पृथ्वी पर यहां वास करती हैं माता सरस्वती

-यहां पर स्थित हैं माता सरस्वती का प्राचीन मंदिर

प्रदीप शाही

हिंदू धर्म में माता सरस्वती का विशेष स्थान है। सृष्टिकर्ता भगवान श्री ब्रह्मा जी की धर्मपत्नी माता सरस्वती को विद्या की देवी और संगीत की देवी के रुप में पूजा जाता है। माता सरस्वती का भारत में यह प्राचीन देवस्थल माना जाता हैं। माता सरस्वती को कई नाम से संबोधित कर पूजा जाता है। माता सरस्वती के कहां-कहां पर हैं पावन स्थल। माता सरस्वती का उल्लेख कहां-कहां मिलता है। आईए, आज आपको विस्तार सहित इसकी जानकारी प्रदान करें।

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माता सरस्वती के कितने नाम

विद्या औऱ संगीत की देवी माता सरस्वती को शतरुपा भी कहा जाता है। इसके अलावा माता सरस्वती को वाणी, वाग्देवी, भारती, शारदा, वागेश्वरी, शुक्लवर्ण, श्वेत वस्त्रधारिणी, वीणावादनतत्परा तथा श्वेतपद्मासना के नाम से भी पुकारा जाता है। यह भी माना जाता है कि माता सरस्वती की अराधान करने से मूर्ख इंसान भी विद्वान बन जाता है।

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मां सरस्वती का कहां-कहां मिलता है उल्लेख

माता सरस्वती का उल्लेख वर्णन वेदों उपनिषदों, रामायण, महाभारत, देवी भागवत पुराण, कालिका पुराण, वृहत्त नंदीकेश्वर पुराण तथा शिव पुराण में मिलता है। देवी भागवत अनुसार देवी सरस्वती का जन्म वैकुण्ठ के गोलोक में निवास करने वाले भगवान श्री कृष्ण  की जिह्वा से माना गया है।

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देवी सरस्वती के भारत में कहां पर हैं प्राचीन मंदिर

देवी माता सरस्वती जी का भारत में सबसे प्राचीन देवस्थल दंडकारण्य में हैं। आंध्र प्रदेश स्थित दंडकारण्य की स्थापना ऋषि वेद व्यास जी द्वारा की गई थी। दंडकारण्य के आदिलाबाद जिले के मुधोल क्षेत्र में स्थित बासर गांव में माता सरस्वती का सबसे प्राचीन मंदिर स्थापित हैं। यह मंदिर गोदावरी नदी के तट पर स्थापित है। बासर गांव स्थित माता सरस्वती के स प्राचीन मंदिर के बारे कहा जाता है कि जब महर्षि वेद व्यास शांति के लिए तीर्थ यात्रा पर निकले तो वह अपने मुनि वृन्दों सहित तीर्थ यात्रा पूरी कर दंडकारण्य पहुंचे। गोदावरी नदी के तट के आसपास के मनोरम सौंदर्य को देख कर वह यहीं पर लंबे समय तक रुके रहे। माना जाता है कि देवी सरस्वती के मंदिर से थोडी दूर स्थित दत्त मंदिर में एक सुरंग थी। श्री वेद व्यास इसी सुरंग से देवी सरस्वती के मंदिर में पूजा अर्चना करने जाते थे। इतना ही नहीं महर्षि वाल्मीकि ने श्री रामायण लेखन शुरु करने से पहले इसी स्थान पर देवी मां सरस्वती जी से उनका आशीर्वाद हासिल किया था। सबसे खास बात यह है कि इस मंदिर पावन मंदिर के पास ही महर्षि वाल्मीकि जी की संगमरमर की समाधि भी बनी है।

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मंदिर में मिलता है हल्दी के लेप का प्रसाद

मंदिर में केंद्रीय प्रतिमा सरस्वती जी की है, साथ ही लक्ष्मी जी भी विराजित हैं। मंदिर में माता सरस्वती जी की पद्मासन मुद्रा में 4 फीट ऊंची प्रतिमा प्राण-प्रतिष्ठित है। मंदिर में एक स्तंभ भी है। जिसमें संगीत निकलता है। इसमें से संगीत के सातों स्वर सुने जा सकते हैं। मंदिर में विशिष्ट धार्मिक रीति अक्षर आराधना का आय़ोजन किया जाता है। इसमें बच्चों को विद्या अध्ययन शुरु करवाने से पहले लाया जाता है। मंदिर में प्रसाद में हल्दी का लेप खाने को दिया जाता है।

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चट्टान में रखे हैं माता सीता के आभूषण

मंदिर के पास ही महाकाली का मंदिर है। मंदिर के एक सौ मीटर दूर एक गुफा है। यहीं एक अनगढ़ सी चट्टान भी है। जिसमें माता सीता जी के आभूषण रखे हुए हैं। बासर गांव को बाल्मीकि तीर्थ, विष्णु तीर्थ, गणेश तीर्थ, पुथा तीर्थ भी कहा जाता है।

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