एक ही पर्वत को तराश कर बनाए इस मंदिर में नहीं होती पूजा….

-मंदिर निर्माण में 40 हजार टन पत्थर का हुआ था प्रयोग
विश्व में भारत ही एक एेसा देश है। जहां कोने-कोने में सदियों पुरानी वास्तुकला के दर्शन हो सकते हैं। यह प्राचीन सभ्यता हर किसी को हतप्रभ भी कर देती है। भारत को यदि अजूबों का देश कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। आइए आपको बताते हैं कि एक ही पर्वत को काट कर तराशा गया एलोरा स्थित कैलाश मंदिर मौजूदा साइंस व इंजीनियरिंग के लिए आज भी बेमिसाल चुनौती बना हुआ है। सबसे खास बात यह भी है कि इस विशालकाय मंदिर में पूजा नहीं की जाती है।

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चाहे मौजूदा साइंस, इंजीनियरिंग विकास के चरम पर मानी जा रही है। परंतु भारत के प्राचीन काल की साइंस व इंजीनियरिंग को किसी भी एंगल से कम नहीं आंका जा सकता है। हो भी क्यों न मौजूदा समय में संसाधनों की कमी नहीं मानी जा सकती है। परंतु प्राचीन काल में तो मानव सभ्यता का तो अभी विकास भी सही ढंग से नहीं हुआ था। महाराष्ट्र के जिला ओऱंगाबाद क्षेत्र में स्थित अजंता-एलोरा की गुफाओं और मंदिरों के बारे में वैज्ञानिकों का तो यह भी मत है कि इन गुफाओं व मंदिरों का निर्माण किसी इंसान नहीं किया। बल्कि एलियंस के समूह ने किया होगा। भव्य कैलाश मंदिर के बारे आर्कियोलॉजिस्ट कहते हैं कि यह मंदिर कम से कम चार हजार वर्ष पूर्व बनाए गए थे। जबकि इतिहाकार इसे 1200 वर्ष पुराना ही मानते हैं।

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एक ही पर्वत को तराश बनाया विशालकाय मंदिर
एक पर्वत को तराश कर विशालकाय मंदिर का आकार देना सचमुच में ही इंसान की सोच से बाहर का लगता है। कुछ लोग इस मंदिर के निर्माण में 40 हजार टन पत्थर तो कुछ लोग 40 लाख टन पत्थर के प्रयोग की बातें करते हैं। इसका सही प्रमाण कोई भी नहीं है। जिस तरह से एक ही पर्वत की चट्टानों को तराश कर काट कर बनाए गए इस मंदिर को किस तकनीक से बनाया गया होगा। यह सोचना तो आज की आधुनिक इंजीनियरिंग के बस की भी बात नहीं मानी जा सकती है। 276 फीट लंबे और 154 फीट चौड़े इस मंदिर की ऊंचाई 90 फीट है। भारत में जहां भी मंदिर स्थापित हैं। वहीं पूजन अवश्य किया जाता है। परंतु कैलाश मंदिर एक एेसा मंदिर है। जहां पूजा किए जाने का आज तक कोई भी प्रमाण नहीं मिला है।

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कृष्ण काल में शुरु हुआ था मंदिर का निर्माण
इतिहासकारों का मत है कि इस भव्य मंदिर के निर्माण का काम कृष्ण काल मालखेड स्थित राष्ट्रकूट वंश के नरेश कृष्ण प्रथम 757-783 ईस्वी में पूरा हुआ। इस मंदिर को बनाने में करीब 150 वर्ष का लंबा समय लगा। इसको बनाने में सात हजार मजदूरों ने अपना योगदान दिया। सबसे खास बात यह है कि भगवान शिव जी का यह दो मंजिला मंदिर एक ही पर्वत की विशालकाय चट्टानों को तराश कर निर्मित किया गया है। यह मंदिर दुनियाभर में एक ही पत्थर की शिला से बनी हुई सबसे बड़ी मूर्ति के लिए भी पहचाना जाता है। मंदिर के निर्माण में द्रविड़ शैली का प्रयोग किया गया है। अनूठी वास्तु कला से बना मंदिर भीतर व बाहर चारों तरफ मूर्ति-अलंकरणों से भरा हुआ है। इस मंदिर के प्रांगण में तीन कोठरियां भी हैं। खुले प्रांगण में नंदी की विशाल प्रतिमा है। इसके दोनों तरफ विशालकाय हाथी स्तंभ भी बने हुए हैं।

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