इससे पहले नहीं देखी होगी आपने ऐसी अद्भुत आरती

धर्मेन्द्र संधू

देवी सती के पावन शरीर के अंग जिन स्थानों पर गिरे वह आज शक्ति पीठ कहलाते हैं। एक ऐसा ही पावन स्थान मध्य प्रदेश में स्थित है जो श्रद्धालुओं की आस्था का केन्द्र है। इस मंदिर का इतिहास राजा विक्रमादित्य के साथ भी जुड़ा है।

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प्राचीन देवी हरसिद्धि मंदिर

भारत के राज्य मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध शहर उज्जैन में स्थित है हरसिद्धि देवी का प्राचीन मंदिर। यह स्थान 52 शक्ति पीठों में से एक है। इस पावन स्थान पर देवी सती की कोहनी गिरी थी। मान्यता है कि मां हरसिद्धि हर मनोकामना पूरी करती है। मां की आराधना से समस्त सिद्धियों की प्राप्ति होती है। मंदिर के गर्भ गृह में तीन मूर्तियां स्थापित हैं। इन में से मध्य में मां हरसिद्धि विराजमान हैं और ऊपर मां अन्नपूर्णा व नीचे मां कालका जी के दर्शन होते हैं। कुछ भक्तों का मानना है कि मां हरसिद्धि के दाईं व बाईं ओर मां लक्ष्मी व मां सरस्वती विराजमान हैं। मराठों के शासनकाल में इस प्राचीन मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया गया था।

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मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार माता सती के पिता प्रजापति दक्ष द्वारा एक यज्ञ का आयोजन किया था। इस यज्ञ में उन्होंने सभी देवताओं को बुलाया था, लेकिन यज्ञ में उन्होंने भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। इस पर माता सती हठपूर्वक उस यज्ञ में शामिल होने के लिए चली गईं और अपने पति भगवान शिव का अपमान सहन न करते हुए देवी सती अग्निकुंड में कूद गईं। इस पर क्रोधित होकर भगवान शिव माता सती के पार्थिव शरीर को लेकर पूरे ब्रह्माण्ड में भ्रमण करने लगे तो भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के पावन शरीर को कई हिस्सों में विभाजित कर दिया। देवी सती के शरीर के यह पावन अंग जिस भी स्थान पर गिरे वह स्थान शक्ति पीठ कहलाए। मान्यता है कि इस स्थान पर देवी सती की कोहनी गिरी थी।

यहां देवी करती है रात्रि को विश्राम

मान्यता है कि रात को विश्राम के लिए देवी हरसिद्धि उज्जैन में स्थित इस पावन स्थान पर आती है। इसके अलावा वह सुबह से लेकर शाम तक गुजरात के हरसद नामक गांव में स्थित हरसिद्धि मंदिर में चली जाती है। माता के शाम को उज्जैन लौटने पर विशेष रूप से आरती का आयोजन किया जाता है।

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मां हरसिद्धि की होती है विशेष आरती

जब किसी मंदिर में किसी देवी या देवता की आरती होती है तो ज्योति या एक दीप प्रज्वलित किया जाता है। लेकिन मां हरसिद्धि की संध्या आरती के दौरान सौ लीटर तेल से ग्यारह सौ ग्यारह दीप जलाए जाते हैं। इससे भी ज्यादा हैरानी की बात यह है कि यह सभी दीप दस मिनट में ही जलने लगते हैं। इस दौरान दो स्तंभों पर यह समस्त दीपक जलाए जाते हैं। इन स्तंभों को भगवान शिव व माता पार्वती का प्रतीक माना जाता है। जिस स्तंभ को भगवान शिव माना जाता है उस पर 511 दीप जलते हैं और दूसरे यानि मां पार्वती के प्रतीक स्तंभ पर 600 दीप जलाए जाते हैं। इन दीपों को जलाने की सेवाएं उज्जैन का रहने वाला एक ही परिवार पिछले 100 सालों से निभाता आ रहा है। दीप स्तंभों पर दीप जलाने के लिए श्रद्धालुओं को कई महीने पहले बुकिंग करवानी पड़ती है। मुख्य रूप से नवरात्रि के पावन पर्व पर तो इस विशेष दीप जलाने की प्रक्रिया के लिए भक्त एक साल पहले ही बुकिंग करवा देते हैं।

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राजा विक्रमादित्य थे माता के परम भक्त

राजा विक्रमादित्य का नाम कौन नहीं जानता। राजा विक्रमादित्य मां हरसिद्धि के परम भक्त थे। कहा जाता है कि राजा विक्रमादित्य अमावस्या की रात को मां हरसिद्धि की पूजा-अर्चना करते थे। इस दौरान वह हर 12 साल बाद अपना सिर माता को अर्पित कर देते थे। मां की कृपा से उनका सिर हर बार जुड़ भी जाता था। इसी क्रम में जब विक्रमादित्य ने बारहवीं बार अपना सिर माता को भेंट किया तो वह दोबारा नहीं जुड़ा। राजा विक्रमादित्य के 11 सिरों को प्रतीक रूप में मंदिर में देखा जा सकता है।

मंदिर तक कैसे पहुंचें

मां हरसिद्धि के दर्शनों के लिए सारा साल ही बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं, लेकिन नवरात्रों में श्रद्धालुओं की संख्या आम दिनों से बढ़ जाती है। मां हरसिद्धि का मंदिर उज्जैन में शिप्रा नदी के किनारे पर स्थित है। मां के दरबार तक रेल, सड़क व हवाई मार्ग से देश के किसी भी हिस्से से पहुंच सकते हैं।

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