सन्त के श्राप से इस किले को बचाने,चीलों को हर रोज खिलाया जा रहा मांस -560 सालों से लगातार चल रहा है सिलसिला

श्यामवीर राठौड़, जोधपुर : रजवाड़ों की शानों शौकत और गौरवशाली इतिहास की बात हो और जोधपुर का नाम ना आए ऐसा तो हो नही सकता | जोधपुर के किले का नाम मेहरानगढ़ क्यों पड़ा ? क्या रहस्य है इस किले के ऊपर उड़ाती चीलो का ? क्यों यहाँ कुछ सालो बाद पानी की कमी होती है ? क्यों यहाँ अधिकतर घर सफ़ेद और नीले रंग के होते है? राजस्थान के जोधपुर में मेहरानगढ़ का किला भारत के सबसे बड़े किलो में से एक बताया जाता है। इस किले की सबसे खास बात यह है की यहाँ आज भी पुरानी परम्पराओं को माना और निभाया जाता है | यह किला चिड़ियाटूक पहाड़ी पर बना है | इस की आकृति मोर पंख की तरह होने के कारण इसे मयूरध्वज दुर्ग भी कहा जाता है |

इस किले का निर्माण राव जोधा ने सं 1515 में करवाया था। ये किला शहर से लगभग 410 feet (125 m) की ऊँचाई पर बना है, जो की कुतबमीनार से भी ऊँचा है कुतबमीनार की ऊंचाई 73 m है | 100 km दूर से भी इस किले को देखा जा सकता है | इसे चारो तरफ से 12 से 17 फुट चोड़ी और मोटी तथा 20 से 150 फुट ऊँची दीवारों ने घेरा है। आसमान साफ़ होने पर यह किला जालोर के किले से भी देखा जा सकता है |किले के अंदर कई महल बने है जिन पर बारीक नक्काशी की हुई है। किले के जयपोल से एक घुमावदार सड़क शहर के नागोरी दरवाज़े तक जाती है तथा एक रास्ता इमरती पोल से फ़तेह पोल तक जाता है जो ब्रह्मपुरी से होकर गुजरता है | ब्रह्मपुरी इस शहर की सबसे प्राचीन बसावट है,यहां जैता कुआँ के नाम से प्राचीन कुआँ है जिसके पानी के प्रयोग से कई बीमारियां ठीक हो जाती है |


इस किले में इंडो इस्लामिक शैली का खूबसूरत प्रयोग किया गया है जो इसे उत्तर भारत के सबसे खूबसूरत किलो में शुमार करता है | पहले इस किले पर एक मस्जिद भी बनी हुई थी जो बाद में शेर शाह सूरी के समय राजा मानसिंह ने तुडवा दी थी | किले में सात पोल है जो कि संकरे और घुमावदार है जिनको एक खास मकसद से बनाया गया है | जिससे दुश्मनों का किले में प्रवेश आसानी से ना हो और उन पर छत से गरम तेल, तीर , बम आसानी से गिराए जा सकें | किले के प्रथम पोल द्वार पर नुकीली कीलें लगी हैं जो की हाथियों के हमले से बचाव के लिए लगाई गयी थी | किले के कई महलो में प्लास्टर में कौड़ियों का पाउडर मिलाया गया है जिस से सदियां बीत जाने के बाद भी चमक वैसी की वैसी ही है |
किले के दूसरे पोल द्वार पर जयपुर की सेनाओ द्वारा किये गए हमले में फैके गए तोप के गोलों के निशान आज भी देखे जा सकते है।

किले का इतिहास

राठौड़ कन्नोज से राजस्थान आए थे | तब राव जोधा के पिताजी मेवाड़ में राणाओं के लिए काम करते थे| राणाओं के बहुत नज़दीक होने के कारण उनके सामंत ने राव जोधा के पिताजी को चारपाई से बांध कर मार दिया था | जोधा किसी तरह से अपनी जान बचा कर मारवाड़ आ गए थे और उस के बाद उन्होंने ऐलान किया कि जब उनके पिताजी को चारपाई से बांध के मारा गया था तो पिताजी खड़े होकर भाग भी नहीं पाए| अब सभी उस चारपाई पर सोएंगे जो उनकी लम्बाई से छोटी हो ताकि उसके पैर बाहर लटकते हों | इस चारपाई को मछली कहा जाने लगा | सुरक्षा के साथ साथ मछली पर सोना एक परम्परा भी बन गई |

राव जोधा के समय में जोधपुर में चिड़याटुक पहाड़ी पर एक बहुत बड़े संत चिड़ियानाथ जी रहते थे | वहां कुछ लोग जब नीवं खोदने गए तो चिड़ियानाथ जी ने बोला कि यह मेरा तपस्या का स्थान है यहाँ आप कुछ ना करे | इस पर वो लोग बोले कि हमें तो आदेश मिला है कि यहाँ मनेहरानगढ किले की स्थापना होगी इसलिए यहाँ नीवं खोदना जरूरी है तो आप यहाँ से हट जाएं | इस पर संत बोले मैं यहाँ काफी सालो से तपस्या कर रहा हूँ, यहाँ मेरी धूनी है| मेरे भगवन का घर है | आप मुझे इस पहाड़ी से ऐसे नहीं हटा सकते | संत का संदेशा जब राव जोधा के पास गया तो जोधा बोले वो जो भी हो उनको वहां से हटा दो | सैनिकों ने संत कि धूनी को नष्ट कर दिया और संत को उनकी जगह से उठाकर बाहर निकाल दिया | संत नाराज़ हो गए और वहां से चले गए | तबसे वहां पानी की कमी भी होने लगी | कहा जाता है कि वहां पर नीवं की खुदाई हुई और उस पर जब भी दीवार बनाई गई तो वह दीवार गिर जाती | इस घटना के बार बार दोहराए जाने पर राव जोधा को अपनी गलती का एहसास हुआ उन्होंने संत चिड़ियानाथ जी जोकि जोधपुर से पूर्व की तरफ एक छोटा से गांव में अपनी धूनी लगाकर बैठे थे |उनके पास गए और माफी मांगी | 

संत बोले कि किला तो तेरा बन जाएगा पर नीवं में किसी आदमी को बिठाना पडेगा और वो आदमी अपने मन से बैठना चाहिए जबरदस्ती नहीं | साथ ही राजपरिवार की मुखिया महिला होगी वह चिड़ियानाथ मठ के लिए रोज़ बड़ी सी रोटी घी गुड़ डालकर कर तैयार करेगी जिसका मठ में हुनमानजी को भोग लगाया जाएगा और इस पहाड़ी पर उड़ती चीलों को रोज़ मांस खिलाया जाएगा | 

राव जोधा ने संत चिड़ियानाथ की बात को मानते हुए राजा राम मेघवाल को नीवं में बैठने कि अनुमति दी | फिर वहां दीवार तैयार की गई और साथ ही वहां राजा राम मेघवाल की समाधी भी बनाई गई , जो वहां आज भी मौजूद है| राजपरिवार की ओर आज भी मठ में हनुमानजी के लिए बड़ी सी रोटी घी गुड़ डालकर घर की बहु भेजती है | चिड़ियानाथ जी की धूनी आज भी वहां पर मोजूद है |

करणी माता के आशीर्वाद से सब संभव हुआ इसलिए राव जोधा ने अपने ध्वज में चील को सिंबल के रूप में लगाया | साथ ही चीलों को रोज़ एक से पांच किलो छोटे मांस के टुकड़े खिलाए जाते है आज भी किले पर एक आदमी रोज़ निश्चित समय पर मांस के टुकड़े चीलों को खिलते हुए देखा जा सकता है | उसके वहां जाते ही चीलें वहां मंडराने लग जाती है | रजवाड़ों की सदियों पुरानी यह परम्पराएं आज भी निभाई जा रही है |

पहले यह शहर और किला छोटा हुआ करता था | फिर 200 ब्राह्मणों को यहाँ बसने के लिए पुष्कर से बुलाया गया और बसाया गया | इनके घरो को नीले रंग से रंग करवाया ताकि किसी भी अवसर पर ये महल आने से छूट ना जाएं | इनके घरों को किले से देख कर गिनती की जा सके | इसलिए जोधपुर में किले के पास ज्यादातर घर पुष्करणा ब्राह्मण के है | ये भगवान् विष्णु के उपासक होते है | ये ब्राह्मण किसी के जनम , मृत्यु , शादी , मुंडन आदि संस्कारों को करवाते और उनमें भाग भी लेते है | 

धीरे धीरे राव जोधा को समझ आ गया कि अगर राजा इस तरह से लड़ते रहे तो एक दिन राजवंश ख़तम हो जाएगा हालाँकि युद्ध तो किया परन्तु आज तक राजा कोई भी नहीं मारा गया | 33 पीढ़ी बीत जाने के बाद भी यह इस परिवार का भाग्य कहें या भागवान का आशीर्वाद किला 40 – 50 साल बंद रहने बाद भी यह किला राजा कि प्राइवेट प्रॉपर्टी है | यहाँ का संग्रहालय भी अर्कोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया के अंडर नहीं आता है | ३३ वी पीढ़ी के राजा गजसिंह जो कि जोधपुर के उमेद पैलेस में रहते है वो और उन की पत्नी इस किले का संचालन बखूबी कर रहे है |

यह किला पहले मिहिरगढ़ के नाम से जाना जाता था मिहिर का अर्थ सूर्य होता है | सूर्य की सीधी किरणे यहाँ पड़ने से गर्मी बहुत ज्यादा होती है | इससे बचने के लिए घरो पर सफ़ेद या नीला रंग ही किया जाता है |  

खास देखने के स्थान

मेहरानगढ़ किले में बना संग्रहालय, राजस्थान के सबसे अच्छे माने जाने वाले संग्रहालयों में से एक है। किले के संग्रहालय के एक हिस्से में पुरानी शाही पालकियो का कलेक्शन है , जिनमे विस्तृत गुंबददार गिल्ट महडोल पालकी भीं है जिसे सं 1730 में गुजरात के राजयपाल से युद्ध में जीता था। इस संग्रहालय के हथियार, वेशभूषा और पेंटिंग्स राठोरो की विरासत को बखूबी दर्शाती है।
फूल महल , शीश महल , झांकी महल, मोती महल, दौलत खाना, जनानी डोडी , जसवंत थड़ा , चामुंडा माता मंदिर भी देखने योग्य है |
 
त्योहारों पर विशेष पूजा

त्योहारों पर आज भी राजा स्वयं पूरे राज परिवार के साथ पूजा करते है , शस्त्र पूजन आज भी पहले कि तरह ही किया जाता है | सभी परम्पराओं को आज भी जस का तस निभाया जाता है जोकि इस किले को ऐतिहासिक होने के साथ साथ गौरवशाली होने का भी पद प्रदान करता है | 

देशी विदेशी पर्यटक इस किले के गौरवशाली इतिहास से प्रभावित हो कर इस ऐतिहासिक ईमारत को देखने आते है और आजकल यहाँ फ्लाइंग फॉक्स भी शुरू हो गया है जिससे पर्यटक एक छोर से दूसरे छोर तक जाते हुए ऊंचाई से शहर का नज़ारा भी देख सकते है | 

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