अद्भुत ! इस गांव को कहते हैं मंदिरों का गांव

-इस गांव में बनाए गए 108 गांव
-गुप्त काशी के नाम से पहचाना जाता है यह गांव
भारत के हर राज्य के इतिहास में कई रहस्य छिपे हुए हैं। इनमें से कई रहस्य तो वक्त के चलते किताबों के पन्नों में सिमट कर रहे गए हैं। भारत के हर राज्य में प्राण-प्रतिष्ठित सैंकडों प्राचीन मंदिर आज भी अपनी कहानी ब्यां करते हैं। आज हम आपको एक एेसे राज्य के एक एेसे गांव के बारे बताएंगे, जिस गांव को मंदिरों के गांव के नाम से पुकारा जाता है। इतना ही नहीं यह गांव गुप्त काशी के नाम से भी विख्यात है।

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कहां पर स्थित है मंदिरों का गांव
झारखंड के दुमका जिले में शिकारीपाड़ा के पास बसा एक छोटा सा गांव मलूटी है। जिसे मलूटी के नाम से लोग कम जानते हैं। इस गांव को मंदिरों के गांव और गुप्त काशी के नाम से अधिक पहचाना जाता है। इस गांव में पहुंचने पर जहां भी नजर दौड़ाएंगे। वहां पर केवल मंदिर ही मंदिर नजर आएंगे।

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बाज बसंत राजवंशों ने बनवाएं मंदिर
गांव मलूटी में इन मंदिरों का निर्माण 1720 से लेकर 1840 के मध्य हुआ था। उस काल में इस गांव का राजा एक किसान हुआ करता था। गांव में मंदिरों का निर्माण उसके वंशजों ने किया। इस गांव में विभिन्न देवी देवताओं के कुल 108 भव्य मंदिरों का निर्माण करवाया गया। यह मंदिर बाज बसंत राजवंशों के काल में बनाए गए थे। मंदिरों के सही ढंग से संरक्षण न होने के कारण आज 108 मंदिरों में से अब केवल 72 मंदिर ही शेष रह गए हैं। इन मंदिरों के निर्माण में सुप्रसिद्व चाला रीति की झलक साफ तौर से दिखाई देती है। इन मंदिरों में निर्माण में छोटी लाल सुर्ख ईटों का प्रयोग किया गया था। सबसे खास बात यह है कि इन मंदिरों की उंचाई 15 से 60 फीट तक की है। इन मंदिरों की दीवारों पर रामायण-महाभारत काल की घटनाओं का खूबसूरती से रंग-बिरंगे रंगों में चित्रण किया गया है।

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काली पूजा पर जानवरों की बली देने की प्रथा
मंदिरों वाले गांव मलूटी को पशुओं की बली के लिए भी जाना जाता है। यहां माता काली पूजा के दिन एक भैंसे और एक भेड़ सहित करीब 100 बकरियों की बली दिए जाने की प्रथा प्रचलित है। परंतु मौजूदा समय में इस बली प्रथा का विरोध शुरु हो चुका है।

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कैसे मलूटी गांव बना मंदिरों का गांव
मलूटी गांव में इतने सारे मंदिरों का बनाए जाने के पीछे एक रोचक कहानी है। यहां के राजा महल बनाने की बजाए मंदिर बनाना पसंद करते थे। गांव में राजाओं की ओर से अच्‍छे से अच्‍छा मंदिर बनाने की हौड़ सी लगी रहती थी। इसी कारण गांव में हर जगह खूबसूरत मंदिर बनाए गएष गांव में बने मंदिरों में देवों के देव भगवान भोले शंकर के अलावा माता दुर्गा, मां काली, धर्मराज, मनसा देवी, भगवान श्री हरि विष्णु सहित अन्य देवी-देवताओं के भी मंदिर प्राण-प्रतिष्ठित हैं। गांव में जागृति शाक्त देवी मौलिक्षा माता का मंदिर विशेष हैं।

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कौन थे राजा बाज बसंत?
यह गांव सबसे पहले ननकार राजवंश के समय में प्रकाश में आया था। उसके बाद गौर के सुल्तान अलाउद्दीन हसन शाह (1495–1525) ने इस गांव को बाज बसंत रॉय को इनाम में दे दिया था। राजा बाज बसंत शुरुआत में एक अनाथ किसान थे। उनके नाम के आगे बाज शब्‍द कैसे लगा इसके पीछे एक रोचक कहानी है। एक बार की बात है ज‍ब सुल्तान अलाउद्दीन की बेगम का पालतू पक्षी बाज उड़ गया। बाज को उड़ता देख गरीब किसान बसंत ने उसे पकड़कर रानी को वापिस लौटा दिया। बसंत के इस काम से खुश होकर सुल्तान ने उन्‍हें मलूटी गांव इनाम में दे दिया। इस तरह से बसंत राजा बाज बसंत के नाम से पहचाने जाने लगे।

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बिहार पुरातत्व विभाग ने किया संरक्षण का काम शुरु
मंदिरों वाले गांव के संरक्षण का काम बिहार के पुरातत्व विभाग ने करीब 35 साल पहले शुरु किया था। जो आज भी जारी है। मौजूदा समय में यह मंदिरों वाला गांव पर्यटन स्थल के रूप में विकसित भी हुआ है। परंतु मूलभूत सुविधाओं के अभाव के कारण इस गांव को देखने आने वाले पर्यटक रात के समय रुकने से घबराते हैं।

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प्रदीप शाही

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