ऐसा किला… जिसे जीतने में असफल हुए थे कई बड़े शासक….‘अलाउद्दीन खिलजी‘ ने भी टेके थे घुटने 

भारत एक ऐसा देश है जिसकी अमीर संस्कृति व विरासत को देखने के लिए बड़ी संख्या में विदेशी पर्यटक आते हैं। भारतीय संस्कृति के जीते-जागते प्रमाण पुराने किले व मंदिर आज भी इतिहास की कई परतों को समेटे हुए हैं। इनमें से कुछ तो काफी हद तक अपने असल रूप व आकार में हैं और कुछ सरकारों की बेरुखी का शिकार होकर खंडहर का रूप धारण कर चुके हैं। एक ऐसा ही प्राचीन किला है ‘दौलताबाद का किला’

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दौलताबाद का किला’

दौलताबाद महाराष्ट्र के औरंगाबाद ज़िले में स्थित है। प्राचीन समय में दौलताबाद को देवगिरि नाम से जाना जाता था जो उस समय मुहम्म्द बिन तुगलक की राजधानी थी। कहते हैं कि यह किला भारत का सबसे शक्तिशाली किला रहा है जिसके तक पहुंचना हर किसी हमलावर के बस की बात नहीं थी।

ऐसे बदला गया किले का नाम

दौलताबाद के किले के निर्माण को लेकर कोई सटीक जानकारी नहीं है लेकिन फिर भी इस किले का निर्माण कार्य 1187 से लेकर 1318 तक चला माना जाता था। 1762 तक इस किले पर कई शासकों ने अपना अधिकार जमाया। आरंभ में इस किले पर यादव वंश के राजा माने जाते ‘भिलमा वी’ का राज रहा। इसके बाद कुछ समय तक यादव वंश के राजा रामचंद्र ने इस किले पर शासन किया। 1296 में इस किले को दिल्ली के सुल्तान ‘अलाउद्दीन खिलजी‘ ने भी अपने अधीन करना चाहा लेकिन वह कामयाब नहीं हुआ। 1328 में इस पर तुगलक वंश ने अपना अधिकार जमाया और ‘मोहम्मद बिन तुगलक‘ ने इसे अपनी राजधानी बनाते हुए इसका नाम ‘देवगिरि’ से बदलकर ‘दौलताबाद’ कर दिया।

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माना जाता है भारत का सबसे शक्तिशाली किला

दौलताबाद के किले को भारत का सबसे शक्तिशाली किला माना जाता है। यह किला काफी ऊंचाई पर एक पहाड़ी के ऊपर स्थित है। इस किले के चारों ओर गहरी खाईयां हैं शायद इसी लिए हर किसी हमलावर के लिए इस पर हमला करना नामुमकिन था। इसके अलावा भी इस किले का निर्माण ही इस तरीके से किया गया है कि आसानी से इस पर हमला नहीं किया जा सकता था। किले में सात विशाल द्वार या दरवाज़े बने हुए हैं। किले के आखिरी दरवाजे पर 16 फीट लंबी एक तोप आज भी मौजूद है। तुगलक वंश ने अपने शासन काल के दौरान इस किले को और ज्यादा मजबूत व सुरक्षित करने के लिए 5 किलोमीटर लम्बी एक दीवार भी बनवाई थी। 

वास्तुकला का बेजोड़ नमूना

दौलताबाद का किला तुर्की शैली में बनाया गया है। मुख्य रूप से किले में बनी 30 मीटर ऊंची चांद मीनार आकर्षण का केंद्र है। चांद मीनार का निर्माण अलाउद्दीन बहमनी शाह ने करवाया था। मीनार के आसपास की जगह को चार हिस्सों में बांटा गया है। इसमें 24 के करीब चैंबर्स बने हैं और एक छोटी मस्जिद भी बनी है। मीनार के अंदर बनी सीढ़ियां ऊपर तक जाती हैं। नीले रंग की फारसी टाइलों से बनी छत वाली इस मस्जिद को शासक कुतुबुद्दीन मुबारक शाह ने बनवाया था। चांद मीनार के अलावा किले में शाही निवास, चीनी महल, बारादरी, स्नान घर भी बने हुए हैं। लेकिन आज यह किला काफी हद तक खण्डहर का रूप धारण कर चुका है। 

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दौलताबाद के किले तक कैसे पहुंचें

दौलताबाद का यह प्रसिद्ध किला औरंगाबाद से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। औरंगाबाद से रोडवेज की बसों या अपनी कार या टैक्सी द्वारा आसानी से किले तक पहुंचा जा सकता है। आप देश के किसी भी हिस्से से रेल गाड़ी से औरंगाबाद तक पहुंच सकते हैं। नज़दीकी हवाई अड्डा औरंगाबाद हवाई अड्डा है। समय की सरकारों की अनदेखी के चलते भारत की यह प्राचीन धरोहर मिटती हुई दिखाई दे रही है।

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धर्मेन्द्र संधू 

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