इस विधि से हम अपने आराध्य प्रति जताते हैं समर्पण व प्रेम …

-दिन में पांच बार अंतर्मन से करते हैं ईश्वर की अराधना

-मानव शरीर के पंच-प्राणों का प्रतीक है आरती

हिंदू सनातन संस्कृति में अपने आराध्य परम पिता परमात्मा के प्रति समर्पण व प्रेम का भाव करने के लिए सदिय़ों से आरती करने की परंपरा कायम है। शास्त्रों में आरती को मानव शरीर के पंच-प्राणों का प्रतीक माना गया है। दिन एक से पांच बार अंतर्मन से ईश्वर की अराधना की जाती है। आरती दौरान पूजा की थाली, घी, धूप, कलश, सामग्री, फूल, जल, तुलसी व नारियल को रखने का विशेष महत्व है। सामान्यतः पूजा के अंत में आराध्य भगवान की आरती करने की परंपरा है।


आरती में पूजा की थाली
आमतौर पर आरती का थाल पीतल, तांबा, चांदी या सोना धातु का बना होता है। इस थाल में एक गुंधे हुए आटे का या धातु का या फिर गीली मिट्टी का दीपक रखा जाता है। यह दीपक गोल, पंचमुखी, सप्त मुखी सकता है। इस दीपक को तेल या शुद्ध देसी घी द्वारा रुई की बत्ती से जलाया जाता है। आमतौर पर तेल का प्रयोग रक्षा दीपकों में किया जाता है। जबकि आरती वाले दीपकों में केवल देसी घी का ही प्रयोग किया जाता है। आरती में बत्ती के स्थान पर कपूर का भी प्रयोग किया जा सकता है। थाली में दीपक के अलावा पूजा के फ़ूल, धूप-अगरबत्ती भी रखे जा सकते हैं। नदियों की आरती के दौरान थाली के स्थान आरती दीपक का प्रयोग किया जाता है। इनमें बत्तियों की संख्या 101 भी हो सकती है। इन्हें शत दीपक या सहस्रदीप भी कहा जाता है। गौर हो आरती में दीपकों की संख्या सम दीपकों से नहीं की जाती है।

 

कलश में वास करते हैं भगवान शिव
आरती के दौरान प्रयोग किए जाने वाला कलश एक खास आकार का बना होता है। कलश के अंदर के खाली स्थान में भगवान शिव का वास माना जाता है। आरती के समय यदि जल से भर कलश का प्रयोग होता है। तो इसका अर्थ है कि हम भक्त शिव से एकाकार हो रहे हैं।

 

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कलश के जल में देवताओं का होता है वास
कलश में भरे जल को शुद्ध तत्व माना जाता है। क्योंकि समुद्र मंथन के समय विष्णु भगवान ने अमृत कलश धारण किया था। इसलिए कलश में संग्रहित जल में सभी देवताओं का वास माना जाता है। यानि कि जल से भरा कलश देवताओं का आसन होता है। जल में तुलसी के पत्तों को खास तौर से रखा जाता है।

 

कलश पर रखे नारियल में होता है सकारात्मक उर्जा का भंडार
आरत के समय कलश पर नारियल रखा जाता है। नारियल की शिखाओं में सकारात्मक ऊर्जा का भंडार पाया जाता है। जब हम अपने ईष्ट देव की आरती करते हैं, तो नारियल की शिखाओं में विद्यमान उर्जा तरंगों के माध्यम से कलश के जल में पहुंचती है। जो जल का पावन कर देती हैं।

 

आरती थाली में सोना रखने की रस्म
आरती के थाल में सोना रखने की रस्म है। ऐसी मान्यता है कि स्वर्ण धातु अपने आस-पास के वातावरण में सकारात्मक उर्जा प्रवाहित करता है। यही कारण है कि इसे भक्तों को भगवान से जोड़ने का माध्यम भी माना जाता है।

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तांबे का कलश करता है सात्विक लहरें प्रवाहित
आरती की थाली में रखा कलश तांबे का ही होना चाहिए। क्योंकि तांबे में से सात्विक लहरें उत्पन्न करने की क्षमता अन्य धातुओं की अपेक्षा अधिक मानी गई है। कलश में उठती हुई लहरें वातावरण में प्रवेश कर जाती हैं। कलश में पैसा डालना त्याग का प्रतीक भी माना जाता है। यदि कलश में तांबे के पैसे डालते हैं, तो इसका अर्थ है कि भक्त में सात्विक गुणों का समावेश हो रहा है।

सप्तनदियों के जल से पूजा होती शुभ
आरती की थाली में रखे कलश में गंगा, गोदावरी, यमुना, सिंधु, सरस्वती, कावेरी और नर्मदा नदी का जल डालना बेहद शुभ माना जाता है। सप्त नदियों के जल में सकारात्मक ऊर्जा को आकृष्ट करने और उसे वातावरण में प्रवाहित करने की क्षमता होती है। इसी कारण ऋषि मुनि ईश्वर से एकाकार होने के लिए नदियों के किनारे ही तप करते रहे हैं।

 

कितने तरह की होती आऱती
आरती पांच प्रकार से की जाती है। पहली दीपमाला से, दूसरी जल से भरे शंख से, तीसरी धुले हुए वस्त्र से, चौथी आम और पीपल के पत्तों से और पांचवीं साष्टांग रुप में। साष्टांग रुप में शरीर के पांचों भाग (मस्तिष्क, हृदय, दोनों कंधे, हाथ व घुटने) जुड़े होते हैं। पंच-प्राणों की प्रतीक आरती मानव शरीर के पंच-प्राणों की प्रतीक मानी जाती है।

 

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विशेष विधि से की जाती है आरती
आरती हिन्दू उपासना की एक विधि है। इसमें जलती हुई लौ या इसके समान कुछ खास वस्तुओं से आराध्य के सामने उपर से नीचे गोलाकार रुप में घुमाया जाता है। आरती दौरान कई जगहों पर संगीत (भजन) तथा नृत्य भी होता है। मंदिरों में इसे सुबह, शाम व रात्रि में द्वार बंद होने से पहले करने की परंपरा है। मान्यता है कि आरती करने और इसमें सम्मलित होने वालों को पुण्य मिलता है। किसी भी देवता की आरती करते समय उन्हें तीन बार पुष्प अर्पित किए जाते हैं।

आरती की लौ पर क्यों घुमाते हैं हाथ
आरती होने के बाद आरती के दीपक को उपस्थित भक्त-समूह में घुमाया जाता है। आरती में मौजूद लोग अपने दोनों हाथों को नीचे को उलटा कर जोड़ कर आरती की लौ पर घुमा कर अपने मस्तक और सिर पर लगाते हैं। इसके दो कारण माने गए हैं। पहली मान्यता अनुसार आरती दौरान ईश्वर की शक्ति उस आरती में समा जाती है। आरती की लौ पर हाथ घुमान से उसका कुछ अंश भक्तों को मिल जाता है। दूसरी मानयता अनुसार ईश्वर की बलाएं ली जाती हैं। जिस प्रका एक मां अपने बच्चों की बलाएं लेती है। असल में इसका उद्देश्य ईश्वर के प्रति अपना समर्पण व प्रेम जताना होता है।

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किस दिशा में आरती का दीपक रखने से मिलता है लाभ

आरती का दीपक पूर्व दिशा की ओर रखने से आयु में वृद्धि होती है। पश्चिम दिशा की ओर रखने से दु:ख बढ़ता है। उत्तर दिशा की ओर रखने से धनलाभ होता है। दक्षिण दिशा की ओर रखने से हानि होती है। यह हानि किसी व्यक्ति या धन के रूप में भी हो सकती है।

कुमार प्रदीप

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