लंका विजय में, लक्ष्मण की चौदह साल की तपस्या, त्याग अहम

-इंद्रजीत को पराजित करने केवल लक्ष्मण ही थे सक्षम

प्रदीप शाही

लंका विजय के बाद भगवान श्री राम, माता सीता व भ्राता लक्ष्मण संग जब अयोध्या वापिस लौटे तो चारों तरफ उत्सव का माहौल था। लंका विजय में भगवान श्री राम के परम भक्त हनुमान जी और भ्राता लक्ष्मण की भक्ति अद्भुत थी। लक्ष्मण की चौदह साल तक की गई तपस्या, त्याग अतुलनीय हैं। यह भी सत्य है कि लक्ष्मण की तपस्या से उत्पन्न तप की वजह से इंद्रजीत का वध संभव हो पाया था। आखिर लक्ष्मण ने ऐसी कौन सी और कैसे तपस्या की।

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अगस्त्य मुनि समक्ष श्री राम ने किया लक्ष्मण के त्याग, तपस्या का बखान

लंका विजय के बाद अयोध्या के राजा बनने के कुछ समय बाद श्री राम के दरबार में अगस्त्य मुनि आशीर्वाद देने पहुंचे। अगस्त्य मुनि से विचार चर्चा करते हुए लंका युद्ध की बातें होने लगी। श्री राम ने अगस्त्य मुनि को बताया कि उन्होंने किस तरह से लंकापति रावण, कुंभकर्ण सहित बलशाली वीरों का वध किया। इतना ही नहीं अपने छोटे भ्राता लक्ष्मण की वीरता का बखान करते कहा कि किस तरह उसने बलशाली इंद्रजीत और अतिकाय जैसे वीर असुरों का वध किया। तब अगस्त्य मुनि ने कहा कि हे राजन, चाहे आपने रावण, कुंभकर्ण का वध किया। परंतु लंका फतेह दौरान लक्ष्मण ने इंद्रजीत का वध किया। यह जीत ही सबसे बड़ी जीत थी। ऐसे में लक्ष्मण इस विजय में सबसे बड़े योद्धा रहे। अगस्त्य मुनि का कथन सुन कर श्री राम ने कहा कि हे मुनि, क्या इंद्रजीत का वध, लंकापति रावण के वध से भी मुश्किल था। इस बारे मुझे विस्तार से बताएं।

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इंद्रजीत को मिले वरदान का तोड़ केवल लक्ष्मण के था पास

अगस्त्य मुनि ने बताया कि हे राजन, इंद्रजीत को भगवान से एक वरदान मिला हुआ था। इस कारण उसका वध केवल और केवल तुम्हारे भ्राता लक्ष्मण ही करने में सक्षम थे। वरदान अनुसार इंद्रजीत का वध केवल वह ही कर सकता है, जिसने चौदह साल तक किसी स्त्री का मुख न देखा हो, चौदह साल तक भोजन न किया हो और चौदह साल तक सोया न हो। इंद्रजीत को मिले उक्त वरदान का तोड़ केवल भ्राता लक्ष्मण ही थे। मुनि के इन विचारों को सुन पहले तो श्री राम प्रसन्न हुए। फिर बोले मुनिवर, लक्ष्मण ने इसे कैसे पूर्ण किया। मैं तो बनवास दौरान हमेशा लक्ष्मण को खाने के लिए फल फूल देता था। मैं और सीता एक कुटिया में और दूसरी कुटिया में लक्ष्मण रहता था। फिर कैसे संभव उसने सीता का चेहरा नहीं देखा। इतना ही नहीं वह चौदह साल तक सोया भी नहीं। यह सब संभव कैसे हो सकता है।

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इन सवालों के जवाब तो लक्ष्मण ही देंगे : अगस्त्य मुनि

अगस्स्य मुनि के इन विचारों को सुन कर श्री राम ने लक्ष्मण को बुला कर सारी बातें विस्तार से बताने के लिए कहा। श्री राम ने कहा कि हम तीनों चौदह साल तक संग रहे, फिर भी सीता का चेहरा नहीं देखा। फल खाने के लिए देता था। फिर सेवन क्यों नहीं किया। चौदह साल तक किस तरह जागते रहे। भ्राता लक्ष्मण ने बताया कि मैंने कभी भी माता सीता के चरणों के अलावा उपर नहीं देखा। जब सुग्रीव हमारे पास माता सीता के आभूषण लेकर आए थे। तो आपने मुझे पहचानने के लिए कहा। तो मैं केवल पैरों के आभूषण ही पहचान पाया था।

आप और माता सीता एक कुटिया में विश्राम करते थे। मैं रातभर बाहर धनुष, बाण लिए पहरा देता था। जब भी नींद ने मुझे घेरने की कोशिश की। तो मैंने नींद को अपने बाणों से बेध दिया। आखिर नींद ने भी हार को स्वीकार करते हुए चौदह साल तक न छूने का वचन दिया। आपको तो यह स्मरण होगा। जब आपका राज्याभिषेक हो रहा था। तो मैं आपके सिंहासन के पीछे छत्र लिए खड़ा था। तब नींद ने मुझे घेर लिया था। उस समय वह छत्र मेरे हाथों से गिर गया था।

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बनवास के दौरान जब मैं जंगल से आपके, माता सीता के लिए फल तोड़ कर लाता था। तो आप उसके तीन हिस्से कर देते थे। आपने तीसरे हिस्से को हमेशा पकड़ा कर कहा कि लक्ष्मण इसे रख लो। आपने कभी मुझे खाने के लिए नहीं कहा। जब आपने सभी फल केवल मुझे रखने के लिए दिए। आपकी आज्ञा की अवहेलना कर मैं फलों का कैसे सेवन कर सकता था। वह सभी फल मैंने कुटिया में संभाल कर रख लिए थे। श्री राम के आदेश पर सभी फलों को कुटिया से मंगवाया गया। फलों को गिना गया। जिसमें सात दिन के फल कम निकले। आपको यह भी बता दूं कि मैने मुनि विश्वामित्र से बिना आहार लिए जीने की विद्या का ज्ञान हासिल किया हुआ था। इसी लिए मैं चौदह साल तक अपनी भूख को नियंत्रित करने में सक्षम हुआ।

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श्री राम ने कहा कि सात दिन के फल कम क्यों हैं भ्राता। तब लक्ष्मण ने बताया कि इन सात दिनों में फल नहीं आए थे। जिस दिन हमें पिता श्री के देहांत की सूचना मिली। उस दिन हममें से किसी ने भी कुछ नहीं खाया था। जिस दिन लंकापति रावण ने माता सीता का हरण किया। जिस दिन आप समुद्र देव से समुद्र में राह मांगने की प्रार्थना कर रहे थे। आप इंद्रजीत के नागपाश में बंध कर अचेत रहे। जिस दिन इंद्रजीत ने अपनी माया से रचित सीता को काटा था। जिस दिन रावण ने मुझे अपनी शक्ति से अचेत किया। और जिस दिन आपने रावण का वध किया। इन सभी दिनों हमने भोजन का सेवन नहीं किया था। यह सब आपकी भक्ति थी। जिसके कारण मैं इंद्रजीत का वध कर सका।

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