इन मंदिरों में पूजा-पाठ संग क्यों की जाती है तांत्रिक साधना

-तंत्र मंत्र से किया जाता है देवी देवताओं को प्रसन्न
भारत में पौराणिक काल से ही मंदिरों में पूजा-पाठ के अलावा तंत्र-साधना को प्रमुखता दी जाती रही है। जो सदियां बीत जाने के बाद आज भी अनवरत जारी है। इन प्राचीन मंदिरों में गुप्त सिद्धियां प्राप्त करने के प्रमाण आज भी मिलते हैं। कई मंदिरों में तो भूत-पिचाशों की समस्याओं से निजात पाने के लिए लोग नतमस्तक होते हैं। आईए, आज आपको बताएं कि किन मंदिरों में तंत्र मंत्र की साधना की जाती है। या यूं कहें कि कौन से मंदिर तांत्रिकों के गढ़ के नाम से पहचाने जाते हैं।

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बेताल मंदिर में होती है मां चामुंडा की पूजा
ओडिशा के भुवनेश्वर स्थित आठवीं सदी में बना बेताल मंदिर प्राचीन हिंदू मंदिर है। कालिंग शैली में निर्मित इस प्राचीन मंदिर में देवी चामुंडा की प्रतिमा प्राण-प्रतिष्ठित है। मंदिर के शीर्ष पर बनाई गई तीन मीनारों के कारण स्थानीय भाषा में इसे तिनी-मुंडिया कहा जाता है। यह तीन मीनारें देवी चामुंडा की त्री-शक्तियों महालक्ष्मी, माता सरस्वती, और महाकाली का प्रतिनिधित्व करती हैं। इस मंदिर में तंत्र साधना के लिए बलशाली मां चामुंडा की पूजा की जाती है। इस मंदिर में तांत्रिक क्रियाएं निरंतर चलती रहती है।

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तांत्रिक क्रियाओं के लिए प्रसिद्ध है बैजनाथ मंदिर
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले की पालमपुर पहाड़ी में देवों के देव महादेव को समर्पित बैजनाथ मंदिर का निर्माण वर्ष 1204 में अहुक और मन्युक नाम के दो व्यापारियों ने किया था। इस मंदिर का निर्माण और सौंदर्यीकर्ण लंबे समय तक जारी रहा। यहां के पानी में दिव्य शक्ति होनने के कारण यहां पर तांत्रिक साधना की जाती है। यहां का दिव्य शक्ति वाला पानी पाचन शक्तियों के लिए प्रसिद्ध है।

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एकलिंग जी मंदिर में विराजमान भगवान शिव
राजस्थान के उदयपुर शहर में भगवान शिव का एकलिंग जी मंदिर स्थापित है। यह मंदिर शहर से 18 किमी दूरी पर दो पहाड़ियों के मध्य बना हुआ है। भगवान एकलिंग जी मेवाड़ के राजपूतों के प्रमुख आराध्य देव माने जाते हैं। कहते हैं कि राजपूतों ने महादेव का आशीर्वाद हासिल कर बड़े-बड़े युद्धों में जीत हासिल की थी। यहां आज भी पूजा-पाठ पूरे विधि-विधान से की जाती है। इस मंदिर में काले संगमरमर से भगवान शिव की बेहद खूबसूरत चौमुखी मूर्ति प्राण-प्रतिष्ठित है। मंदिर में तंत्र साधना प्रमुख रही है।

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यहां पर गिरी थी देवी सती की पैरों की अंगुलियां
पश्चिम बंगाल के कोलकाता में प्रसिद्ध कालीघाट शक्तिपीठ मां काली को समर्पित है। माना जाता है कि देवी सती के दाएं पैर की कुछ अंगुलियां इसी स्थान पर गिरी थीं। जिसके बाद यह स्थान देवी के शक्तिपीठ के रूप में जाना गया । यहां मां काली के भक्तों का हमेशा तांता लगा रहता है। यह मंदिर तांत्रिक साधना के लिए प्रसिद्ध है। कोलकाता का कालीघाट तांत्रिकों के लिए तीर्थ माना जाता है।

 

तांत्रिक गतिविधियों का केंद्र है कामाख्या मंदिर
तांत्रिक गतिविधियों का केंद्र माना जाने वाला कामाख्या मंदिर असम के गुवाहाटी शहर से करीब आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। देवी कामाख्या का यह भव्य मंदिर देवी सती के प्रमुख शक्तिपीठों में एक है। यहां मां भगवती कामाख्या (सती) का योनि-कुंड भी स्थित है। यह स्थान तंत्र सिद्धि का महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता है। यहां पर दूर-दूर से अघोरी तांत्रिक साधना करने पहुंचते हैं। असम आने वाले पर्यटक देवी मां के दर्शन करने जरुर आते हैं।

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ज्वालामुखी मंदिर में जारी रहते हैं तांत्रिक अनुष्ठान

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा घाटी के पास स्थित ज्वाला मुखी मंदिर देवी के 51 शक्तिपीठों में एक है। इस मंदिर को जोतां वाली का मंदिर और नगरकोट के नाम से भी जाना जाता है। यहां पर देवी सती की जीभ गिरी थी। इस मंदिर को खोजने का काम पांडवों ने किया था। इस मंदिर में माता की अखंड ज्योति प्रज्जवलित रहती है। मंदिर में प्रवेश करते ही माता की नौ ज्योतियां महाकाली, चंडी, हिंगलाज, महालक्ष्मी, अन्नपूर्णा, सरस्वती, विंध्यावासनी, अंजीदेवी, अम्बिका दिखाई देती हैं।यह मंदिर तांत्रिक अनुष्ठान के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर एक जल कुंड है, जो देखने पर उबलता दिखाई देता है, लेकिन छूने पर पानी ठंडा रहता है।

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तांत्रिक गतिविधियों का प्रमुख स्थान खजुराहो मंदिर
मध्य प्रदेश स्थित खजुराहो मंदिर अपनी कामुक मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर को देखने के लिए देश विदेश से लोग पहुंचते हैं। यह मंदिर वास्तुकला व मूर्तियों का उत्कृष्ट कला का उदाहरण हैं। यह मंदिर कला प्रेमियों के लिए मुख्य आकर्षण का केंद्र रहा है। प्राचीन काल में यह मंदिर तंत्र-साधना के लिए भी जाना जाता था, जिसके प्रमाण आज भी गुप्त रूप से मिलते हैं।

मदिरा प्रतिमा के मुख से लगाते ही हो जाती है गायब
मध्य प्रदेश के उज्जैन स्थित काल भैरव एक ऐसा अनोखा मंदिर है, जहां भगवान को मदिरा पान करवाया जाता है। काल भैरव का यह प्राचीन मंदिर लगभग छह हजार साल पुराना माना जाता है। इस मंदिर को तांत्रिक मंदिर भी कहा जाता है। काल भैरव को मदिरा का भोग लगाने का सिलसिला सदियों से जारी है। यह बात अब तक रहस्य बनी हुई कि आखिर भोग लगाने वाली मदिरा भगवान के मुख से लगाने से कहां गायब हो जाती है। इस मंदिर में भैरव की श्याममुखी मूर्ति है। यहां पर देश भर के तांत्रिक और अघोरी सिद्धियों के लिए आते हैं।

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भूत प्रेत का साया दूर करते हैं बालाजी
राजस्थान स्थित बाला जी का मंदिर बेहद प्राचीन है। इस मंदिर में वह लोग अधिक आते हैं। जो किसी अंजानी शक्ति, भूत-प्रेत के साये से पीड़ित होते हैं। यहां पर तंत्र मंत्र साधना अधिक होती है। यहां पर झाड़ फूंक की जाती है। तंत्र मंत्र के अलावा यहां पूजा अर्चना की जाती है।

प्रदीप शाही

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