अर्जुन की अपने बेटे के हाथों ही हुई थी मृत्यु

-महाभारत काल में दो बार हुई थी अर्जुन की मौत

प्रदीप शाही

द्वापर युग में हुए महाभारत काल की कई घटनाएं हमेशा सुनने वालों को हतप्रभ करती हैं। क्या आप जानते हैं कि महाभारत काल के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धारी अर्जुन की दो बार मौत हुई थी। पहली बार अर्जुन की अपने ही बेटे के हाथों मौत हो गई थी। जबकि दूसरी बार सभी पांडव व द्रोपदी जब सशरीर स्वर्ग जाने के लिए निकले थे। जब उनकी स्वभाविक मौत हुई। अर्जुन की दो बार हुई मौत के रहस्य पर गिरे पर्दे को आज हम उठाते हुए सारी स्थिति से अवगत करवाते हैं।

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धनुर्धारी अर्जुन की द्रोपदी के अलावा थी तीन पत्नियां

धनुर्धारी अर्जुन का पहली शादी द्रोपदी से हुई थी। परंतु माता कुंती के कथन अनुसार द्रोपदी को पांचों पांडवों संग विवाहित जीवन व्यतीत करना पड़ा। अर्जुन ने द्रोपदी के अलावा तीन अन्य विवाह किए थे। अर्जुन की अन्य तीन पत्नियों में सुभद्रा (भगवान श्री कृष्ण की बहन), उलूपी (नागकन्या) और चित्रांगदा थी। अर्जुन के तीन पुत्र थे। द्रौपदी से अर्जुन के पुत्र श्रुतकर्मा, सुभद्रा से अभिमन्यु, उलूपी से इरावन, चित्रांगदा से बभ्रुवाहन नामक पुत्रों ने जन्म लिया था। चित्रांगदा, चित्रवाहन की बेटी थी। अपने नाना चित्रवाहन की मौत के बाद बभ्रुवाहन मणिपुरा के राजा बने थे।

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अपने बेटे के हाथों कैसे हुई अर्जुन की युद्ध में मौत

कहा जाता है कि एक दिन महर्षि वेदव्यास और भगवान श्री कृष्ण आपस में मंत्रणा कर रहे थे। उन्होंने फैसला किया कि अब पांडवों को अश्वमेध यज्ञ करना चाहिए। पांडवों ने महर्षि वेद व्यास औऱ भगवान श्री कृष्ण के फैसले को पूर्ण करने के लिए शुभ मुहूर्त देखकर यज्ञ का शुभारंभ किया। अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े की सुरक्षा का दाय़ित्व धनुर्धारी अर्जुन को सौंपा गया। अश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा घूमते-घूमते मणिपुर जा पहुंचा। मणिपुरा में नरेश बभ्रुवाहन का राज था। बभ्रवाहन, अर्जुन और चित्रांगदा के पुत्र थे। नरेश बभ्रबाहन को जब ज्ञात हुआ कि उनके पिता उनके राज में पहुंचे हैं। तो वह गणमान्य नागरिकों औऱ अपने मंत्रियों संग बहुत सा धन व उपहार लेकर राज्य की सीमा पर पहुंचे। मणिपुरा के नरेश बभ्रुवाहन (बेटे) को इस तरह से सत्कार करता पा कर अर्जुन क्रोधित हो गए। उन्होंने कहा कि बेटा, तुम एक क्षत्रिय हो। यह व्यवहार एक क्षत्रिय को शोभा नहीं देता है। मैं महाराज युधिष्ठर के अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े की सुरक्षा करते इस राज्य में आया हूं। तुम्हें मेरे साथ युद्ध कर अपना क्षत्रिय धर्म निभाना चाहिए।

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इसी दौरान मौजूद अर्जुन की नागकन्या पत्नी उलूपी ने सारे वार्तालाप को सुन कर बभ्रुवाहन से कहा कि तुम्‍हें अपने राज्य की सुरक्षा के लिए अपने पिता अर्जुन से युद्ध जरुर करना चाहिए। ऐसा करने से वह तुम पर प्रसन्‍न हो जाएंगे। माता उलूपी की बात सुन कर बभ्रुवाहन ने अपने पिता अर्जुन से युद्ध शुरु कर किया। अर्जुन और बभ्रुवाहन के बीच भीष्ण युद्ध शुरु हो गया। युद्ध के दौरान नरेश बभ्रुवाहन मूर्छित हो गए। जबकि अर्जुन की इस युद्ध में अपने बेटे बभ्रुवाहन के हाथों मौत हो गई।

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किसने किया अर्जुन को दोबारा जिंदा

अर्जुन की मृत्यु का समाचार मिलते ही हर तरफ हाहाकार मच गई। अर्जुन की पत्नी चित्रांगदा घटना स्थल पर पहुंच कर विलाप करते हुए उलूपी से कहने लगी कि तुम्हारी ही सलाह से मेरे पुत्र बभ्रुवाहन ने अपने पिता अर्जुन से युद्ध किया। औऱ यह दुखद घड़ी समक्ष आ गई है। चित्रांगदा ने विलाप करते हुए उलूपी से कहा कि बहन, तुम तो धर्म की जानकार हो। ऐसे में मैं तुमसे अर्जुन के प्राणों की भीख मांगती हूं। अब तुम मेरे पति अर्जुन को जीवित करो। अन्यथा मैं भी यहीं पर अपने प्राण त्याग दूंगी। इसी दौरान यूद्ध भूमि में मूर्छित बभ्रुवाहन को होश आ गया।  उसने देखा कि उसकी माता चित्रांगदा, उसके पिता अर्जुन के शव के पास बैठकर विलाप कर रही है। जबकि माता उलूपी भी पास ही बैठी हैं। बभ्रुवाहन को जब सारी घटना की जानकारी मिली तो वह भी अपने पिता अर्जुन के पास   बैठ कर विलाप करने लगा। बभ्रुवाहन ने तब प्रण लिया कि अब मैं भी इस रणभूमि पर आमरण अनशन कर अपनी देह त्याग दूंगा। यदि मेरे पिता अर्जुन जीवित न हुए। बभ्रुवाहन और चित्रांगदा के विलाप को देख कर उलूपी का हृदय पसीज गया। नागकन्या उलूपी ने अर्जुन को जीवनदान देने के लिए संजीवन मणिका का स्मरण किया। जीवन की आधारभूत मणि नागकन्या उलूपी के स्मरण करते ही वहां प्रकट हो गई। तब उलूपी ने उस मणि के स्पर्श से अर्जुन को जीवित कर दिया।

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दूसरी बार कैसे हुई अर्जुन की मृत्यु

यदुवंशियों के नाश की समूची जानकारी मिलने के बाद महाराज युधिष्ठिर को बहुत पीड़ा हुई। महर्षि वेदव्यास की बात को मानते हुए द्रौपदी सहित सभी पांडवों ने राजपाठ को त्याग कर सशरीर स्वर्ग जाने का फैसला किया। सभी पांडव हिमालय तक पहुंच गए। इस दौरान उनके साथ एक कुत्ता भी चल रहा था। हिमालय के दुर्गम क्षेत्र में सबसे पहले द्रौपदी लड़-खड़ाकर कर गिर पड़ीं। द्रोपदी की मृत्यु सबसे पहले हुए। द्रोपदी के बाद नकुल, सहदेव, अर्जुन और फिर भीम की गिरकर मृत्यु हो गई। सबसे अंत में युधिष्ठिर और उनका कुत्ता ही सशरीर स्वर्ग पहुंचने में सफल हो पाए।

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