इस अनादि काल मंत्र की संतान है चारों वेद ऋग्वेद, यर्जुवेद, सामवेद व अथर्ववेद

-सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी के चार मुखों से हुई थी चारों वेदों की रचना

-सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी को आकाशवाणी से हुई थी गायत्री मंत्र की प्राप्ति

गायत्री महा मंत्र के भाव को अन्य धर्मों ने भी स्वीकारा

गायत्री महामंत्र
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।


गायत्री मंत्री को सनातन, अनादि काल मंत्र के रुप में जाना जाता है। धार्मिक ग्रंथों अनुसार सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी को आकाशवाणी से गायत्री मंत्र की प्राप्ति हुई थी। तब सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी के चार मुखों से चारों वेदों की रचना हुई। उनमें इस मंत्र की साधना करने से सृष्टि रचने की शक्ति का समावेष हुआ। 24 अक्षरों से उपजे इस मंत्र के उच्चारण से ईश्वर को प्राप्त करने का मार्ग खुलता है।

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समस्त ज्ञान विज्ञान का सार है गायत्री मंत्र
अनादिकाल में अकाशवाणी से उपजे गायत्री मंत्री में इस समूचे ब्रह्मांड के ज्ञान विज्ञान के सार का समावेष है। भारतीय संस्कृति में वेदों को समस्त विधाओं का भंडार माना गया है। जबकि वेद गायत्री मंत्र की व्याख्या का अंश है। गायत्री मंत्र को महाशक्ति, देवी, वेद माता का रुप माना जाता है।


गायत्री मंत्र से हुई वेदों की उत्पत्ति
सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी एक-एक मुख ने एक-एक चरम में अनादि काल गायत्री मंत्र से चारों वेदों की रचना की। पुराणों में गायत्री मंत्र के महत्व को ॐ के बराबर माना है। 24 अक्षरों वाले गायत्री मंत्र ॐ भूर्भवः स्वः से ऋग्वेद, तत्सवितुर्वरेण्यं से यर्जुवेद, भर्गो देवस्य धीमहि से सामवेद और धियो योनः प्रचोदयात् से अथर्ववेद की रचना हुई। जबकि इन चारों वेदों से शास्त्र, दर्शन, ब्राह्मण ग्रन्थ, आरण्यक, सूत्र, उपनिषद्, पुराण, स्मृति ग्रंथ का जन्म हुआ । इन्हीं ग्रन्थों से शिल्प, वाणिज्य, शिक्षा, रसायन, वास्तु, संगीत जैसी 84 कलाओं ने जन्म लिया। यह सब गायत्री मंत्र के अर्थ का ही विस्तार है।


ॐ भूर्भवः स्वः में छिपे गहन रहस्य
गायत्री मंत्र के प्रमुख वाक ॐ भूर्भवः स्वः में गहन रहस्य छिपे हैं। ॐ को ऋग्वेद, अग्नि, पार्थिव जगत और जाग्रत अवस्था का सूचक माना गया है। भूर्भवः को अंतरिक्षलोक, यजुर्वेद, वायु देवता, प्राणात्मक जगत और स्वप्ना वस्था का सूचक माना गया है। जबकि स्व: को सामवेद, मनोमय जगत् और शयन अवस्था का सूचक माना गया है। ॐ (अ, उ, म) तीनों मात्राओं के स्वरूप से बना है। अ को अग्नि, उ को वायु और म को आदित्य का प्रतीक माना गया है।

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गायत्री महा मंत्र के भाव को अन्य धर्मों ने भी स्वीकारा

समस्त धर्म ग्रंथों में गायत्री मंत्री की महिमा को स्वीकारा है। शास्त्रों में भी गायत्री मंत्र की महिमा का वर्णन है। गायत्री मंत्र त्रिदेव सृष्टिकर्ता बृह्मा, भगवान श्री विष्णु हरि और भगवान महेश का सार है। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है ‘गायत्री छन्दसामहम्’ यानिकि गायत्री मंत्र मैं ही हूं।
हिन्दू – ईश्वर प्राणाधार, दुःखनाशक तथा सुख स्वरूप है। हम प्रेरक देव के उत्तम तेज का ध्यान करें। जो हमारी बुद्धि को सन्मार्ग पर बढ़ाने के लिए पवित्र प्रेरणा दें।
यहूदी – हे जेहोवा (परमेश्वर) अपने धर्म के मार्ग में मेरा पथ-प्रदर्शन कर, मेरे आगे अपने सीधे मार्ग को दिखा।
जैन – अर्हन्तों को नमस्कार, सिद्धों को नमस्कार, आचार्यों को नमस्कार, उपाध्यायों को नमस्कार तथा सब साधुओं को नमस्कार।
बौद्ध धर्म – मैं बुद्ध की शरण में जाता हूँ, मैं धर्म की शरण में जाता हूँ, मैं संघ की शरण में जाता हूँ।
ईसाई – हे पिता, हमें परीक्षा में न डाल, परन्तु बुराई से बचा क्योंकि राज्य, पराक्रम तथा महिमा सदा तेरी ही है।
इस्लाम – हे अल्लाह, हम तेरी ही वंदना करते हैं। तुम्हीं से सहायता चाहते हैं। हमें सीधा मार्ग दिखा।
सिख – ओंकार (ईश्वर) एक है। उसका नाम सत्य है। वह सृष्टिकर्ता, समर्थ पुरुष, निर्भय, र्निवैर, जन्मरहित तथा स्वयंभू है। वह गुरु की कृपा से जाना जाता है।

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गायत्री मंत्र का कब किया जाए उच्चारण
गायत्री उपासना या मंत्रोच्चारण कभी भी किसी भी स्थिति में की जा सकती है। इस मंत्र का उच्चारण हर पल लाभदायक है। सूर्योदय से दो घंटे पहले और सूर्यास्त के एक घंटे बाद तक कभी भी गायत्री की उपासना की जा सकती है। मौन रह कर 24 घंटे गायत्री मंत्र का उच्चारण लाभदायक है।

गायत्री मंत्र का अर्थ
गायत्री मंत्र का अर्थ : सृष्टिकर्ता प्रकाशमान परामात्मा की महिमा का ध्यान करते हैं, जिसने इस संसार को उत्पन्न किया है, जो पूजनीय है, जो ज्ञान का भंडार है, जो पापों तथा अज्ञान की दूर करने वाला हैं। वह हमें प्रकाश दिखाए और हमें सत्य पथ पर ले जाए।

गायत्री मंत्रोच्चारण से मिलते अकल्पनीय लाभ
गायत्री मंत्र के नियमित जाप से त्वचा में चमक आती है। नेत्रों में तेज आता है। सिद्धि प्राप्त होती है। क्रोध शांत होता है। ज्ञान की वृद्धि होती है। विद्यार्थियों के लिए यह मंत्र बहुत लाभदायक है। प्रतिदिन इस मंत्र का 108 बार जप करने से विद्या में सफलता आसानी से हासिल की जा सकती है। स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है। कार्य में असफलता, आमदनी में कमी, व्यय अधिक होने पर गायत्री मंत्र के जप से लाभ पहुंचता है। रविवार को व्रत रखने से अधिक लाभ होता है। संतानोत्पत्ति प्राप्त करने में आ रही कठिनाई को दूर करता है। शत्रुओं के कारण आ रही परेशानियों को दूर करता है। विवाह में देरी होने की समस्या से निजात मिलती है।

गायत्री हवन से होते हैं रोग नाश, वातावरण होता है शुद्ध
दूध, दही, घी एवं शहद को मिलाकर 1000 गायत्री मंत्रोच्चारण से हवन करने से चेचक, आंखों के रोग एवं पेट के रोग समाप्त हो जाते हैं। यज्ञ में समिधा पीपल की प्रयुक्त हो। यज्ञ से निकलने वाले पावन धुंए से वातावरण शुद्ध होता है।

 

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गायत्री मंत्र के हर अक्षर में छिपे हैं रहस्यमय तत्व
मंत्रों के अक्षरों को शक्ति बीज कहा जाता है। इनके विधिवत और सही ढंग से उच्चारण किए जाने से अदृश्य आकाश मण्डल में शक्तिशाली तरंगें पैदा होती है। आमतौर पर सभी मंत्रों में यही बात होती है। परंतु गायत्री मंत्र में विशेष बात है। इसके एक- एक अक्षर में अनेक प्रकार के रहस्यमय तत्त्वों का समावेष है। गायत्री मंत्र के 24 अक्षरों में आयुर्वेद शास्त्र भरा हुआ है । इस मंत्र में दिव्य औषधियों और रसायनों के बनाने की विधियां सांकेतिक रूप से मौजूद हैं। जिनसे असाध्य रोगों को दूर किया जा सकता है। स्वर्ण बनाने की विधा का संकेत, आग्नेयास्त्र, वरुणास्त्र, नारायणास्त्र, पाशुपतास्त्र, ब्रह्मास्त्र बनाने की जानकारी, दिव्य शक्तियों पर अधिकार करने की विधियां मंत्र में विद्यमान है। थोड़ी सी भी जानकारी हासिल करने से इंसान इस भूलोक में ही रहते हुए देवताओं समान दिव्य शक्तियों को हासिल कर सकता है। गायत्री मंत्र में योग और तन्त्र मौजूद है।

ब्रह्म- विज्ञान के हैं 24 महाग्रंथ
ब्रह्म- विज्ञान के 24 महाग्रंथ हैं। इनमें चार वेद, चार उपवेद, चार ब्राह्मण, छह दर्शन और छह वेदांग है। ब्रह्मरंध्र को ईश्वर का स्थान माना गया है ।। हृदय से ब्रह्मरंध्र की दूरी 24 अंगुल है। मनुष्य शरीर के भी प्रधान अंग भी 24 हैं ।। सूक्ष्म शरीर की शक्ति प्रवाह 24 प्रधान नाड़ियां जीभ में सात, पीठ में 12, कमर में पांच शामिल है।

24 अक्षरों वाले गायत्री मंत्र में समाहित हैं 24
24 अक्षरों वाले गायत्री मंत्र में कुल 24 ऋषि समाहित हैं। इनमें वामदेव, अत्रि, वशिष्ठ, शुक्र, कण्व, पराशर, विश्वामित्र, कपिल, शौनक, याज्ञवल्क्य, भारद्वाज, जमादग्नि, गौतम, मुद्गल, वेदव्यास, लोमश, अगस्त्य, कौशिक, वत्स, पुलस्त्य, मांडूक, दुर्वासा, नारद और कश्यप ऋषि प्रमुख हैं।

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