इस अदभुत् मंदिर में… बलि चढ़ाने के बाद बकरा दोबारा हो जाता है ज़िंदा !

भारतीय संस्कृति विश्व में अपनी अलग पहचान रखती है। भारतीय संस्कृति के रीति रिवाजों व परंपराओं के साथ ही भारत की प्राचीन इमारतें भी संस्कृति का अभिन्न अंग हैं। सदियों पुरानी यह इमारतें आज भी इतिहास की कहानियों को समेटे हुए हैं। इन इमारतों में कुछ प्राचीन मंदिर भी आते हैं जो देश के साथ ही विदेश के पर्यटकों को भी अपनी ओर आकर्षित करते हैं। आज हम आपको एक ऐसे ही सदियों पुराने मंदिर के बारे में जानकारी देंगे जिसके दर्शन करने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं।

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मुंडेश्वरी देवी मंदिर 

भगवान शिव और देवी शक्ति को समर्पित यह प्राचीन मुंडेश्वरी देवी मंदिर बिहार के कैमूर जिले के कौरा क्षेत्र में स्थित है। यह मंदिर कैमूर पर्वत की पवरा पहाड़ी पर है। मंदिर परिसर में मिले एक शिलालेख के अनुसार इस मंदिर का अस्तित्व 635 ई. में भी था। मान्यता है कि है इस मंदिर में स्थापित भगवान विष्णु की मूर्ति 7वीं शताब्दी से पहले गायब या चोरी हो गई थी। इसके बाद शैव धर्म का महत्व बढ़ता चला गया और साथ ही विनीतेश्वर जी, मंदिर के इष्टदेव के रूप में माने जाने लगे।

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ऐसे पड़ा मंदिर का नाम

मार्केण्डेय पुराण के साथ भी इस मंदिर का संबंध है। मान्यता है कि मां दुर्गा चंड व मुंड नामक राक्षसों का वध करने के लिए इसी स्थान पर प्रकट हुई थी। चंड के वध के बाद मुंड इस स्थान पर एक पहाड़ी के पीछे छिप गया था। और इसी स्थान पर ही मां दुर्गा ने मुंड का वध किया था। इसी कारण ही इस स्थान को मुंडेश्वरी देवी के नाम से जाना जाता है।

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मुंडेश्वरी मंदिर का वास्तु शिल्प

मुंडेश्वरी मंदिर का निर्माण नागर शैली के अनुसार किया गया है। यह मंदिर अष्टकोणीय आकार में बना हुआ है। इस भवन निर्माण शैली में ही बिहार के अन्य मंदिरों का निर्माण किया गया है। मंदिर के चार कोनों में दरवाजों और खिड़कियों की योजना की गई है। मंदिर की चारों दीवारों पर छोटे आकार की मूर्तियां मुख्य आकर्षण का केन्द्र हैं। पहले मंदिर के उपरी हिस्से में एक शिखर बना हुआ था जो बाद में ध्वस्त हो गया था। इसके बाद फिर से इस शिखर के स्थान पर नई छत का निर्माण किया गया। मंदिर में की गई बेहतरीन नक्काशी का उदाहरण मंदिर के प्रवेश द्वार पर ही मिल जाता है। प्रवेश द्वार पर गंगा, यमुना के साथ ही अन्य देवी देवताओं की मूर्तियां बनी हुई हैं। मुख्य गर्भगृह में चतुर्मुखी शिवलिंग और देवी मुंडेश्वरी के दर्शन होते हैं। इसके अलावा यहाँ अन्य देवताओं जैसे भगवान विष्णु जी, गणेश जी के साथ ही सूर्य देवता की पूजा भी होती है। 

बलि चढ़ाने की अनूठी परंपरा

इस मंदिर में बलि चढ़ाने की परंपरा लगातार चली आ रही है लेकिन यह परंपरा अन्य मंदिरों से बिल्कुल अलग है। इसमें खास बात यह है कि इस मंदिर में जिस बकरे की बलि चढ़ाई जाती है उसकी जान नहीं ली जाती। सुनने में चाहे अजीब लगता है लेकिन यह सच है बलि चढ़ाने की प्रक्रिया भक्तों के सामने ही की जाती है। बलि चढ़ाते समय माता की मूर्ति के सामने ही पुजारी चावल के कुछ दाने मूर्ति को स्पर्श करवाने के बाद बकरे के उपर फेंकता है। चावल फेंकते ही बकरा मानो बेहोश सा हो जाता है, मानो उस में प्राण ही न बचे हों। और कुछ समय के बाद फिर इसी प्रकार दोबारा चावल बकरे पर फेंके जाते हैं व बकरा उठ जाता है। बलि चढ़ाने की क्रिया पूरी होने के बाद बकरे को छोड़ दिया जाता है।

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शिवलिंग का बदलता है रंग

मंदिर में स्थापित शिवलिंग से जुड़ी एक अदभुत बात यह है कि इस शिवलिंग का रंग दिन में कई बार बदलता है जो अपने आप में एक रहस्य है। कहा जाता है कि शिवलिंग का रंग सुबह के समय अलग होता है, दोपहर के समय अलग और शाम होते ही इसका रंग अलग हो जाता है।

कैसे पहुंचें ?

मुंडेश्वरी मंदिर सड़क मार्ग से पटना व वाराणसी से जुड़ा हुआ है। मंदिर तक रेल मार्ग से भी पहुंचा जा सकता है। मंदिर का नजदीकी रेलवे स्टेशन भभुआ रोड रेलवे स्टेशन है। इस स्टेशन से मंदिर की दूरी महज 25 किलोमीटर है। मंदिर तक पहुंचने के लिए बस व टैक्सी का उपयोग  भी किया जा सकता है। इस मंदिर को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा संरक्षित स्मारकों की सूची में रखा गया है।

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