इस मंदिर में हुआ था भगवान श्री राम और देवी सीता का विवाह

-48सौ से अधिक वर्ग फीट में स्थापित है जानकी मंदिर

प्रदीप शाही

त्रेतायुग में भगवान श्री विष्णु हरि जी ने भगवान श्री राम और माता लक्ष्मी जी ने माता सीता के रुप में अवतार लिया। भगवान श्री राम ने महाराजा दशरथ के परिवार में और देवी सीता ने धरती माता की गोद में जन्म लिया। परंतु माता सीता का पालन पोषण मिथिला के राजा जनक के घर में हुआ। क्या आप जानते हैं कि भगवान श्री राम और माता सीता का विवाह कहां हुआ था। यह पावन मंदिर आज नेपाल में स्थित है। यह जानकी मंदिर 48सौ से अधिक वर्ग फीट में स्थापित है। आईए, आज हम आपको नेपाल स्थित इस जानकी मंदिर के बारे विस्तार से जानकारी प्रदान करते हैं।

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कहां है जानकी मंदिर

रामायण काल में भगवान श्री राम और देवी सीता का स्वयंवर संपन्न हुआ। राजा जनक मिथिला के राजा जनक थे और उनकी राजधानी का नाम जनकपुर था। रामायण काल का जनकपुर मौजूदा समय में नेपाल में स्थित है। यह स्थान आज एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल के रुप में लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। जनकपुर नेपाल की राजधानी काठमांडू से 400 किलोमीटर दक्षिण पूर्व में बसा हुआ है। जनकपुर को लोग भगवान श्री राम की ससुराल कहते हैं। क्योंकि यहां पर ही देवी सीता संग भगवान श्री राम का विवाह हुआ था। जिस पवन स्थान पर भगवान श्री राम का देवी सीता संग विवाह हुआ था। वह स्थान मौजूदा समय में जानकी मंदिर के नाम से विख्यात है। इस नगर में ही देवी सीता का बचपन व्यतीत हुआ था। और जब देवी सीता युवा हुई तो यहीं पर उनका स्वयंवर संपन्न हुआ। जनकपुर स्थित जानकी मंदिर में विवाह पंचमी के अवसर पर विशाल आयोजन किया जाता है।

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शिव धनुष के अवशेष पाषाण रुप में हैं मौजूद

जानकी मंदिर में जहां पर भगवान श्री राम ने सीता स्वयंवर के दौरान भगवान शिव का धनुष भंग किया था। कहा जाता है कि उस स्थान आज भी टूटे हुए धनुष के अवशेष पाषाण रुप में मौजूद है। इस स्थान को धनुषा नामक विवाह मंडप भी कहा जाता है। इस पावन स्थान पर आज भी विवाह पंचमी के दिन पूरी रीति-रिवाज से राम-जानकी का विवाह किया जाता है। ।

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महारानी वृषभानु कुमारी ने करवाया था इस मंदिर का निर्माण

इस पावन जानकी माता मंदिर का निर्माण टीकमगढ़ की महारानी वृषभानु कुमारी ने करवाया था। पुत्र प्राप्ति की कामना से महारानी वृषभानु कुमारी यहां बैठ कर पूजन किया। इसी स्थान पर एक संत को धरती में से माता सीता की एक मूर्ति मिली थी, जो सोने की थी। महारानी ने 1895 ईस्वी में इस स्थान पर ही जानकी मंदिर का निर्माण करवाया। महारानी ने ही संत को मिली देवी सीता की स्वर्ण मूर्ति को मंदिर के प्रांगण में प्राण-प्रतिष्ठित किया। जानकी मंदिर साल 1911 में बनकर तैयार हुआ था। यह मंदिर 48सौ वर्ग फीट से अधिक रकबे में फैला हुआ है। कहा जाता है कि उस समय मे इस मंदिर के निर्माण पर नौ लाख रुपए से अधिक का खर्च आया था। इसलिए इस मंदिर को नौलक्खा मंदिर भी कहा जाता है। सबसे अहम बात यह है कि इस मंदिर में वर्ष 1967 से लगातार सीता-राम नाम का जाप और अखंड कीर्तन चल रहा है। इस मंदिर को जनकपुरधाम भी कहा जाता है। मंदिर के विशाल परिसर के आसपास कुल मिलाकर 115 सरोवर हैं। इसके अलावा कई कुंड भी विद्यमान हैं। जो गंगासागर, परशुराम कुंड और धनुष-सागर के नाम से पहचाने जाते हैं।

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