एक ऐसा रहस्यमयी मंदिर जहां आज तक नहीं बन पाई छत

भारत में कुछ प्राचीन मंदिर व धार्मिक स्थान ऐसे हैं जिनके रहस्य व चमत्कारों को आजतक कोई समझ नहीं पाया। यह मंदिर व धार्मिक स्थान आज भी लोगों के लिए पहेली बने हुए हैं। वैज्ञानिक युग में यह स्थान इस लिए रहस्यमयी हैं क्योंकि इनके चमत्कारों के पीछे कोई पुख्ता प्रमाण या ठोस आधार नहीं है।

एक ऐसा ही रहस्यमयी मंदिर ‘शिकारी देवी’ के नाम से प्रसिद्ध है जिसके ऊपर कोई भी आजतक छत का निर्माण नहीं कर पाया। शिकारी देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश के मंडी ज़िले में स्थित है। इस मंदिर की एक खास बात यह है कि हर साल इस क्षेत्र में बर्फ पड़ती है लेकिन माता के स्थान पर कभी बर्फ नहीं टिकती।

मंदिर से जुड़ी कथाएं

मान्यता है कि महर्षि मार्कण्डेय ने इस स्थान पर कई वर्षों तक तपस्या की थी। मार्कण्डेय ऋषि की तपस्या से प्रसन्न होकर मां दुर्गा शक्ति रूप में इस स्थान पर स्थापित हुईं थी। इसके बाद अज्ञातवास के समय पांडवों ने यहां पर मंदिर का निर्माण किया। और इस स्थान पर पांडवों ने तपस्या की। मां दुर्गा पांडवों की तपस्या से प्रसन्न हुई और पांडवों को कौरवों के विरुद्ध जीत का आशीर्वाद दिया। इस स्थान पर मंदिर का निर्माण तो किया गया लेकिन मंदिर पूरा नहीं बन पाया।

 

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दूसरी कथा के अनुसार जब पांडव और कौरव आपस में  जुआ खेल रहे थे तब एक स्त्री ने आकर उन्हें मना किया लेकिन होनी को कौन टाल सकता है इस खेल में हारने के बाद पांडवों को राजपाट छोड़कर अज्ञातवास के लिए जाना पड़ा। अज्ञातवास के दौरान पांडव इस स्थान पर आए। एक दिन पांडवों को एक सुन्दर मृग दिखा, पांडवों ने उस मृग का शिकार करना चाहा तो वह मृग पांडवों के हाथ नहीं लगा। इसके बाद पांडव चर्चा करने लगे कि वह मृग मायावी तो नहीं था तभी एक भविष्यवाणी हुई कि मैं इस पर्वत पर वास करने वाली शक्ति हूं मैंने पहले भी एक बार तुम्हें जूआ खेलते हुए सावधान किया था लेकिन तुमने नहीं सुना जिसका परिणाम आज तुम भोग रहे हो। पांडवों ने देवी से क्षमा याचना की तो देवी ने बताया कि मैं इस पर्वत पर नवदुर्गा के रूप में बिराजमान हूं। तुम मेरी मूर्ति को निकालकर स्थापित करोगे तो तुम्हें तुम्हारा राजपाट दुबारा मिल जाएगा। पांडवों ने नवदुर्गा की मूर्ति को इस स्थान पर स्थापित किया। माता के मायावी मृग के शिकार के रूप में मिलने के कारण माता का नाम ‘शिकारी देवी’ पड़ा।

एक और मान्यता के अनुसार वन क्षेत्र होने के कारण यहां पर शिकारी शिकार के लिए आते थे शिकार से पूर्व शिकारी सफलता के लिए प्रार्थना करते थे जो सफल हो जाती थी। इसके बाद इस मंदिर का नाम शिकारी देवी पड़ गया।

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इस मंदिर के आसपास और भी कई निर्माण हुए हैं लेकिन आश्चर्य की बात है कि माता के मंदिर के ऊपर तमाम कोशिशों के बावजूद छत नहीं बन पाई। इस स्थान पर हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं आज तक इस रहस्य को कोई नहीं समझ पाया कि मंदिर के ऊपर छत क्यों नहीं बन सकी।

कैसे पहुंचें

शिकारी माता का मंदिर हिमाचल के मंडी जिले में स्थित है। सुंदर नगर की ओर से मंदिर की दूरी 94 किलोमीटर है। सुंदर नगर की ओर से चैल चैक, कांडा, थुनाग और जन्जैहली होते हुए मंदिर तक पहुंचा जा सकता है जन्जैहली तक बस के द्वारा पहुंचा जा सकता है, इसके बाद भूलह से आगे बड़ी गाड़ी नहीं जाती। जहां पर श्रद्धालु जीप किराए पर लेकर आते हैं। एक और रास्ता करसोग से जाता है यहां से मंदिर की दूरी मात्र 20 किलोमीटर है परंतु यह रास्ता हल्की सी बारिश के बाद ही चलने लायक नहीं रहता।

 

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