भगवान श्री कृष्ण और धनुर्धारी अर्जुन के मध्य भी हुआ था भीष्ण युद्ध

-भगवान शिव ने कैसे रोका युद्ध

प्रदीप शाही

द्वापर युग में भगवान श्री विष्णु हरि ने अधर्म पर धर्म की जीत के लिए श्री कृष्ण के रुप में मानवातार लिया। सर्वविदित है कि कौरवों और पांडवों के मध्य 18 दिनों तक चलने वाले महाभारत युद्ध में भगवान श्री कृष्ण ने अपने प्रिय सखा अर्जुन का सारथी बनने का फैसला किया था। इतना ही हर बुरे समय में भगवान श्री कृष्ण ने पांडवों का खास कर अर्जुन का साथ दिया। परंतु एक समय ऐसा भी आया था, जब भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन के मध्य भयावह युद्ध हुआ। आखिर ऐसा क्या कारण था कि इन दोनों में युद्ध हुआ। युद्ध को समाप्त करने के लिए भगवान शिव को बीच में आना पड़ा। आईए, आज आपको इस रहस्य से अवगत करवाते हैं।

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श्री कृष्ण ने किसे मारने की ली प्रतिज्ञा

कहते हैं कि एक बार ऋषि गालव ध्यान में बैठे हुए थे। तभी आकाश में जा रहे चित्रसेन की थूक ऋषि गालब पर गिर गई| ध्यान मंग्न बैठे ऋषि गालब, थूक गिरने पर क्रोधित हो गए। परंतु तप भंग होने की आशंका से उन्होंने श्राप नहीं दिया। इस समस्या के समाधान के लिए ऋषि गालब भगवान श्री कृष्ण के पास पहुंचे। उन्हें सारी घटना की जानकारी प्रदान की। श्री कृष्ण ने थूक गिराने वाले चित्रसेन को 24 घंटे में मारने की प्रतिज्ञा ले ली। ऋषि गालब, श्री कृष्ण के फैसले को सुन कर वापिस तप करने चले गए।

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महर्षि नारद को जब इस सारी घटना की जानकारी मिली। तो वह सीधा चित्रसेन के पास पहुंच गए। महर्षि नारद ने चित्रसेन को बताया कि तुम्हरी मत्यु बेहद पास हैं। चित्रसेन ने जब सारी बात विस्तार से बताने के लिए महर्षि नारद से प्रार्थना की। तो महर्षि नारद ने उन्हें सारी घटना से अवगत करवा दिया। चित्रसेन अपनी मृत्यु को समीप देखकर महर्षि नारद से उनकी मदद करने की प्रार्थना करने लगे। तब महर्षि नारद ने कहा कि चित्रसेन तुम आज रात को ही यमुना तट पर पहुंच कर विलाप करने लग जाना। आधी रात को जो भी स्त्री वहां आए। तुम उस महिला से मदद करने का आश्वासन लेने पर ही सारी जानकारी देना। चित्रसेन ने महर्षि नारद को अपनी सहमति प्रदान कर दी।

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अर्जुन की पत्नी सुभद्रा ने किस को दिया मदद का आश्वासन

महर्षि नारद, चित्रसेन से मिलने के बाद सीधे इंद्रप्रस्थ पहुंच गए| वहां पर उन्होंने अर्जुन की पत्नी सुभद्रा से कहा कि यदि आज आधी रात को यमुना में स्नान किया जाए। तो पुण्य मिलेगा। सुभद्रा अपनी सखियों के साथ आधी रात को यमुना किनारे पहुंच गई। जहां सुभद्रा को किसी के रोने की आवाजें आने लगी। वह चित्रसेन के पास पहुंच कर कारण बताने के लिए कहने लगी। सुभद्रा ने अपना परिचय बताते हुए उसकी मदद करने का आश्वासन दिया। चित्रसेन, अर्जुन का मित्र था। जब चित्रसेन ने सारी घटना की जानकारी सुभद्रा को प्रदान की। तो सुभद्रा घबरा गई। क्योंकि एक तरफ भगवान श्री कृष्ण थे और दूसरी तरफ उसकी प्रतिज्ञा। आखिर सुभद्रा, चित्रसेन को अपने साथ इंद्रप्रस्थ लेकर पहुंच गई। इंद्रप्रस्थ पहुंच कर अपने पति अर्जुन को सारी जानकारी दी। काफी देर सोचने के बाद अर्जुन ने अपनी पत्नी सुभद्रा से कहा कि वह उसकी प्रतिज्ञा को अवश्य पूरा करेंगे।

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भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन के मध्य हुए युद्ध को किसने रोका

अर्जुन की ओर से अपनी पत्नी की प्रतिज्ञा को पूरा करने कै फैसले पर नारद मुनि ने अर्जुन से जब उनके इस फैसले बाबत पूछा तो अर्जुन ने कहा कि मैंने जो भी ज्ञान हासिल किया है। वह श्री कृष्ण ने प्रदान किया है। उन्होंने ही सिखाया है कि धर्म के हित में ली प्रतिज्ञा पूरी करना सही होता है| बाकि इसका अंतिम फैसला तो श्री कृष्ण के ही हाथ है। नारद मुनि ने अर्जुन की समूची बात की सारी जानकारी श्री कृष्ण की बता दी। श्री कृष्ण और अर्जुन के मध्य युद्ध शुरु हो गया। भगवान श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र छोड़ा तो अर्जुन ने पाशुपतास्त्र छोड़ दिया| तब भगवान शिव शंकर ने इन दोनों शस्त्रों के परिणाम को देखते हुए, दोनों शस्त्रों को मनाया| भगवान शिव, श्रीकृष्ण के पास गए और कहा भगवान तो अपने भक्तों की बात को आगे रख कर अपनी प्रतिज्ञा को भी भूल जाते हैं। आप ऐसा क्यों कर रहे हैं। तब श्रीकृष्ण ने युद्ध विराम लगाते हुए अपनी प्रतिज्ञा त्याग दी।

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सुभद्रा ने कैसे ऋषि को श्राप से रोका

इस घटना के बाद ऋषि गालव क्रोधित हो गए। उन्होंने कहा कि वह अभी इसी समय श्री कृष्ण, अर्जुन, सुभद्रा और चित्रसेन को अपने श्राप से भस्म कर देंगे। ऋषि ने श्राप देने के लिए अपने हाथ में जल ले लिया। तब अर्जुन की पत्नी सुभद्रा बोली मैं यदि श्री कृष्ण की भक्त हूं। और अर्जुन के प्रति मेरा पतिव्रता धर्म पूर्ण है। तो यह जल ऋषि के हाथ से इस धरती पृथ्वी पर नहीं गिरेग। इस कथन को सुन कर ऋषि गालब ने अपना क्रोध त्याग दिया। और सभी से अपनी इस सोच के लिए क्षमा भी मांगी।

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