्ध व प्रकाशित कराएं।

देवियो और सज्जनो,

कहते हैं कि आज भी, हर व्यक्ति का अंतिम सहारा और भरोसा न्यायपालिका ही है। देश के साधारण से साधारण नागरिक का भरोसा न्याय-व्यवस्था में बनाए रखने के लिए, राज्य के अंगों के रूप में हम सभी को आगे उल्लिखित बिन्दुओं पर विचार करना चाहिए:-

  • जैसे – शीघ्र, सुलभ और किफायती न्याय प्रदान करने की दृष्टि से टैक्नोलॉजी का प्रयोग बढ़ाने, प्रक्रिया और काग़जी कार्रवाई को सरल बनाने तथा लोगों को उनकी अपनी भाषा में न्याय दिलाने के लिए हम क्या-क्या कर सकते हैं?
  • इसी प्रकार, वैकल्पिक न्याय जैसे आर्बिट्रेशन, मीडिएशन, लोक-अदालतों के दायरे का विस्तार और Tribunals की कार्य-प्रणाली में अपेक्षित सुधार किस प्रकार किए जा सकते हैं?
  • तथा, उच्च न्यायालयों तथा जिला अदालतों की proceedings में राज्य की अधिकृत भाषा के प्रयोग को और बढ़ावा किस प्रकार दिया जा सकता है?
  • और, सरकारी मुकदमों की संख्या कम करने के लिए कौन-कौन से कदम उठाए जा सकते हैं?

देवियो और सज्जनो,

स्वाधीनता के बाद बनाए गए भारत के संविधान की उद्देशिका को हमारे संविधान की आत्‍मा समझा जाता है। इसमें चार आदर्शों –  न्‍याय, स्‍वतंत्रता, अवसर की समानता और बंधुता – की प्राप्ति कराने का संकल्‍प व्‍यक्‍त किया गया है। इन चार में भी ‘न्‍याय’ का उल्‍लेख सबसे पहले किया गया है।

हमारी न्यायिक प्रणाली का एक प्रमुख ध्येय है कि न्याय के दरवाजे सभी लोगों के लिए खुले हों। हमारे मनीषियों ने सदियों पहले, इससे भी आगे जाने अर्थात् न्याय को लोगों के दरवाजे तक पहुंचाने का आदर्श सामने रखा था। ऋषि बृहस्‍पति ने कहा था कि वन में विचरण करने वाले व्‍यक्ति के लिए – वन में, योद्धाओं के लिए – युद्ध शिविर में और व्‍यापारियों के लिए – उनके कारवां में ही – अदालत लगायी जानी चाहिए।

देवियो और सज्‍जनो,

न्‍याय व्‍यवस्‍था का उद्देश्‍य केवल विवादों को सुलझाना नहीं, बल्कि न्‍याय की रक्षा करने का होता है और न्याय की रक्षा का एक उपाय, न्याय में होने वाले विलंब को दूर करना भी है।

ऐसा नहीं है कि न्याय में विलंब केवल न्यायालय की कार्य-प्रणाली या व्यवस्था की कमी से ही होता हो। वादी और प्रतिवादी, एक रणनीति के रूप में, बारंबार स्‍थगन का सहारा लेकर, कानूनों एवं प्रक्रियाओं आदि में मौजूद loop-holes के आधार पर मुकदमे को लंबा खींचते रहते हैं। अदालती कार्रवाई और प्रक्रियाओं में मौजूद इन loopholes का निराकरण करने में न्यायपालिका को, सजग रहते हुए proactive भूमिका निभानी आवश्यक हो जाती है। राष्ट्रीय एवं अंतर-राष्ट्रीय स्तर पर होने वाले innovations को अपनाकर और best practices को साझा करके इस लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। मुझे विश्वास है कि दो दिन तक चलने वाले इस सम्मेलन में न्यायिक प्रशासन के इन सभी पहलुओं पर गहराई से विचार-विमर्श किया जाएगा और कार्रवाई के बिन्दु तय किए जाएंगे। मुझे बहुत प्रसन्नता होगी यदि, इन निष्कर्षों की एक प्रति राष्ट्रपति भवन को भी उपलब्ध कराई जाए।

‘न्याय’ के मार्ग पर, आप सभी के प्रयास सफल हों, इसी शुभेच्छा के साथ मैं सम्मेलन की सफलता की कामना करता हूं।

-NAV GILL

LEAVE A REPLY