इस किले को जीतने के लिए अकबर ने किया था 52 बार हमला

धर्मेन्द्र संधू

राजाओं-महाराजाओं के जीवन से जुड़ी कहानियों को बयां करते प्राचीन किले भारत की अमूल्य धरोहर हैं। इनमें से कुछ किले समय की सरकारों की अनदेखी का शिकार हो चुके हैं तो कुछ प्राकृतिक आपदाओं के कारण अपने मूल रूप में नहीं हैं। एक ऐसा ही किला भारत के पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित है।

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कांगड़ा का किला

ऊंचे स्थान पर स्थित व 463 एकड़ में फैला हुआ कांगड़ा का किला भारत के सबसे पुराने किलों में से एक है। इसे नगरकोट के नाम से भी जाना जाता है। कांगड़ा के इस प्रसिद्ध किले का निर्माण तकीबन 3500 साल पहले कटोच वंश के शासक सुशर्मा चंद्र ने करवाया था। इस किले से धौलाधार की पहाड़ियों के प्राकृतिक सौन्दर्य को भी नहारा जा सकता है।

महाभारत काल से साथ जुड़ा है किले का संबंध

कहा जाता है कि महाराजा सुशर्मा चंद्र ने महाभारत के युद्ध के दौरान कौरवों का साथ दिया था। इसके बाद ही राजा सुशर्मा चंद्र ने इस किले का निर्माण करवाया था। इस युद्ध में सुशर्मा चंद्र ने ही अर्जुन का ध्यान भटकाते हुए उसे द्रोणाचार्य द्वारा बनाए गए चक्रव्यूह से दूर रखा था। क्योंकि अर्जुन के अलावा कोई भी इस चक्रव्यूह को भेदना नहीं जानता था।

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वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है कांगड़ा का किला

कांगड़ा का प्राचीन किला वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है। किले के मुख्य द्वार पर लगा महाराजा रणजीत सिंह के नाम का शिलालेख इस किले पर सिक्खों के अधिकार को दर्शाता है। आहिनी और अमीरी के साथ ही दर्शनी दरवाजा भी विशेष आकर्षण का केन्द्र हैं। किले की दीवारों पर की गई नक्काशी पर्यटकों को अपनी ओर खींचती है। किले की दीवारों पर भगवान गणेश व हनुमान जी के साथ ही गंगा-यमुना के दर्शन भी होते हैं। किले के टूटे हुए अवशेषों को भी पर्यटकों के देखने के लिए रखा गया है। इसके अलावा किले के बाहर बने संग्रहालय में पुराने शिलालेख सरंक्षित किए गए हैं। 1905 में आए भूकंप ने किले को काफी नुकसान पहुंचाया था। किले के बिल्कुल ऊपरी हिस्से पर पहुंचने पर प्राकृति के नज़ारों का आनन्द लिया जा सकता है।

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हमलावरों ने कई बार बनाया इस किले को अपना निशाना

इस किले पर पहला हमला 470 ईस्वी में कश्मीर के राजा द्वारा किया गया था। साथ ही पहला विदेशी हमला 1009 ईस्वी में महमूद गजनवी ने किया था। इसके बाद मुहम्मद बिन तुगलक ने इस किले पर कब्जा किया और मुहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु के बाद फिरोज शाह तुगलक ने इस किले पर शासन किया। कहा जाता है कि महमूद गजनवी ने किले में मौजूद लोगों को मौत के घाट उतारते हुए, सारा खज़ाना भी लूट लिया था। 1615 में इस किले पर अपना प्रचम लहराने के लिए बादशाह अकबर ने 52 असफल प्रयास किए थे। इतने प्रयासों के बाद आखिरकार 1620 में जहांगीर ने किले पर कब्जा किया।

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महाराजा रणजीत सिंह ने किया था कब्ज़ा

कांगड़े का किला अपनी संपत्ति व धन के लिए प्रसिद्ध था। इसी कारण इस किले को बार-बार विभिन्न देशी व विदेशी हमलावरों और शासकों के हमलों को सामना करना पड़ा। इस प्राचीन किले पर महमूद गजनवी, मोहम्मद बिन तुगलक, फिरोज शाह तुगलक व अकबर ने हमला किया था। काफी समय तक यह किला मुगलों के अधीन रहा। कटोच वंश के उत्तराधिकारी राजा संसार चंद ने एक बार फिर से अपनी सेना को गठित व मजबूत करते हुए 1789 में मुगलों से इस किले को आज़ाद करवाया। 1806 में गोरखा सेना ने किले पर कब्जा कर लिया। बाद में राजा संसार चंद ने महाराजा रणजीत सिंह के साथ गठबंधन किया। 1809 में महाराजा रणजीत सिंह ने इस किले पर अपना अधिकार जमा लिया। 1846 तक कांगड़ा के किले पर सिखों का अधिकार रहा और अंत में यह किला अंग्रेजों के अधीन आ गया।

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किले में स्थित है अम्बिका देवी का मंदिर

किले के बीच अम्बिका देवी का प्राचीन मंदिर स्थित है। इस मंदिर में देवी अम्बिका की पिंडी रूप में प्राचीन मूर्ति स्थापित है। आज भी इस मंदिर में पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है। इसके अलावा अम्बिका देवी मंदिर के पास ही लक्ष्मी-नारायण मंदिर भी मौजूद था जिसका केवल एक हिस्सा व कुछ अवशेष मात्र ही देखने को मिलते हैं। मंदिर के पास ही एक बड़ा पीपल का पेड़ भी है जो सदियों पुराना है होने के बावजूद भी ज्यों का त्यों हरा भरा है।

किले तक कैसे पहुंचें?

हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध शहर कांगड़ा तक पंजाब के रोपड़ व नंगल से होते हुए बस या टैक्सी के द्वारा पहुंच सकते हैं। इसके अलावा पठानकोट से भी सीधा सड़क मार्ग कांगड़ा तक जाता है। पठानकोट से एक छोटी रेल गाड़ी कांगड़ा से होते हुए जोगिन्द्र नगर तक जाती है। कांगड़ा फोर्ट का नजदीकी हवाई अड्डा गग्गल एयर पोर्ट है। कांगड़ा के बस स्टैंड से टैक्सी या आटो द्वारा किले तक जाया जा सकता है। किले के अंदर जाने के लिए मुख्य गेट से 25 रुपए का टिकट लेना पड़ता है। हालांकि अब कांगड़े के इस प्राचीन किले का ज्यादातर हिस्सा खंडहर का रूप धारण कर चुका है लेकिन फिर भी यह किला इतिहास की गौरव गाथा का गान करता हुआ दिखाई देता है।

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